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गणपति अथर्वशीर्ष का महत्त्व और जागतिक स्तरावरील (वैश्विक) गौरव

  • बुद्धि और मस्तिष्क पर प्रभाव
    अथर्वशीर्ष का पाठ करने से मेंदु (ब्रेन) के कॉर्टेक्स भाग को बल मिलता है। इससे एकाग्रता, स्मरणशक्ति और मानसिक विकास होता है।
  • मूलाधार चक्र का जागरण
    श्लोक – त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं”
    अथर्वशीर्ष के पाठ से मूलाधार चक्र जागृत होता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में उत्साह, आनंद और एकाग्रता आती है।
    • मूलाधार चक्र के बीजाक्षर – व, स, ष, श, लं।
    • अथर्वशीर्ष में इनका अनेक बार उल्लेख है, जिससे चक्र सक्रिय होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • वैश्विक स्तर पर गणपति अथर्वशीर्ष
    • 1995 में न्यूयॉर्क (अल्बनी) में Grimes नामक कॅनडियन बँड के जॉन ने सामूहिक अथर्वशीर्ष पाठ किया।
    • ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस (1985) में गणेशजी का उल्लेख Lord of all good beginnings और Lord of obstacles के रूप में मिलता है।
    • जापान में गणेशजी को कांगीतेन (भाग्यदेवता), शोदेन (प्रथम देव) और विनायक नाम से जाना जाता है।
    • चीन (तनुह-आंग) में अजंठा जैसी गुफाओं की भित्तियों पर गणेश की मूर्तियाँ हैं, जिनमें वे पगड़ी और सलवार पहने दिखते हैं।
    • अमेरिका में गणेश प्रतिमा मिलने का उल्लेख बलदेव उपाध्याय की पुराण विमर्श” में किया गया है।
  • भारत में गणेशपूजन की परंपरा
    • प्रारंभ में यक्ष स्वरूप की पूजा होती थी।
    • बाद में गणपति बुद्धि के रक्षक और विघ्नहर्ता के रूप में स्थापित हुए।
    • वैदिक और तांत्रिक दोनों परंपराओं में उनका महत्त्व बढ़ता गया।
    • कालांतर में वे विश्वभर में पूजनीय बने।
  • आज की स्थिति और आवश्यकता
    • आज सार्वजनिक गणेशोत्सव भव्य रूप में मनाया जाता है, परंतु इसमें कभी-कभी सतहीपन और अपवित्रता आ जाती है।
    • गणेशजी का असली स्थान घर और मंदिर में है, जहाँ उनकी स्थायी और शुद्ध पूजा हो।
    • वास्तविक रूप में उन्हें बुद्धि, आनंद और विघ्नहर्ता के रूप में पूजना ही उचित है।

👉 निष्कर्ष यह कि गणपति अथर्वशीर्ष केवल धार्मिक पाठ नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास का अद्भुत साधन है। यह न सिर्फ भारत में बल्कि विश्वभर में गणेशजी की महत्ता का प्रमाण है।

 

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