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कब-कब हनुमान जी बने संकट मोचक!!!

को नहि जानत। है, जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।

 

हनुमान जी के कई नाम हैं जिनमें बजरंगबली, महावीर, केसरी नंदन और संकट मोचन नाम काफी लोकप्रिय है। यह नाम हनुमान जी को उनके गुण और कर्मों के कारण प्राप्त हुए हैं।

 

हनुमान जी के अंग बज्र के समान हैं इसलिए यह बजरंगबली कहलाते हैं। इनसे बड़ा कोई वीर नहीं है इसलिए यह महावीर कहलाते हैं। केसरी के पुत्र होने के कारण यह केसरी नंदन और भक्तों के हर संकट दूर करने वाले हैं, इसलिए संकट मोचन कहलाते हैं।

हनुमान चालिसा में कहा भी गया है कि ‘को नहिं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो’

 

हनुमान जी न केवल भक्तों के संकटहर्ता हैं बल्कि इन्होंने अपने प्रभु श्री राम को भी कई बार संकट से निकाला है। इसलिए राम जी ने हनुमान जी को संकट मोचन नाम दिया है और सृष्टि के अंत तक पृथ्वी पर रह कर मनुष्य को संकट से निकालने का आशीर्वाद दिया है।

 

तो आइये देखें हनुमान जी ने कब कब राम जी को संकट से निकाला।

 

जब पहली बार हनुमान जी राम के संकट मोचक बने!!!!!

 

सीता हरण के बाद राम और लक्ष्मण जब सीता की तलाश में भटकर रहे थे इसी क्रम में राम और हनुमान जी की मुलाकात हुई। इसके बाद से हनुमान जी ने कई बार राम जी को संकट से निकाला।

 

सबसे पहले तो हनुमान जी ने अपने प्रभु श्री राम जी की मित्रता सुग्रीव से करवाकर राम जी को एक बड़ी वानर सेना का साथ दिला दिया।

इसी सेना की मदद से राम जी ने सीता की तलाश की और रावण को युद्घ में पराजित करने में सफल हुए।

 

हनुमान जी ने दूर की राम जी की यह चिंता

 

हनुमान जी ने दूसरी बार रामचंद्र जी को उस समय संकट से निकाला जब सब तरफ से राम जी निराश हो रहे थे और सीता का पता नहीं चल पा रहा था।

 

ऐसे समय में हनुमान जी ने समुद्र पार करके यह पता लगाया कि सीता का हरण करके रावण लंका ले गया और देवी सीता रावण की अशोक वाटिका में राम के आने का इंतजार कर रही है। हनुमान जी से प्राप्त सूचना के बाद ही राम जी अपनी सेना लेकर लंका की ओर चले थे।

 

जब प्राण पर आए संकट हनुमान बने संकट मोचक,,,, तीसरी बार हनुमान जी ने राम जी को तब संकट से निकाला जब शक्ति बाण से मूर्च्छित हुए लक्ष्मण जी के प्राण संकट में आ गए। ऐसे समय में सुषेण नाम के वैद्य के कहने पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आए। इस बूटी के प्रयोग से लक्ष्मण जी के प्राण बचे।

 

नाग पाश में जब राम लक्ष्मण बंधे थे उस समय भी हनुमान जी ने राम गरूड़ को बुलाकर राम जी के संकट दूर किए थे।

 

होने वाली थी राम लक्ष्मण की बलि, हनुमान बने संकट मोचक।

 

रावण की मृत्यु के बाद अपने भाई का बदला लेने के लिए अहिरावण ने नींद में राम लक्ष्मण का हरण कर लिया। जब हनुमान जी को यह बात मालूम हुई तो वह अहिरावण की खोज में चल पड़े।

 

राम लक्ष्मण को ढूंढते हुए हनुमान जी पाताल में पहुंचे। इन्होंने देखा कि अहिरावण देवी की पूजा कर रहा है और राम लक्ष्मण की बलि देने वाला है।

ऐसे संकट के समय में हनुमान जी ने अहिरावण का अंत करके राम लक्ष्मण के प्राण बचाए।

 

 

 

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 संकटमोचन हनुमान अष्टक जैसा की नाम से ही स्पष्ट है यह पाठ सभी प्रकार संकट को दूर करने में सक्षम है। हनुमान साक्षात देव हैं। श्री हनुमान भगवान शिव के ग्यारहवाँ रूद्र अवतार हैं। यह शीघ्र प्रसन्न होते है। यह संकटमोचन, विघ्न-विनाशक हैं।

 

संकटमोचन हनुमान अष्टक पाठ के निम्नलिखित फायदे हैं

 

1- स्वयं एवं परिवार पर भगवान हनुमान जी की  कृपा बनी रहती है।

2- भगवान हनुमान भविष्य में होने वाले खतरों से बचाते है।

3- बच्चों एवं परिवार के सदस्यों का स्वास्थ ठीक रहता है ।

4- व्यापार में सफलता मिलती है।

5- अदालती उलझन से छुटकरा मिलती है।

6- परिवार में शांति एवं खुशहाली आती है।

 

संकटमोचन हनुमान अष्टक

 

बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारो ।

ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ॥

देवन आन करि बिनती तब, छांड़ि दियो रबि कष्ट निवारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 1 ॥

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,जात महाप्रभु पंथ निहारो ।

चौंकि महा मुनि शाप दिया तब,चाहिय कौन बिचार बिचारो ॥

के द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,सो तुम दास के शोक निवारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥2॥

अंगद के संग लेन गये सिय,खोज कपीस यह बैन उचारो ।

जीवत ना बचिहौ हम सो जु,बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो ॥

हेरि थके तट सिंधु सबै तब,लाय सिया-सुधि प्राण उबारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥3॥

रावन त्रास दई सिय को सब,राक्षसि सों कहि शोक निवारो ।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु,जाय महा रजनीचर मारो ॥

चाहत सीय अशोक सों आगि सु,दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥4॥

बाण लग्यो उर लछिमन के तब,प्राण तजे सुत रावण मारो ।

लै गृह बैद्य सुषेन समेत,तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ॥

आनि सजीवन हाथ दई तब,लछिमन के तुम प्राण उबारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥5॥

रावण युद्ध अजान कियो तब,नाग कि फांस सबै सिर डारो ।

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,मोह भयोयह संकट भारो ॥

आनि खगेस तबै हनुमान जु,बंधन काटि सुत्रास निवारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥6॥

बंधु समेत जबै अहिरावन,लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।

देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि,देउ सबै मिति मंत्र बिचारो ॥

जाय सहाय भयो तब ही,अहिरावण सैन्य समेत सँहारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥7॥

काज किये बड़ देवन के तुम,वीर महाप्रभु देखि बिचारो ।

कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,जो कछु संकट होय हमारो ।

को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥॥

 

दोहा :

लाल देह लाली लसे,अरू धरि लाल लंगूर ।

बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ॥

॥ इति संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण ॥

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