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गुरुपुष्य अमृत योग : एक अद्भुत और दुर्लभ संयोग

भारतीय वैदिक ज्योतिष में समय और तिथियों का विशेष महत्व है। कुछ तिथियाँ और संयोग इतने शुभ माने जाते हैं कि उनमें किया गया कार्य साधक को दीर्घकालिक सफलता और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। ऐसा ही एक अद्भुत संयोग है गुरुपुष्य अमृत योग (Gurupusyamruta Yoga)। इस दिन का महत्व इतना अधिक है कि इसे त्रिपुष्कर” और सर्वार्थसिद्धि” योग की तरह विशेष फलदायी माना गया है।

गुरुपुष्य अमृत योग क्या है?

पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों में सबसे पवित्र और मंगलकारी नक्षत्र माना गया है। इसका अधिपति देवगुरु बृहस्पति (गुरु) हैं। जब भी गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र आता है, तब वह दिन गुरुपुष्य अमृत योग कहलाता है।

यह संयोग अत्यंत दुर्लभ होता है और साल में केवल कुछ ही बार बन पाता है। इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य, विशेषकर धन, शिक्षा, व्यापार, संपत्ति और आध्यात्मिक साधना से जुड़ा हुआ, स्थायी और सफल परिणाम देता है।

नाम का अर्थ

  • गुरु – देवताओं के गुरु बृहस्पति, जो ज्ञान, शिक्षा, धर्म और धन के कारक माने जाते हैं।
  • पुष्य – यह नक्षत्र पालन-पोषण, समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक है।
  • अमृत योग – वह काल जिसमें किया गया कार्य अमृत के समान अमर फल देता है।

इस प्रकार, गुरुपुष्य अमृत योग का अर्थ हुआ – वह समय जिसमें किया गया कार्य चिरस्थायी, सुखद और फलदायी होता है।

गुरुपुष्य अमृत योग का धार्मिक और पौराणिक महत्व

वैदिक ग्रंथों और पुराणों में पुष्य नक्षत्र को देवताओं का पोषक कहा गया है। बृहस्पति की कृपा से इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।

  1. धनलाभ और कुबेर की कृपा – मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी और कुबेर की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  2. विद्या और ज्ञान – छात्रों और साधकों के लिए यह दिन विद्या प्राप्ति और गुरु कृपा के लिए श्रेष्ठ है।
  3. धर्म और अध्यात्म – इस योग में किए गए जप, तप, दान और पूजा-पाठ का फल कई गुना बढ़कर मिलता है।
  4. ग्रह दोष निवारण – विशेषकर गुरु, शनि और चंद्रमा से जुड़े दोषों की शांति के लिए यह दिन उत्तम है।

गुरुपुष्य अमृत योग में क्या करें?

इस शुभ योग में किए गए कार्य दीर्घकालिक सफलता प्रदान करते हैं। इसलिए लोग इस दिन विशेष गतिविधियाँ करते हैं:

  1. नए कार्य की शुरुआत

व्यापार, नौकरी, नया व्यवसाय, कंपनी की स्थापना, या किसी भी नए प्रोजेक्ट का आरंभ इस दिन करना अत्यंत शुभ होता है।

  1. सोना-चांदी आभूषण खरीदना

ज्योतिष में सोने को गुरु और चांदी को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है। इस दिन सोना-चांदी खरीदना आर्थिक समृद्धि और स्थायी धनलाभ का कारण बनता है।

  1. संपत्ति और वाहन की खरीदारी

घर, प्लॉट, दुकान या वाहन लेने का यह दिन बेहद मंगलकारी होता है। कहा जाता है कि ऐसी संपत्ति परिवार में स्थायी सुख और वैभव लाती है।

  1. विद्या और शिक्षा से जुड़े कार्य

किताबें, पेन, नोटबुक, या किसी भी प्रकार की शैक्षणिक वस्तु की खरीद इस दिन छात्रों को श्रेष्ठ परिणाम देती है।

  1. मंत्र-जप और साधना

इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु, और गुरु बृहस्पति की विशेष साधना करनी चाहिए। इससे जीवन में ज्ञान, वैभव और सुख-समृद्धि आती है।

  1. दान और पुण्य कर्म

गुरुपुष्य अमृत योग में तिल, वस्त्र, अन्न, और स्वर्ण दान का विशेष महत्व है। इसे करने से पितृदोष और ग्रहदोष शांति मिलती है।

क्या नहीं करना चाहिए गुरुपुष्य अमृत योग में?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन कुछ कार्यों से बचना चाहिए:

  • विवाह या मांगलिक संस्कार (ये पुष्य नक्षत्र में वर्जित हैं)।
  • शत्रुता या विवाद से जुड़े कार्य।
  • अपवित्र या अधार्मिक गतिविधियाँ।
  • बिना सोचे-समझे धन का निवेश।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्व

पुष्य नक्षत्र की विशेषता यह है कि यह संपूर्ण नक्षत्रों का राजा कहलाता है। बृहस्पति के प्रभाव से यह दिन और भी शुभ बन जाता है।

  • कुंडली में कमजोर बृहस्पति – इस दिन विशेष पूजा से मजबूत होता है।
  • धन योग सक्रिय करना – नए व्यवसाय या निवेश की शुरुआत से कुंडली में छिपे धन योग फलित होते हैं।
  • शनि की कृपा – शनि देव भी इस दिन शुभ दृष्टि प्रदान करते हैं, जिससे जीवन की बाधाएँ कम होती हैं।

आधुनिक जीवन में महत्व

आज के समय में भी गुरुपुष्य अमृत योग का महत्व कम नहीं हुआ है। बड़े उद्योगपति, व्यापारी, और आम लोग भी इस दिन को शुभ मानते हैं।

  • नए स्टार्टअप, बिजनेस या पार्टनरशिप की शुरुआत।
  • बैंकों और कंपनियों द्वारा नए स्कीम लॉन्च।
  • ज्वेलरी बाजार और प्रॉपर्टी डीलिंग का बढ़ना।
  • ऑनलाइन शॉपिंग में भी इस दिन विशेष सेल आयोजित होती हैं।

साधना और पूजा विधि

इस दिन सुबह स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें।

  1. घर के पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
  2. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का पूजन करें।
  3. बृहस्पति ग्रह के बीज मंत्र बृं बृहस्पतये नमः” का 108 बार जप करें।
  4. तुलसी, हल्दी और चने की दाल का अर्पण करें।
  5. गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

निष्कर्ष

गुरुपुष्य अमृत योग वह पावन अवसर है, जब आकाशीय ऊर्जा और ग्रह-नक्षत्रों का ऐसा अद्भुत संयोग बनता है जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि का मार्ग खोल देता है। चाहे व्यापार हो, शिक्षा हो, धन हो या अध्यात्म – यह योग हर कार्य को अमरत्व और स्थायित्व प्रदान करता है।

इस दिन को एक अवसर की तरह लेना चाहिए और अपने जीवन में कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए जो दीर्घकालिक हो और आने वाली पीढ़ियों तक लाभ पहुंचाए।

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