गुरु अमर दास जी, जो गुरु अंगद देव जी के रिश्तेदार और उनसे लगभग 20 वर्ष बड़े थे, एक दिन घोड़े पर सवार होकर गुरु से मिलने निकले। यह यात्रा उनके लिए अब तक की सभी तीर्थ यात्राओं से अधिक महत्वपूर्ण थी। रास्ते में उन्होंने एक शबद का जाप किया:
“ਭਇਆ ਮਨੂਰੁ ਕੰਚਨੁ ਫਿਰਿ ਹੋਵੈ ਜੇ ਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤਿਨੇਹਾ”
“लोहे से सोना बन जाता है, यदि सच्चे गुरु से मिलन हो जाए।”
जब वे गुरु अंगद देव जी के घर पहुंचे और उनका दिव्य मुखड़ा देखा, तो उनका हृदय प्रेम और प्रकाश से भर गया। गुरु जी ने उन्हें स्वागत करते हुए गले लगाने के लिए बढ़े, लेकिन अमर दास जी ने तुरंत उनके चरणों में गिरकर कहा, “गुरु जी, मुझे अपना रिश्तेदार या बड़ा न समझें, मुझे अपना सेवक मानें और सही मार्ग दिखाएं।”
गुरु जी ने उनकी भक्ति और समर्पण को देखकर उन्हें अपना सेवक स्वीकार किया। इसके बाद, अमर दास जी ने गुरु की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
गुरु अमर दास जी ने प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर गुरु के शब्दों का पाठ किया, गुरु के लंगर में सेवा की, बर्तन धोए, खाना पकाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठा कीं, और गुरु के स्नान के लिए नदी से पानी लाए। उन्होंने कभी भी गुरु के आदेशों की अवहेलना नहीं की और हमेशा सेवा में लगे रहे।
एक बार, गुरु अंगद देव जी के पैर में घाव हो गया था, जिससे उन्हें पीड़ा हो रही थी। अमर दास जी ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने मुंह से घाव का मवाद चूसा, जिससे गुरु जी को राहत मिली।
गुरु जी ने उनकी सेवा भावना से प्रभावित होकर कहा, “मुझसे कुछ मांगो, मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगा।” अमर दास जी ने उत्तर दिया, “गुरु जी, मैं केवल यही चाहता हूं कि आप कभी पीड़ा में न रहें।”
गुरु जी ने उत्तर दिया, “कभी-कभी सुख भी रोग बन जाता है, जो हमें ईश्वर को भूलने पर मजबूर करता है। पीड़ा ही वह औषधि है जो हमें ईश्वर की याद दिलाती है।”
🌟 निष्कर्ष
गुरु अमर दास जी की यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और सेवा से ही आत्मिक उन्नति संभव है। उनकी विनम्रता, समर्पण और गुरु के प्रति अटूट प्रेम हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में सेवा और भक्ति को अपनाएं।
सा धरती भई हरियावली
जहां मेरा सतगुरु बैठा आए।
वह धरती, जहां मेरा सच्चा गुरु आकर बैठता है, हरी-भरी और फलदायक हो जाती है।
से जन्तु भए हरियावले
जिन्हें मेरा सतगुरु देख्या जाए।
वे प्राणी, जो जाकर मेरे सतगुरु का दर्शन करते हैं, वे भी हरे-भरे हो जाते हैं, यानी उनका जीवन नवचेतना से भर जाता है।
धन धन पिता, धन धन कुल
धन धन स जननी, जिन गुरु जनिया माए।
धन्य है वह पिता, धन्य है वह कुल, धन्य है वह माता, जिन्होंने ऐसे गुरु को जन्म दिया।
धन धन गुरु, जिन नाम अराध्या
आप तरिया, जिन्हें डिठ्ठा, तिन्ह लए छुड़ाए।
धन्य है वह गुरु, जिन्होंने नाम का स्मरण किया, वे स्वयं भी पार हो गए और जिन्होंने उनका दर्शन किया, उन्हें भी पार लगा दिया।
हर सतगुरु मेलहु दया करि,
जन नानक धोवै पाए।
हे प्रभु, मुझ पर कृपा करो और मुझे सच्चे गुरु से मिलाओ, ताकि सेवक नानक उनके चरण धो सके।