हर दिन एक ही तरह की दिनचर्या घसीटने से जिंदगी उबाऊ हो जाती है। अगर इसमें आने-जाने की जगह नहीं है तो पूछने में भी कोई सुविधा नहीं है. बहनों की शादी हो जाती है, लेकिन भाई? वह कहीं आता-जाता रहता है तो उसे पता-ठिकाना का भी पता नहीं चलता। और अगर कभी ऐसा मौका मिल जाए तो कहना ही क्या. ये सोचकर बुरा मत मानना कि आज की कहानी एक नई सोच दे रही है.
‘कभी-कभी जिस व्यक्ति के साथ हम रहते थे उसके साथ दिल की गहराई में दबी हमारे बचपन की यादों को रोशन करने के लिए एक जगह होती है… जब माता-पिता चले जाते हैं, तो एक आदमी की वह जगह निश्चित रूप से खो जाती है..’ – आज की कहानी से।
“क्या बात है, तुम अपनी शर्ट खुद ही इस्त्री करते हो, इस बार इस्त्री करने वाले को क्यों नहीं दे देते,..?” अनु ने अपना पर्स मेज पर रखते हुए पूछा और वह भी पानी पीने के लिए रसोई की ओर मुड़ गई…
अभि जाम के मूड में चिल्लाया, “माई मायके चला जाऊंगा तुम देखती रह्यो..”
पानी पीते हुए मुस्कुराहट दबाते हुए.. अनु ने हाथ से इशारा किया.. और पानी पीते हुए पूछा, “क्या तुम्हें यकीन है कि तुम ठीक हो..?”
अभि पूरे मूड में है.. “हम तो चले परदेस… हम परदेसी हो गए…”
अब अनु उसके पास आई और डांटते हुए बोली, “अब ड्रामा नहीं, जल्दी बताओ, कंपनी का कोई टूर है क्या..?”
“नहीं मैडम, मैं असल में घर जा रहा हूँ… पुणे…!”
अनु ने धीरे से उसकी पीठ थपथपाई और कहा… “तुम अपने पिता के पास चले, फिर ऐसा मत कहते.. इसमें नई बात क्या है… कहो, महेरी चली…”
अभि ने अपनी शर्ट मोड़ी, आयरन बंद किया और मुड़ गया। उसने अनु का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.. “मुझे बताओ, मुझे यह शब्द पसंद है… इस साल आप दिवाली के लिए घर गए थे… ताइदी और मैं राज्य थे… उसने भाभीजी को हाथ हिलाया और उसने यह टिकट बटुआ रख दिया मेरे हाथ में.. मैंने कहा, ‘उह, क्या तुम मेरी ओर हाथ हिला रहे हो?’
मैं जोर-जोर से हंसने लगा.. उसने झट से मुझे पकड़ लिया.. खूब रोई। उसके गले पड़ते हुए उसने कहा, “माँ-पापा तो चले गए और तुम कितनी बड़ी हो गई हो अभय.. तुमने हमारी महेर रख ली और हमें उसकी कमी महसूस नहीं होने दी.. इसका श्रेय तुम्हारी पत्नी को है, लेकिन उसके पास अभी भी महेर है… माहेर तुम कहाँ हो..?
कभी-कभी आप जिसके साथ रहते थे, उसके साथ मन में दबी बचपन की यादों को रोशन करने की जगह होती है।
फिर मैंने सोचा कि जब मैं महेरी आऊंगा तो तुम्हें महेरी यानी अपने पास बुलाऊंगा… जब अनु आएगी तो तुम जाने ही वाली हो… मैंने जानबूझ कर टिकट बुक किया है, इसलिए यूं मत कहना … ‘ट्रेनों में बहुत भीड़ है..’ मैं इंतजार करूंगी इतना कहकर तुम चले गए.. अब मैं घर जा रहा हूं.. तुम रानीसरकार नहीं जाओगी..?’
अनु ने कहा, “अब मैं तुम्हें इमोशनली ब्लैकमेल कर रही हूं.. “मत जाओ महेरी, मैं ये नहीं कर सकती.. प्लीज चलो मजे करो.. इंतजार मत करो..” इतना कहकर अनु हंसने लगीं..
फुसफुसा कर उसने कहा, “तुम सच में जाना नहीं चाहते..?”
अनु ने कहा, ”जा बाबा जा जीले अपनी जिंदगी… आप भी जानते हैं कि एक पल के लिए भी घर जाना कैसा होता है… आपके बारे में केवल प्यार के आलिंगन में प्रवेश करना… प्यार का हाथ, जिसकी याद लगातार गपशप… सारी भौतिक खुशियाँ एक तरफ और यह अनमोल खुशी एक तरफ…”
अभि ने कहा, “तो फिर ये ख़ुशी आनंद लेने से आती है…”
अनु ने उसे बस में बिठाया.. उसने सोचा कि यह सचमुच उसके भाई को समझदार बनाने का एक बड़ा विचार है… उसने तुरंत अपने भाई को फोन किया.. “दो दिन बाद आना। अभि गांव गया है। मैं तुम्हारे साथ चलूंगा ..”
अगले दिन भाई आए.. दोनों पक्ष बहुत खुश थे.. उन्होंने अपनी बहन की गोद में सिर रखा और यादों के बारे में बात करने लगे.. कभी उनकी आंखों में आंसू आ गए तो कभी उनकी आंखों में उत्साह भर गया.. एक रिश्ता मजबूत था, भरोसे से मजबूत हुआ…
बहन के आँगन में भाई का वैभव खिल गया।