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गुड़हल की चाय

गुड़हल के चाय का सेवन ….

 

 नाम की एक प्रजाति में एंटी बैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटी पैरासिटिक गुण मौजूद होते हैं जो कई तरह के बैक्टीरिया, फंगल और पैरासाइट को दूर रखने में मदद करते हैं! गुड़हल के फूल की चाय का सेवन करने से स्ट्रेस और थकान दूर होती है!

1- चाय बनाने की विधि ……

 

       गुड़हल की चाय बनाने के लिए,  सबसे पहले फूलों को धोकर,  उसकी पंखुड़ियां अलग कर लें। अब पानी को उबालें और प्रति व्यक्ति के लिए, दो गुड़हल के फूल की पंखुड़ियां पानी में डालें और 2 मिनट तक,  इन्हें उबलनें दें। अब कप में छानकर,  इसमें नींबू का रस या शहद मिलाकर, अपने स्वाद अनुसार पिएं। आप चाहे तो गुड़हल के फूलों को सुखाकर, इसका पाउडर बनाकर भी सेवन कर सकते हैं।

 

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2- गुड़हल की चाय के लाभ …..

 

 

▪(1) वजन ….

 

   गुड़हल की चाय, जिसे

हिबिस्‍कस टी के रूप में भी जाना जाता है के सेवन से वजन कम होता है। गुड़हल की चाय, शरीर में एमीलेज एंजाइम द्वारा स्टार्च को , शुगर में बदलने की प्रक्रिया को रोककर, शरीर में शुगर और स्टार्च की मात्रा को नियंत्रित करती है , जिससे वेट कम होता है।

 

▪(2) मधुमेह …..

 

  गुड़हल के पत्ते के एथेनॉल एक्सट्रैक्ट में,  एंटी डायबिटीज गुण पाए जाते हैं , जो मधुमेह की समस्या से बचाव और खतरे को कम करने में सहायक हैं।

 

▪(3) वायरल इनफेक्शन ……

 

      गुड़हल की चाय का सेवन करने से,  वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन से बचाव होता है। गुड़हल की रोसेले नाम की एक प्रजाति में एंटी बैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटी पैरासिटिक गुण स्थित होते हैं,  जो कई तरह के बैक्टीरिया, फंगल और पैरासाइट को दूर रखने में सहायता करते हैं।

 

▪(4) तनाव …..

 

       गुड़हल के फूल की चाय का सेवन करने से , स्ट्रेस और थकान दूर होती है।चाय में स्थित,  एंटीऑक्सीडेंट गुण तनाव और थकान से मुक्ति दिलाकर अच्छी और गहरी नींद लाने में सहायता करते हैं।

 

▪(5) तीखे स्वाद वाली गुड़हल की चाय …..

 

       फायटोथेरेपी रिसर्च जर्नल के अनुसार, हिबिस्कस एंथोसायनिन एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन सी से भरपूर होता है। इसका स्वाद तीखा और खट्टा होता है। यह पाचन तंत्र को , हाइड्रेट करता है। यह शरीर को डीटोक्स करके शरीर के टेम्प्रेचर को कूल करता है। यह डाययूरेटिक के रूप में कार्य करता है, जो अतिरिक्त गर्मी पैदा करने वाले अवरोधों को दूर करता है। यह सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लडप्रेशर को कम करता है और मेटाबोलिज्म सक्रिय हो पाती है। यह ब्लड लिपिड में सुधार कर, लिवर को स्वस्थ्य बनाता है।

 

अपनी किसी भी प्रॉब्लम की जानकारी एवं आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए पहले अपनी प्रॉब्लम अपने नाम के साथ व्हाट्सएप कर दीजिए समय मिलते ही आपकी प्रॉब्लम का जवाब दिया जाएगा!

 

 (Excluding वेद वरदान आयुर्वैदिक वैलनेससेंटर

: : श्री रामचन्द्र केशव डोंगरे जी महाराज)

 

 

 

 

2)

 

  1. भगवान के ध्यान में जीव जब जगत को भूलता है, ध्यान में जो अपने देह को भी भूल जाता है,उसी को देव का दर्शन होता है। जब तक देह का स्मरण है तब तक देव का स्मरण नही होता है।

साधारण भक्ति में ‘भक्त और भगवान’ ऐसा भेदभाव होता है। अतिशय भक्ति बढ़ने पर भेद का विनाश होता है।

वेदांत के ग्रन्थों में ज्ञान से अद्वैत सिद्ध किया है और वैष्णव – शास्त्रों में प्रेम से अद्वैत को माना है।

 

  1. कितने लोग तो ऐसे हो गए है कि उनको नख में भी, बाल में भी सौंदर्य दिखता है- अरे! नख में ,बाल में क्या सौंदर्य है? मन बहुत बिगड़ गया है। शास्त्रो में तो ऐसा लिखा है कि अन्न में बाल आ जाये तो अन्न नही खाना चाहिये। नख और केश इस शरीर का मल है।
  1. पापी का स्मरण करें तो मन मे पाप आता है। आप कभी दारू नही पीते है,किंतु अमुक मानव दारू पिता है- ऐसा बोलो या सुनो तो दारू आपके मन मे आजाती है। पापी का स्मरण करना ही बड़ा पाप है।

 

  1. जो कामसुख का चिंतन करता है,वह क्रूर हो जाता है। कामसुख का चिंतन करने से हृदय कठिन हो जाता है। कामसुख का जो चिंतन करता है वह कपटी होता है। भगवान की सेवा पूजा में,भगवान के नाम कीर्तन में आँसु क्यो नही आते,हृदय क्यो पिघलता नही है? कामसुख का चिंतन करने से हृदय क्रूर हो जाता है।

 

5.भगवान का सब कुछ मंगल है।संसार अमंगल है, संसार मे जहाँ देखो काम का ही राज है। जिसको काम का स्पर्श है, उसका सब कुछ अमंगल है। काम ही संसार है। काम नही है तो संसार नही है। संसार काममय है,इसलिये संसार को अमंगल माना है। भगवान को काम का स्पर्श नही होता, भगवान का स्मरण मंगल है। भगवान का दर्शन मंगल है, भगवान का पूजन मंगल है। मानव का सब कुछ अमंगल है। मानव की आँखों में काम है,मानव के मन मे काम घर करके बैठा है।

 

6.कान में अंगुली डालने से अंदर की ध्वनि सुनने में आती है, अंदर से सतत जप होता है—- अ-उ-म् — अकार-उकार-मकरात्मक अखण्ड ध्वनि सुनने में आयेगी। कान में अंगुली डालने पर भी यह अंदर की आवाज जो नही सुनता,वह समझे कि सात-आठ दिन में ही मेरा मरण हो जायेगा।

 

  1. प्रतिक्षण भक्ति करो। जो क्षण का दुरुपयोग करता है वह दुःखी होता है। जो कण का दुरूपयोग करता है वह दरिद्री होता है। एक कण से अनेक जीवो का पोषण हो सकता है। थाली में पत्तल में जरा भी छोड़ना नही चाहिये। अन्न में नारायण का निवास है।

 

  1. भागवत् की कथा सुनते हो,आप वैष्णव हो! कथा सुनने के बाद ऐसा नियम लो कि मेरे भगवान जिसको स्वीकार करते है,वही मैं प्रसाद लूंगा। भगवान जिसको स्वीकार नही करते,वह मैं कभी नही खाऊंगा।

 

9.एक भाई कहते थे- हमने लोगो को सुधारने के लिये सब किया। अरे, लोगो को कोई क्या सुधार सकता है- जो घर के लोगो को नही सुधार सका, वह दूसरों को क्या सुधारेगा-

समाज सुधारने वाले सन्तो को वैकुंठ से भगवान भेजते है- अब आपकी बहुत जरूरत है, वहाँ जाओ। भगवान भेजते है। सन्त-महात्मा समाज को सुधार सकते है। साधारण मानव- जिसने अपने मन को सुधारा नही,जिसने अपने स्वभाव को सुधारा नही,जो घर के लोगो को नही सुधार सकता । वह समाज को क्या सुधारेगा। समाज को सुधारने के प्रपंच मे मत पड़ो।आप अपने जीवन को सुधारो तो समाज का एक अंग सुधरेगा।

 

10.आजकल बहुत से लोग डॉक्टर को बहुत मानते है। भगवान को इतना नही मानते है,जितना डॉक्टर को मानते है। डॉक्टर में बहुत विश्वास रखते हैं। ऐसा समझते है कि डॉक्टर ने मुझे बचा लिया। अरे,डॉक्टर क्या बचायेगा- जो काल के अधीन है- वह दूसरे को क्या बचा सकता है? डॉक्टर में बचाने की शक्ति हो तो उसका मरण क्यो होता है? बचाने वाले भगवान है। रक्षण भगवान करते है। भगवान को मानो।

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