Sshree Astro Vastu

एक सौ दस वर्षों तक चलने वाले कदम!

एक सौ दस वर्षों तक चलने वाले कदम!

यानि रेगिस्तान का वीर पथ प्रदर्शक – रणछोड़दास राबड़ी!

“साहब! मेरा थैला तो नीचे ही रह गया!”
हेलिकॉप्टर में बेफिक्र बैठ चुके उस वृद्ध ने जैसे ही यह कहा, साथ बैठे सैन्य अधिकारियों ने तुरंत हेलिकॉप्टर को वापस मोड़ लिया और उसे हवाई अड्डे पर उतार लिया।

सूंघा हुआ पर अब भी मजबूत शरीर, गठीली और घनी मूंछें, और सबसे खास – पत्थर जैसे मजबूत पैर! उस बुज़ुर्ग की उम्र थी १०७ साल। हाँ, सिर्फ एक सौ सात वर्ष!

लेकिन वो हेलिकॉप्टर में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कैसे?
दरअसल, उन्हें महान सेनापति फील्ड मार्शल सैम माणेकशॉ ने विशेष और तत्काल बुलावा भेजा था।
वो माणेकशॉ साहब उस समय तमिलनाडु के वेलिंग्टन अस्पताल में भर्ती थे। कभी होश में तो कभी अर्ध-चेतन स्थिति में, वे बार-बार कुछ बोलते जा रहे थे — “पगी… पगी…”

डॉक्टरों ने भी सुना, पर समझ नहीं पाए।

जब पूछा गया, “साहब, ये ‘पगी’ कौन है?”
तब माणेकशॉ साहब ने खुद उस पगी की पूरी कहानी सुनाई और उससे मिलने की इच्छा, नहीं – आदेश दिया!

फौरन सेना ने तलाश शुरू की — और राजस्थान की सीमा पर बसे बनासकांठा जिले के निंबाला गांव से उस बुज़ुर्ग को ढूंढ निकाला। उनके लिए खास हेलिकॉप्टर की व्यवस्था की गई।

जब बुज़ुर्ग को माणेकशॉ साहब का नाम बताया गया, तो उनकी आँखों में एक अलग ही चमक आ गई। उन्होंने घर की महिलाओं से कुछ कहा और पंद्रह-बीस मिनट में महिलाओं ने उनके हाथ में एक कपड़े की थैली पकड़ा दी।

हेलिकॉप्टर उड़ चला, तभी बुज़ुर्ग बोले —
साब! म्हारो थैलो तो नीच्चे रहि गयो!”
हेलिकॉप्टर फिर उतारा गया। थैली लाई गई। सुरक्षा कारणों से उसकी तलाशी ली गई – उसमें निकले दो प्याज़, दो बाजरे की रोटियां और पिठला!

बुज़ुर्ग ने कहा —
सैम साब को बहुत पसंद है! बॉर्डर पर कभी-कभी हमारा खाना चखा करते थे!”

हेलिकॉप्टर दोबारा उड़ा।
माणेकशॉ साहब, जो मृत्युशय्या पर थे – पगी को देखकर उठकर बैठ गए!
“आओ पगी… रणछोड़दास…!” – उनका बुलंद स्वर गूंजा!
पगी ने उन्हें सलाम किया, कांपते हाथों से। साहब ने उसे पास बिठाया, थैली ली… और उस दिन, एक सैनिक और एक सेनापति साथ में बैठे और खाना खाया!

यह कथा श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह ही थी –
बस सुदामा की पोटली में पोहे थे, और पगी की थैली में कांदा-भाकरी और पिठला!

पगी – वो जो पैरों के निशान पहचानता है

“पग” यानी पैर – और “पगी” यानी पैरों के निशान से रास्ता खोजने वाला, वो जो रेगिस्तान में दिशा दिखाता है।

जहाँ तक नजर जाए वहाँ सिर्फ रेत… अंधेरा… दिशा का कोई ठिकाना नहीं।
पर राजस्थान के रेतीले इलाके में जन्मा और पला-बढ़ा व्यक्ति – रेत के हर कण को पहचानता है, अंधेरे में भी!

1901 में जन्मे रणछोड़दास, एक पशुपालक परिवार में।
नाम पड़ा ‘रणछोड़दास’ — जैसे श्रीकृष्ण ने जरासंध से युद्ध में रण छोड़ने का नाटक किया था, वैसे ही!

पर ये कलियुग के रणछोड़दास 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में सीमा पर सबसे आगे खड़े थे!
वे रेत में उभरे ऊंटों के निशानों, इंसानों की चाल, वजन, ऊंचाई – सबका अनुमान सटीक लगाते थे, चाहे दिन हो या रात।

1965 में, जब युद्ध शुरू भी नहीं हुआ था, पाकिस्तान ने कई बार कच्छ के रण में घुसपैठ की।
शुरुआत में उन्होंने ‘विधकोट’ चौकी पर कब्जा कर लिया – लगभग 100 भारतीय सैनिक शहीद हो गए।
भारतीय सेना को तेज़ी से ‘छारकोट’ तक पहुँचाना था, पर रास्ता अनजाना।

रणछोड़दास ने 1200 पाक सैनिकों की सही जगह की जानकारी दी, सेना को 12 घंटे पहले वहाँ पहुँचा दिया।
पाक को गुमान भी नहीं था कि भारत की सेना इतनी जल्दी उन तक पहुँच सकती है।
जवानों ने दुश्मन को धूल चटा दी!

इस विजय में रणछोड़दास पगी का बहुत बड़ा योगदान था!

बीएसएफ ने बनासकांठा की एक पोस्ट को उनका नाम दिया — रणछोड़दास पोस्ट!

सेना ने बनाया खास पद – पगी!

फील्ड मार्शल माणेकशॉ साहब ने रणछोड़दास की प्रतिभा पहचानी और उनके लिए सेना में एक विशेष पद – “पगी” (मार्गदर्शक) बनाया।
इस निर्णय ने 1971 के युद्ध में भी बहुत सहायता की।

पाली नगर पोस्ट जीतने के अभियान में रणछोड़दास ने मार्गदर्शन किया –
अपने प्राणों की परवाह किए बिना!
इसके लिए माणेकशॉ साहब ने उन्हें खुद की जेब से ₹300 इनाम और साथ में भोजन का निमंत्रण भी दिया था।

भारतीय सेना ने उन्हें

  • संग्राम मेडल
  • पुलिस मेडल
  • समर सेवा स्टार
    जैसे सम्मानों से नवाज़ा।

ऐसे साहस की कद्र केवल सैम माणेकशॉ जैसे जिंदादिल सेनानी ही कर सकते थे!

अंतिम पड़ाव और विरासत

27 जून 2008 को माणेकशॉ साहब का निधन हुआ।
2009 में 108 साल की उम्र में रणछोड़दास ने स्वेच्छानिवृत्ति ली।
और 2013 में, 112 साल की उम्र में, पगी ने अंतिम बार रेत में अपने कदम रखे और हमेशा के लिए इस संसार से विदा ले लिया।

आज भी राजस्थान का रेगिस्तान उनके कदमों के निशानों को याद करता है।

जय हिंद!

लेखक का भाव

बहुतों ने यह कहानी शायद पहली बार पढ़ी होगी —
मुझे भी हाल ही में यह जानकारी पढ़ने को मिली। कुछ सैन्य अफसरों ने इसे अंग्रेज़ी में लिखा है। कई समाचार पत्रों ने भी रणछोड़दास जी के बारे में विस्तार से लिखा है।

मराठी में यह जानकारी दुर्लभ है।
यह अनुवाद उसी जानकारी का भावपूर्ण रूपांतरण है।
यदि विवरण में कुछ त्रुटि रह गई हो, तो क्षमा करें।

कहा जाता है हाल के एक हिंदी युद्ध फिल्म में संजय दत्त ने ‘पगी’ का किरदार निभाया है।
गुजराती लोकगीतों में रणछोड़दास जी की वीरता का जिक्र होता है।

एक सामान्य इंसान के लिए इससे बड़ा सम्मान और क्या होगा?

मन से सलाम – मन से नमन!

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×