तुलसी ममता राम सो, समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख, दास भय भाव पार।
अर्थ: तुलसी कहते है कि जिनकी श्री राम में ममता और सब संसार में समता, जिनकी किसी के प्रति राग, द्वेष, दोष ओर दु:ख का भाव नहीं है श्री राम के ऐसे भक्त भाव सागर से पार हो चुके है।
एकबार रामकृष्ण परमहंस से एक शिष्य ने पूछा–”गुरुदेव! क्या कारण है कि एक मंत्र, एक ही उपासना प्रक्रिया को अपनाते हुए भी एक व्यक्ति चमत्कारी सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है, ऋद्धियों, सिद्धियों का स्वामी बन जाता है जबकि दूसरे को कोई विशेष लाभ नहीं मिल पाता?”
परमहंस ने उत्तर में एक कथा सुनायी जो इस प्रकार थी–
किसी राज्य के मन्त्री ने अपने जप, तप से विशेष आध्यात्मिक शक्ति अर्जित करली। उसकी चमत्कारी विशेषताओं की सूचना राजा को मिली। राजा ने मन्त्री को बुलाकर रहस्य पूछा तो उसने बताया, यह सब अमुक मन्त्र की उपासना का चमत्कार है। इसकी उपासना, साधना द्वारा सब व्यक्ति प्राप्त कर सकता है। राजा ने भी मन्त्र और सम्बन्धित विधि-विधान पूछा और उपासना करने लगे।
एक वर्ष तक वे जप करते रहे। पर उन्हें वह उपलब्धियाँ प्राप्त नहीं प्राप्त हो सकीं जो मन्त्री को हुई थीं। निराश होकर एक दिन मन्त्री को बुलाकर कारण पूछा। मन्त्री ने उत्तर देने के बदले राज्य के एक किशोर लड़के को बुलाया और कहा–बेटे! राजा के गाल पर एक चपत लगाओ।
अपनी आज्ञा को मन्त्री ने बार-बार दुहराया, पर बालक अपने स्थान से टस से मस नहीं हुआ। मन्त्री की धृष्टता एवं उद्दण्डता को देखकर राजा का चेहरा तमतमा उठा। उसने लड़के को कड़े स्वर में निर्देश दिया–” इस मन्त्री को दो चपत लगाओ !” लड़के ने तुरन्त दो चपत जड़ दिए। राजा का चेहरा अभी भी क्रोध के आवेश में तमतमा रहा था।
मन्त्री ने नम्रता से उत्तर दिया, “राजन! धृष्टता क्षमा करे। यह सब आपके समाधान के लिए किया गया था। आपके प्रश्न का यही उत्तर है। वाणी से कही बात अधिकारी पात्र की ही मानी जाती है। मन्त्र जप से चमत्कार पात्रता विकसित होने पर ही आता है।”
इस कथा को सुनाने के बाद रामकृष्ण परमहंस ने कहा–”उपासना का–मन्त्र जप का–चमत्कारी प्रतिफल उन्हें ही मिल पाता है जिन्होंने अपने गुण, कर्म, स्वभाव को परमात्मा के अनुरूप ढाल लिया हैं।‘