ज्योतिष शास्त्र मे नक्षत्रों का खासा महत्व है। प्रतिदिन के नक्षत्रों को देखकर हम आने वाले कल को साध सकते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी को मील, किलोलीटर में नापने का नियम है उसी प्रकार आकाशीय मंडल में चंद सूर्यदि ग्रहों की दूरी का मापदंड नक्षत्रो के चरणों से पता चलता है।
ज्योतिष शास्त्र में किये जाने वाले कार्यो का निर्देश दिया गया है। दैनिक जीवन में नक्षत्रो के आधार पर मुहूर्त निकाले जाते है। मिसाल के तौर पर विवाह, वाहन क्रय, नीव या ग्रह प्रवेश के अलग-अलग नक्षत्र ज्योतिष विज्ञान में दिए गए है। वराही संहिता में बताए गए जलचर नक्षत्रों को देखकर किसान अच्छी वर्षा का अनुमान लगा लेते है।
जिस प्रकार पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी को मील, किलोलीटर में नापने का नियम है उसी प्रकार आकाशीय मंडल में चंद सूर्यदि ग्रहों की दूरी का मापदंड नक्षत्रो के चरणों से पता चलता है। ज्योतिष में गणितज्ञों को यह बताने के लिए मार्ग सरल हो जाता है, कि अमुक ग्रह अमुक समय में अमुक नक्षत्र में था।
जन्म नाम और नक्षत्र : ज्योतिष शास्त्र अनुसार नक्षत्र 27 होते है, लेकिन 28वां नक्षत्र अभिजीत होता है जो साधारणतया मुहूर्त देखने मे ही काम आता है। नक्षत्रों का आरम्भ अश्विनी नक्षत्र से होता है आगे दी गई तालिका मे देखे कि मेष राशि मे अश्विनी नक्षत्र में चार चरण और प्रत्येक चरण का एक अक्षर होता है नाम वाले काॅलम मे जो प्रथम चार अक्षर (चू, चे, चा, ला) अश्विनी नक्षत्र के है। इसके आगे के 4 अक्षर (लि, लू, ले, लो) भरणी नक्षत्र के है। और अंतिम ‘अ’ अक्षर कृतिका का है। और कृतिका के अगले 3 अक्षर वृष राशि मे आ रहे है। यहां यह स्पष्ट करना ठीक होगा कि ग्रह हमेशा जन्म के नामों से ही प्रभावित होते है।
नाम बदल लेने से ग्रह अपनी गति नही बदलते। लेकिन इसका भी निराकरण ज्योतिष मे उपलब्ध है। मान लिजिए किसी का जन्म मिथुन राशि के आर्द्रा नक्षत्र के चतुर्थ चरण मे हुआ है तालिका अनुसार अक्षर घ आया, अब माता – पिता बालक का नाम घमंडी लाल नही रखना चाहते तो इसका परिहार यह है कि आर्द्रा नक्षत्र के 4 चरण (कु, घ, ड, छ) उपलब्ध है इसलिए माता – पिता बालक का नाम उक्त अक्षर पर न रखकर प्रथम चरण कु पर भी रख सकते है। जैसे कुणाल, कुसुम आदि इससे न राशि बदलेगी और न ही नक्षत्र। बालक के युवा होने पर विवाह के समय मेलापक (जन्मकुंडली मिलान) मे भी इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ेगा। कह सकते है कि यह मार्ग ठीक रहता है। इसमे स्थाई रुप से इस संदेहास्पद स्थिति का भी परिहार हो जाता है।
बारह नक्षत्रों में व्यापार उत्तम :
श्रुति गुन कर गुन पु जुग मृग हय रेवती सखाउ।
छेहि लेहि धन धरनि धरु गएहुं न जाइहि काउ॥
अर्थात श्रवण नक्षत्र से तीन नक्षत्र (श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा) हस्त नक्षत्र से तीन नक्षत्र (हस्त, चित्रा, स्वाती) पु से आरंभ होने वाले दो नक्षत्र (पुष्य, पुनर्वसु) और मृगशीरा, अश्विनी, रेवती और अनुराधा इन सभी नक्षत्रों में धन, जमीन का लेन-देन करना चाहिए। अच्छा धनलाभ होता है।
चौदह नक्षत्रों में आर्थिक हानि :
ऊगुन पूगुन वि अज कृ, म, आ भ, अ, मु गुनु।
साथ हरो धरो गाड़ो दियो, धन फिरि चढ़ई न हाथ ॥
‘उ’ से प्रारम्भ होने वाले 3 नक्षत्र (उत्तराभाद्रपद, उत्तरफाल्गुनी, उत्तरषाड़ा) ‘पू’ से प्रारम्भ होने वाले 3न नक्षत्र (पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाड़ा) वि (विशाखा) अज (रोहिणी) कृ (कृतिका) म (मघा) आ (आर्द्रा) भ (भरणी) अ (आश्लेषा) और मू (मूल) इन 14 नक्षत्रो में चोरी गया, या उधार दिया हुआ धन लौटकर वापिस हाथ नही लगता।
शुभ अशुभ नक्षत्र विचार :
सत्वगुण नक्षत्र : (पुनर्वसु, अश्लेषा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, और रेवती) नक्षत्र सत्वगुण में आते है। इन नक्षत्रो मे जन्म लेने वाला व्यक्ति हमैशा अच्छे कार्यो मे लीन रहता है। ईश्वर भक्त एवं परोपकारी होता है।
रजोगुण नक्षत्र : (भरणी, कृतिका, रोहिणी, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, पूर्वाषाढ़ा, उत्तरषाड़ा, श्रवण) ये रजोगुणी नक्षत्र कहलाते है। ऐसे व्यक्तियों को मान सम्मान की इच्छा ज्यादा रहती है। ये अपने कार्य मे किसी का हस्तक्षेप स्वीकार नही करते।
तमोगुण नक्षत्र : (अश्विनी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, मघा, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद ) तमोगुण वाले नक्षत्र कहलाते है। ऐसे व्यक्तियों को बुरी आदतें जल्दी घेर लेती है। ये लोग कानून वगैरह की परवाह नही करते। अपना हित साधने के लिए ये किसी भी स्तर पर आ सकते है।
देवगण के नक्षत्र : (अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, स्वाती, अनुराधा, श्रवण, रेवती) नक्षत्र देवगण है। देवगण नक्षत्र मे उत्पन्न व्यक्ति शालीन, आत्मविश्वासी, लोकप्रिय, मातृ – पितृभक्त, गुरु भक्त, देशभक्त तथा शास्त्रों का अध्ययन करने वाला होता है।
मानवगण के नक्षत्र : (भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाषाड़ा, उत्तरषाड़ा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद,) नक्षत्र मानवगण के है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक दूरदर्शी, साहसी, व्यवहार कुशल, सामाजिक कार्यो मे हिस्सा लेने वाले यशस्वी होते है। पुत्रवान व धनवान होते है।
राक्षसगण के नक्षत्र : (कृतिका, अश्लेषा, मघा, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठ, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा) नक्षत्र राक्षसगण के है। इस नक्षत्र मे उत्पन्न जातको मे तामसिक वृति का प्रभाव होता है। ये क्रोधी, चालाक, कठोरभाषी होते है। इनमे कुछ गुण सत्वगुणी भी है। इसलिए ऐसे व्यक्तियों पर राक्षसगण का प्रभाव बहुत कम दिखाई देता है।