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धोखादायक अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था

दो-तीन दिन बुखार था, दवा न भी लेते तो शरीर खुद-ब-खुद ठीक हो जाता। लेकिन आप डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर साहब ने सबसे पहले ढेर सारी जांचें लिख दीं। रिपोर्ट में बुखार का कोई ठोस कारण नहीं मिला, लेकिन कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर थोड़ा बढ़ा हुआ पाया गया — जो आम इंसानों में थोड़ा-बहुत ऊपर-नीचे होना स्वाभाविक बात है।

बुखार तो चला गया, लेकिन अब आप बुखार के मरीज नहीं रहे। डॉक्टर बोले — आपका कोलेस्ट्रॉल ज्यादा है और शुगर भी थोड़ी ज्यादा है, यानी आप ‘प्री-डायबिटिक’ हैं। अब आपको कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर कंट्रोल में रखने के लिए दवाइयां लेनी होंगी। साथ ही खानपान पर कई पाबंदियां भी लगा दी गईं। आपने भले ही खानपान न बदला हो, लेकिन दवाइयां तो नियमित लेने लगे।

ऐसे तीन महीने बीत गए। दोबारा टेस्ट हुआ — कोलेस्ट्रॉल थोड़ा कम हुआ, लेकिन अब ब्लड प्रेशर थोड़ा बढ़ा पाया गया। उसे कंट्रोल करने के लिए एक और दवा दी गई। अब आपकी दवाओं की संख्या हो गई 3।

ये सुनकर आपकी चिंता बढ़ गई — “अब क्या होगा?” इस चिंता में आपकी नींद उड़ गई। डॉक्टर ने नींद के लिए भी दवा शुरू कर दी। अब दवाएं हो गईं 4।

इतनी दवाओं के चलते अब आपको पेट में जलन होने लगी। डॉक्टर बोले — खाने से पहले गैस की गोली ले लो। अब दवाएं हो गईं 5।

ऐसे ही छह महीने बीत गए। एक दिन सीने में दर्द हुआ तो आप इमरजेंसी में पहुंचे। डॉक्टर ने सभी जांचें कीं और बोले — “समय रहते आ गए, वरना बड़ा हादसा हो सकता था।” फिर कुछ खास और महंगी जांचें करवाई गईं।

सभी जांचों के बाद डॉक्टर ने कहा — “पुरानी दवाएं तो चलेंगी ही, अब दिल के लिए दो और दवाएं लेनी होंगी। और आपको एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (हार्मोन विशेषज्ञ) के पास भी जाना होगा।” अब आपकी दवाएं हो गईं 7।

हार्ट स्पेशलिस्ट की सलाह पर आप एंडोक्रिनोलॉजिस्ट के पास गए। उन्होंने शुगर के लिए एक और दवा और थायरॉयड थोड़ा बढ़ा होने के कारण एक और दवा दी।

अब कुल दवाएं हो गईं 9।

अब आप खुद मानने लगे कि आप बहुत बीमार हैं — दिल के मरीज, शुगर के मरीज, नींद आने के मरीज, गैस्ट्रिक के मरीज, थायरॉयड के मरीज, किडनी के मरीज वगैरह वगैरह…

आपको कभी यह नहीं बताया गया कि आप अपनी इच्छाशक्ति, आत्मबल और जीवनशैली सुधारकर स्वस्थ हो सकते हैं। उल्टा बार-बार यही बताया गया कि आप गंभीर मरीज हैं, कमजोर हैं, असहाय हैं, एक टूटी हुई शख्सियत हैं!

फिर छह महीने और बीत गए। दवाओं के साइड इफेक्ट से पेशाब में कुछ समस्याएं आने लगीं। रूटीन जांच में पता चला कि किडनी में कुछ समस्या है। फिर से कई टेस्ट करवाए गए।

रिपोर्ट देखकर डॉक्टर बोले — “क्रिएटिनिन थोड़ा बढ़ा है, लेकिन दवाएं नियमित लेते रहेंगे तो चिंता की बात नहीं।” और दो दवाएं और शुरू कर दीं।

अब कुल दवाएं हो गईं 11।

अब आप भोजन से ज्यादा दवाएं लेने लगे हैं, और दवाओं के कई साइड इफेक्ट्स के चलते धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रहे हैं!!

जिस वजह से आप शुरू में डॉक्टर के पास गए थे — अगर डॉक्टर साहब ने यही कहा होता:

“चिंता की कोई बात नहीं। ये सामान्य बुखार है, किसी दवा की जरूरत नहीं। कुछ दिन आराम करें, खूब पानी पिएं, ताजे फल और सब्जियां खाएं, सुबह टहलें — बस यही काफी है। दवाओं की कोई जरूरत नहीं।”

तो फिर डॉक्टर साहब और दवा कंपनियों का पेट कैसे भरता❓

और सबसे बड़ा सवाल:
किस आधार पर डॉक्टर मरीजों को कोलेस्ट्रॉल, हाई बीपी, डायबिटीज, हार्ट डिजीज और किडनी डिजीज घोषित करते हैं❓❓❓

ये स्टैंडर्ड्स कौन तय करता है❓

चलिए, थोड़ा विस्तार से देखें —

1979 में, अगर ब्लड शुगर 200 mg/dl से ज्यादा होता था, तभी किसी को डायबिटिक माना जाता था। तब दुनिया की सिर्फ 3.5% आबादी को टाइप-2 डायबिटीज थी।

1997 में, इंसुलिन बनाने वाली कंपनियों के दबाव में ये सीमा घटाकर 126 mg/dl कर दी गई। इससे डायबिटिक मरीजों की संख्या 3.5% से बढ़कर 8% हो गई — यानी बिना लक्षण वाले 4.5% लोग बीमार घोषित कर दिए गए! 1999 में WHO ने भी यही मानक स्वीकार किया।

इंसुलिन कंपनियों ने भारी मुनाफा कमाया और नई फैक्ट्रियां लगाईं।

2003 में, ADA (American Diabetes Association) ने फास्टिंग ब्लड शुगर 100 mg/dl को डायबिटीज का मानक घोषित कर दिया। इससे 27% लोग अनावश्यक रूप से डायबिटिक घोषित हो गए।

★ अब ADA के अनुसार अगर खाने के बाद ब्लड शुगर 140 mg/dl से ज्यादा है, तो वह डायबिटीज मानी जाती है। इससे दुनिया की लगभग 50% आबादी डायबिटिक मानी जाने लगी — जिनमें से कई लोग वास्तव में बीमार नहीं हैं।

भारतीय दवा कंपनियां इस मानक को और घटाकर HbA1c 5.5% तक लाना चाहती हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मरीज बनें और दवाएं बिकें।

जबकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि HbA1c 11% तक को भी डायबिटीज न माना जाए।

एक और उदाहरण देखिए:

2012 में, अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रसिद्ध दवा कंपनी पर $3 बिलियन का जुर्माना लगाया। आरोप था कि उनकी डायबिटीज की दवा के कारण 2007–2012 के बीच हार्ट अटैक से मौतें 43% बढ़ गईं।

कंपनी को यह पहले से पता था, लेकिन उन्होंने जानबूझकर यह बात छिपाई क्योंकि उन्हें मुनाफा चाहिए था। इसी दौरान उन्होंने $300 बिलियन का मुनाफा कमाया।

यही है आज की ‘अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था’!!

सोचिए… और सोचना शुरू कीजिए।

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