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वृषभ लग्न का विचार

वृषभ लग्न का स्वामी शुक्र है, शुक्र ऐश्वर्यशाली व विलासपूर्ण ग्रह है। इस लग्न वाले जातक प्राय: गौरवर्ण के, दिखने में सुन्दर व आकर्षक व्यक्ति होते हैं, इस लग्न का चिन्ह वृषभ (बिना जोता हुआ बैल) होने से शरीर पुष्ट, मस्त चाल, मजबूत जंघाएं, बैल के समान नेत्र, स्वाभिमान एवं स्वच्छंद विचरण एवं शीतल स्वभाव इनकी प्रमुख विशेषता कही जा सकती है।


यह स्थिर स्वभाव की राशि होती है और इसी कारण इस राशि में ठहराव देखने को मिलता है। इस लग्न के लोगों को जल्दबाजी पसंद नहीं होती है। यह पृष्ठोदय राशि है अर्थात आगे से उठने वाली राशि है। यह राशि पृथ्वी तत्व के अन्तर्गत आती है।

आपको अपने जीवन में बहुत जल्दी-जल्दी बदलाव पसंद नहीं होगा। इसलिए आप आसनी से स्थान परिवर्तन नहीं करते हैं। एक ही जगह पर बहुत समय तक बने रहते हैं। शुक्र का प्रभाव होने से आप सौन्दर्य प्रेमी होते हैं। आपको सुंदर और कलात्मक चीजें पसंद होती है। आप स्वभाव से रोमांटिक भी होते हैं।

 

वैसे तो आपको क्रोध कम आएगा लेकिन जब आएगा तब अत्यधिक आएगा, तब आपको शांत करना सरल नही होगा। आप स्वभाव से उदार हृदय होते हैं लेकिन आप एकांतप्रिय होंगे। आपको ज्यादा भीड़ भाड़ कम ही पसंद होगी। आप जीवन में धन कमाने की इच्छा रखते हैं और धन एकत्रित करने में सफल भी होते हैं।

वृषभ लग्न में उत्पन्न जातक सुंदर, उदार स्वाभाव के होते हैं, उनकी वाणी में भी मधुरता का भाव विद्यमान रहता है। साथ ही व्यक्तित्व भी आकर्षक होता है तथा अन्य जनों को प्रभावित करने में वे समर्थ रहते हैं। शारारिक रूप से वृषभ लग्न के लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा परिश्रम करने की उनकी अपूर्व क्षमता रहती है जिससे जीवन में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने तथा सुखैश्वर्य एवं वैभव अर्जित करने में प्रायः सफल रहते हैं।

 

वृष लग्न की कुण्डली में शुक्र लग्नेश पहले और छठे भाव का स्वामी होने के कारण वह कुण्डली का सबसे योग कारक माना जाता हैl –

 

वृष लग्न की कुण्डली में शुक्र लग्नेश पहले और छठे

 

वृष लग्न की कुण्डली में शुक्र लग्नेश पहले और छठे भाव का स्वामी होने के कारण वह कुण्डली का सबसे योग कारक माना जाता है। तीसरे, पांचवें (नीच राशि), छठे, आठवें और 12वें भाव में यदि शुक्रदेव पड़े हैं तो वह अपने अंश मात्र बलाबल अनुसार अशुभ फल देंगे क्योँकि इन बुरे भावों में होने के कारण वह अपनी योगकारिता खो देते हैंl

 

वृष लग्न की कुण्डली में बुध देव दूसरे भाव के स्वामी हैं तथा पांचवें भाव के स्वामी हैं। पंचमेश होने के कारण बुध देव इस लग्न कुण्डली में योगकारक ग्रह माने जाते हैं। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें और दसवें भाव में यदि बुध देव पड़े हों तो अपने अंशमात्र बलाबल के अनुसार शुभ फल देते हैं। 11वें भाव में बुध देव अशुभ हो जाते हैं क्योँकि यह उनकी नीच राशि है।

 

वृष लग्न की कुण्डली में शनि देव नौवें और दसवें भावों के स्वामी होने के कारण अति योग कारक ग्रह हैं। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें दसवें, 11वें भावों में शनिदेव अपनी दशा अन्तर में अपनी क्षमतानुशार शुभ फल देते हैं।

 

मंगल इस लग्न के लिए सप्तम और बारहवें भाव का स्वामी होकर मारक का काम करता है। चंद्रमा तीसरे भाव का स्वामी है और यदि वह किसी मारक ग्रह के साथ स्थित हो जाता है तब मारक जैसे ही फल प्रदान करता है।

 

बुध इस लग्न के लिए अत्यंत कारक होते है परंतु वह यदि छठे स्थान में जाकर विराजमान होता है तो जातक सदैव कर्ज से परेशान रह सकता है या उसे त्वचा संबंधित समस्या उत्पन्न हो सकता है।।।

 

यदि गुरु छठे स्थान में बैठा हुआ है तो यह अपनी दशा में पेट से संबंधित समस्या अवश्य उत्पन्न करवा सकता है।।।

 

वृष लग्न में सूर्य देवता सम ग्रह माने जाते हैं। वह चौथे भाव के स्वामी हैं परन्तु लग्नेश शुक्र के शत्रु हैं। इस कुण्डली में सूर्य देवता अपनी स्थिति और बलाबल के अनुसार अच्छा और बुरा फल देते हैं।

 

बृहस्पति देव इस लग्न कुण्डली में एक मारक ग्रह हैं। आठवें और 11वें भाव के स्वामी होने के साथ–साथ वह लग्नेश शुक्र के विरोधी दल के ग्रह हैं। बृहस्पति देवता छठे, आठवें और 12वें भाव में पड़े हैं तो वह शुभ फलदायक भी होते हैं परन्तु इसके लिए शुक्र का बली और शुभ होना अत्यंत आवश्यक है|

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