राशि परिवर्तन संबंध या राशि परिवर्तन राजयोग यह एक ऐसा संबंध है जो सभी राजयोगों, सभी तरह के शक्तिशाली योगो से भी ऊपर होता है।इसे सर्वश्रेष्ठ संबंध या योग कह सकते है।कब बनता है यह संबंध और इसके फल कैसे मिलते है अब इसी विषय पर बात करते है।
राशि परिवर्तन संबंध केवल दो ग्रहो के बीच ही बनता है।जब कोई दो ग्रह एक दूसरे की राशि मे बैठे होते है तब यह संबंध बनता है जो बहुत शुभ होता है यह संबंध या योग राजयोग, विपरीत राजयोग आदि से भी ऊपर होता है।जैसे मेष/वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल सूर्य की सिंह राशि मे हो और सूर्य मंगल की मेष/वृश्चिक राशि में बेठा हो तब यह संबंध बनेगा।यह बहुत सुखद और अच्छे फल देने वाला संबंध है अन्य किसी योग या ग्रहो के मुकाबले।इस संबंध में दो ग्रह एक दूसरे के घरों पर अधिकार करके एक दूसरे को सहयोग करते है और लाभ देते है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें इस संबंध की लिखता हूँ कि यह कब ज्यादा प्रभाव देकर आपको उन्नति और राजयोग देगा।जब यह राशि परिवर्तन संबंध केंद्र_त्रिकोण स्वामियों के बीच बने,जैसे,केंद्र और त्रिकोण राशि के स्वामी एक दूसरे की राशि मे हो…या दूसरे_और_ग्यारहवे भाव के स्वामियो के बीच बने जैसे दूसरे भाव का स्वामी ग्यारहवे भाव मे और ग्यारहवे भाव का स्वामी दूसरे भाव मे बेठा हो या 3_6_8_12 भाव के स्वामियोके बीच बने तब ज्यादा लाभ राशि परिवर्तन संबंध देगा।अब उदाहरणों से समझते है:-
मेष_लग्न कुंडली मे माना सप्तमेश(केंद्र स्वामी शुक्र)9वे भाव मे हो और 9वे भाव(त्रिकोम भाव स्वामी)गुरु बनेगा जो कि सातवे भाव मे हो मतलब सप्तमेश शुक्र गुरु के घर 9वे भाव मे हो और नवमेश गुरु शुक्र के घर 7वे भाव मे होगा तब यह राशि परिवर्तन संबंध बनेगा यह बहुत ही शानदार संबंध होगा क्योंकि यह (9वे भाव) भाग्य के घर और (7वे भाव) शादी के घर से बना है जो शादी के बाद अपार सफलता भाग्य का पूरी तरह उदय कराकर बहुत शक्तिशाली राजयोग के फल देगा।अच्छा यहाँ शुक्र और गुरु दूसरे और बारहवे भाव के भी स्वामी होते है शुक्र की मेष लग्न में दूसरी रसाहि दूसरे भाव मे और गुरु की 12वे भाव मे भी होती है इस कारण गुरु शुक्र का यह स्थान परिवर्तन संबंध दूसरे और 12वे भाव के शुभ फल भी देगा। इस स्थान परिवर्तन योग के द्वारा।।
दूसरी_स्थिति_अनुसार:-
वृश्चिक लग्न में मंगल लग्नेश होने के साथ 6वे भाव का भी स्वामी होता है मेष राशि से साथ ही बुध यहाँ अष्टमेश और ग्यारहवे भाव का स्वामी भी होता है।यदि मंगल 8वे भाव मे बुध के भाव मे बैठे मिथुन राशि मे और अष्टमेश बुध छठे भाव मे बैठे मंगल की मेष राशि मे तब यह संबंध अशुभ स्थानों 6वे और 8वे भाव से बना जो परम् लाभ कारी और शुभ है क्योंकि यह संबंश राशि परिवर्तन राजयोग भी बना और विपरीत राजयोग भी बना, जो अब दो दो राजयोग के फल देगा, दो ही ग्रहो ने कितना सुंदर राजयोग बनाया।।
तीसरी_स्थिति:-
एक स्थिति यह भी होती है कि स्थान परिवर्तन में एक ग्रह तो अच्छे भाव का स्वामी है तो दूसरा अशुभ भाव का स्वामी है तब यह राशि परिवर्तन संबंध बहुत अच्छे परिणाम नही देता कम देता है जैसे धनु लग्न में चन्द्र अष्टमेश होता है(अशुभ भाव पति) और मंगल सूर्य भाग्येश(9वे भाव का स्वामी होता है शुभ भावपति) अब यहाँ सूर्य 8वे भाव मे चन्द्र के भाव मे कर्क राशि का हो और चन्द्र 9वे भाव मे सिंह राशि का हो तब यह स्थान परिवर्तन संबंध लाभ नही देगा क्योंकि शुभ-अशुभ भावपति के बीच यह संबंध बना है।।
इसके अलावा जब राशि परिवर्तन या यह कहे राशि परिवर्तन या स्थानपरिवर्तन करने वाले दोनो ग्रह के साथ कोई अन्य ग्रह भी शुभ योग बना ले तब यह राशि परिवर्तन बहुत शक्तिशाली फल इस संबंध के देता है।यह संबंध कई व्यक्तियों की कुंडली मे मिलते है और शुभ भावपतियो के बीच यह संबंध काफी ज्यादा शुभ होगा, राजयोग, विपरीत राजयोग, अन्य कोई शुभ योगो के मुकाबले यह स्थान परिवर्तन संबंध कई ज्यादा शुभ होता है और सबसे सरल संबंध होता है शत्रु ग्रहो जैसे कि शनि सूर्य की सिंह राशि मे और सूर्य शनि की मकर/कुम्भ राशि में होने पर भी यह दोनो अपनी दुश्मनी भुलाकर जातक को सफल राजयोग देते है।स्थान परिवर्तन संबंध सबसे शानदार परिणाम देने वाला संबंध जिस भाव मे और जिन भावों के स्वामियों के बीच बनेगा वहां से संबंधित विशेष शुभ फल देगा।
नोट:- इस राजयोग की एक खासियत है यह यह राशि परिवर्तन राजयोग कभी कमजोर नही होता क्योंकि दोनो ग्रह दूसरे के ही घर मे होते है नीच होने लर भी नीचभंग हो जाता रसाहि संबंध में जबकि अन्य राजयोगों में ग्रह की नीच, कमजोर स्थिति ,शत्रु आदि स्थिति का भी विचार किया जाता है जबकि इस संबंध/राजयोग में नही होता इसी कारण संबंध राजयोग और सभी योग और संबंध ऊपर है।महाराजयोग हैं।।