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गुरु नानक जयंती: एकता, प्रेम और सत्य के प्रकाश का पर्व

भारत की पावन धरती संतों, महापुरुषों और अवतारों की भूमि रही है। इन्हीं महान आत्माओं में से एक हैं सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरुश्री गुरु नानक देव जी। उनका जन्म दिवस गुरु नानक जयंती या गुरुपरब के रूप में पूरे भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व प्रेम, समानता, सेवा और सत्य के संदेश का प्रतीक है।

🌕 गुरु नानक जयंती की तिथि और महत्व

गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ था, जिसे कार्तिक पूर्णिमा भी कहा जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि हर वर्ष अक्टूबर या नवंबर के महीने में पड़ती है।
यह दिन सिख समुदाय के लिए सबसे बड़ा पर्व है और इसे अत्यंत भक्ति, अनुशासन और समाजसेवा के भाव से मनाया जाता है।

👶 गुरु नानक देव जी का जन्म और बाल्यकाल

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ईस्वी में राय भोई दी तलवंडी नामक गाँव में हुआ था, जो आज के पाकिस्तान में ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। उनके पिता का नाम मेहता कालू चंद और माता का नाम माता तृप्ता देवी था।
बचपन से ही नानक जी के व्यक्तित्व में गंभीरता, करुणा और सत्य की खोज झलकती थी। वे सांसारिक विषयों से दूर रहकर ईश्वर की उपासना और मानवता की सेवा में लीन रहते थे।

कहा जाता है कि जब वे 12 वर्ष के थे, तब उनके पिता ने उन्हें व्यापार के लिए भेजा। रास्ते में उन्होंने देखा कि कई भूखे, गरीब और जरूरतमंद लोग कष्ट में हैं। उन्होंने उस पैसे से भोजन और वस्त्र खरीदकर उन लोगों में बाँट दिया। जब उनके पिता ने पूछा, तो गुरु नानक ने कहा —

“यह सच्चा व्यापार था, क्योंकि इससे मनुष्य को सच्ची संतुष्टि और ईश्वर की कृपा मिलती है।”

🕊️ आध्यात्मिक जागरण और उपदेश

गुरु नानक देव जी के जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है उनका ईश्वरीय अनुभव। एक दिन वे बेन नदी में स्नान करने गए और तीन दिन तक लापता रहे। जब वे लौटे, तो उन्होंने कहा —

“ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान; सभी मनुष्य एक ही परमात्मा की संतान हैं।”

यही संदेश उनके पूरे जीवन का आधार बना। उन्होंने सिखाया कि ईश्वर एक है (इक ओंकार), वह निराकार, सर्वव्यापी और दयालु है। उन्होंने जात-पात, ऊँच-नीच, भेदभाव और अंधविश्वासों का विरोध किया।

गुरु नानक देव जी ने मानवता के तीन मुख्य सिद्धांत बताए:

  1. नाम जपना – हर समय ईश्वर का स्मरण करना।
  2. कीरत करना – ईमानदारी और परिश्रम से जीवनयापन करना।
  3. वंड छकना – अपनी कमाई और भोजन दूसरों के साथ बाँटना।

ये तीनों सिद्धांत आज भी जीवन को संतुलित, शांत और सुखी बनाने के मार्गदर्शक हैं।

🚶 गुरु नानक देव जी की यात्राएँ (उदासियाँ)

गुरु नानक देव जी ने अपने उपदेशों को फैलाने के लिए चार दिशाओं में व्यापक यात्राएँ कीं, जिन्हें उदासियाँ कहा जाता है। वे अपने साथी भाई मरदाना के साथ भारत, अफगानिस्तान, अरब, तिब्बत, श्रीलंका और कई अन्य स्थानों की यात्रा पर गए।
हर जगह उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि धर्म का सार किसी एक जाति, भाषा या पंथ में नहीं, बल्कि सच्चे कर्म और प्रेम में है।

उनकी वाणी, जिसे बाद में गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया, आज भी मानवता को मार्गदर्शन देती है।

🏡 गुरु नानक देव जी का परिवारिक जीवन

गुरु नानक जी का विवाह माता सुलखनी जी से हुआ था। उनके दो पुत्र हुए — श्रीचंद और लख्मीचंद। यद्यपि वे गृहस्थ जीवन में थे, लेकिन उनका मन सदा ईश्वर और मानव सेवा में लगा रहता था।
उन्होंने सुल्तानपुर लोधी में कुछ समय कार्य किया और वहीं पर उन्होंने लोगों को ईमानदारी और सच्चे कर्म का महत्व सिखाया।

🕯️ गुरु नानक देव जी का अंतिम उपदेश

गुरु नानक देव जी ने अपने अंतिम समय में भाई लहणा जी (जो बाद में गुरु अंगद देव जी बने) को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
उनका अंतिम संदेश था —

“सच्चे मार्ग पर चलो, दूसरों की सेवा करो और अपने भीतर के ईश्वर को पहचानो।”

गुरु नानक देव जी का ज्योति-ज्योत समाना (परिनिर्वाण) 1539 ईस्वी में कर्तारपुर में हुआ।

🎉 गुरु नानक जयंती का उत्सव

गुरु नानक जयंती से लगभग दो दिन पहले गुरुद्वारों में अखंड पाठ आरंभ होता है, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब का निरंतर पाठ 48 घंटे तक किया जाता है।
इसके बाद नगर कीर्तन निकाला जाता है, जिसमें पाँच प्यारे (पंज प्यारे) आगे-आगे चलते हैं। जुलूस में निशान साहिब (सिख धर्म का ध्वज) फहराया जाता है और भजन-कीर्तन, ढोल-नगाड़े और गुरु वाणी का गायन होता है।

इस दिन लंगर (सामूहिक भोजन) का विशेष आयोजन किया जाता है। इसमें सभी धर्मों, जातियों और वर्गों के लोग बिना भेदभाव एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह गुरु नानक देव जी के “वंड छकना” सिद्धांत का जीवंत प्रतीक है।

गुरुद्वारे आकर्षक रोशनी और फूलों से सजाए जाते हैं। श्रद्धालु दिनभर गुरु वाणी का पाठ, कीर्तन और सेवा में लगे रहते हैं।

💡 गुरु नानक देव जी के प्रमुख उपदेश

  1. इक ओंकार सतनाम” – ईश्वर एक ही है, वही सत्य है।
  2. सबना में जोत, जोत है सोई” – हर जीव में वही परमात्मा विद्यमान है।
  3. ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान” – सभी मनुष्य समान हैं।
  4. हाथ पैर से सेवा करो, मन में हरि का नाम जपो।”
  5. लोभ, मोह, अहंकार और क्रोध – ये चार विकार मनुष्य को पतन की ओर ले जाते हैं।”

इन उपदेशों में न केवल धार्मिक शिक्षा है, बल्कि एक संपूर्ण जीवन दर्शन भी छिपा है।

🌍 आज के युग में गुरु नानक जी की प्रासंगिकता

आज का समाज भेदभाव, हिंसा, और स्वार्थ से ग्रसित है। ऐसे में गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं।
उन्होंने जो जीवन मूल्य दिए — समानता, प्रेम, सत्य, ईमानदारी और सेवा — वे आज भी हर व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

उनका कहना था कि यदि हर इंसान अपने अंदर की रोशनी को पहचान ले, तो संसार में नफरत नहीं, केवल प्रेम और शांति का राज्य स्थापित होगा।

🪔 निष्कर्ष

गुरु नानक देव जी ने मानवता को सच्चे धर्म का मार्ग दिखाया — जो किसी पूजा-पाठ या कर्मकांड से नहीं, बल्कि सेवा, सत्य और प्रेम से प्राप्त होता है।
गुरु नानक जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह मानवता, समानता और आध्यात्मिक जागरण का संदेश देने वाला विश्व मानवता का उत्सव है।

उनके वचन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने 500 वर्ष पहले थे —

“सच्ची राह वही है, जिस पर चलकर सबका भला हो।”

वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह। 🙏

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