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घटस्थ योग

आज के पंचांग में ‘घटस्थ योग’ के रूप में उल्लेख किया गया है। इसी के आधार पर कल रात मुझसे इस विषय में पूछताछ की गई थी, इसलिए मैं यह जानकारी दे रहा हूँ।

सूर्य नक्षत्र से लेकर उस दिन के चंद्र नक्षत्र तक की संख्या गिनी जाती है। फिर उस संख्या को तीन से गुणा किया जाता है और उसमें उस दिन की तिथि (जो शुक्ल प्रतिपदा से गिनी जाती है) जोड़ दी जाती है। यदि इस कुल योग को 7 से भाग देने पर शेषफल 3 आता है, तो वह दिन ‘घटस्थ योग’ माना जाता है।

घटस्थ योग में कोई कार्य आरंभ किया जाए तो वह कार्य सफल होता है और बड़ा लाभ प्राप्त होता है — ऐसी मान्यता है।

उदाहरण:

  • सूर्य नक्षत्र: पूर्वाषाढा
  • चंद्र नक्षत्र: स्वाती
  • तिथि: कृष्ण पक्ष दशमी
    अब गणना इस प्रकार है:

सूर्य से चंद्र नक्षत्र तक की संख्या = 23
23 × 3 = 69
अब शुक्ल प्रतिपदा से गिनी गई तिथि = 25
तो 69 + 25 = 94
अब 94 ÷ 7 करने पर शेष = 3
चूंकि शेष 3 है, इसलिए यह घटस्थ योग हुआ।

यदि शेषफल 0 आता है, तो उसे अर्ध-घटस्थ योग कहा जाता है।

घटस्थ योग में कोई कार्य शुरू किया जाए तो वह कार्य सफल होता है और अचानक बड़ा लाभ होता है। इसलिए जब किसी को अचानक लाभ होता है, तो कहा जाता है – “घटस्थ योग मिला”, “घटस्थ हाथ लगा”, या “घटस्थ सापड गया”।

इन योगों में किसी भी महत्वपूर्ण कार्य की शुरुआत करने में कोई आपत्ति नहीं होती। ऐसी मान्यता है कि इन मुहूर्तों में आरंभ किया गया कार्य शुभ फल देता है। पंचांग या कैलेंडर में यह भी बताया जाता है कि किस दिन घटस्थ योग बन रहा है।”

 

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