Sshree Astro Vastu

Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

पृथ्वी गोल है या समतल ,यह सबसे पहले किसने कहा की पृथ्वी गोल है

जैसा कि हम बच्चपन से जानते और सुनते आ रहे है की पृथ्वी गोल है और हमे यूरोप वालो ने बताया है की पृथ्वी गोल है।और सबसे प्रथम बार 350 ईसा पूर्व के आसपास, अरस्तू ने घोषणा की कि पृथ्वी एक गोलाकार है, ऐसा हमे बताया और पढ़ाया जाता है जो पूर्णतः असत्य है।

सनातन धर्म का इतिहास वेद से प्रारंभ होता है वेदों में कई श्लोक और मंत्रो में बताया गया है की पृथ्वी गोल है ।

पुराणों , वेद में जो भी वैज्ञानिक बात कही गई है, वह उदाहरण या उपमा के रूप कही गई है। मुख्य रूप में नहीं कही गई है। उदाहरणार्थ यजुर्वेद के 23 वें अध्याय में यज्ञ का वर्णन करते हुए कहा है-

पृच्छामि त्वां परमन्त: पृथिव्या: – मैं पूछता हूँ पृथ्वी का परम छोर क्या है?

इसका उत्तर देते हुए कहा गया है |

“इयं वेदि: परो अन्त: पृथिव्या:”- यह वेदी जहॉं हम यज्ञ कर रहे हैं, पृथ्वी का परला सिरा है।

प्रत्येक गोल वस्तु का आदि तथा अन्त एक ही स्थल होता है, जो की इस वेद मन्त्र में बताया गया है|

 

ध्रुव का अर्थ होता है constant अर्थात जो एक जैसा रहे जिसमे परिवर्तन न हो । पृथ्वी जिस गति में घुमती है वो सदा एक जैसी रहती है पृथ्वी जिस कक्ष में घुमती है वो सदा एक जैसी रहती है अर्थात वो कभी अपने पथ से विचलित नही होती । जिस नियम व् सिद्धांत से पहले घुमती थी आज भी उसी नियम व् सिद्धांत से घूम रही है उसमे कोई परिवर्तन नहीं हुआ ।

 

अब कुछ प्रमाण जिससे सिद्ध होता है, की पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और किस कारण परिक्रमा करती है-

 

आयं गौः — प्रयन्त्सवः ( यजुर्वेद 3/6)

अर्थात :- यह पृथ्वी जल सहित सूर्य के चारो और चक्कर लगाती है ।

 

आ कृष्णेन — भुवनानि पश्यन ( यजु 33/43 )

अर्थात :- सविता अर्थात सूर्य जगत का प्रकाशक सब लोको के साथ के आकर्षण में सदैव अपनी धुरी पर घूमता रहता है ।

 

और पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा किस आधार पर करती है उसका विवरण इस मन्त्र में भली भांति दिया है ।

उक्षा दाधार पृथिवीमुत द्याम ( ऋग्वेद 10/31/8 )

अर्थात :- सूर्य आकर्षण के द्वारा पृथ्वी को धारण करता है

 

एराटोस्थनिज तथा अरस्तू से पहले भी हमारे धर्म ग्रंथों में पृथ्वी के गोल होने की बात कही गई थीं।

 

मैं यहां भागवत के एक प्रसंग के अनुसार यह बात बताने की कोशिश करूंगी । एक बार सतयुग में ही हिरण्यकशिपु का बड़ा भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर पताल लोक ले गया था तब देवताओं की गुहार पर भगवान विष्णु ने वराह (सूअर ) के रूप में अवतरित होकर हिरण्याक्ष का वध किया तथा गेंद की तरह गोल पृथ्वी को अपने दांत पर लेकर जल से बाहर निकले थे

 

अतः इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी की भौतिक गणना तथा अन्य सिद्धांत भारत से ही सारी दुनिया में गए हैं। और ये जितने भी आधुनिक वैज्ञानिक थे या हैं , कहीं न कहीं भारतीय दर्शन तथा ज्ञान विज्ञान से प्रभावित तथा संपर्क में रहे हैं।

 

हम भारतवासी एक कस्तुरी मृग की तरह मृगतृष्णा में हमेशा फंसे रहते हैं कि, कस्तुरी की सुगंध कही बाहर से आ रही है जबकि कस्तुरी उसकी नाभि में ही होती है

 

1268 ई. में होयसला प्राधिकरण, सोमनाथ द्वारा निर्मित चेन्नाकेशव मंदिर, होयसला साम्राज्य की विरासत और संस्कृति का एक जीवंत उदाहरण है, और यह मंदिर सोपस्टोन का उपयोग करके बनाया गया था।

1268 ई. में होयसला प्राधिकरण, सोमनाथ द्वारा निर्मित चेन्नाकेशव मंदिर, होयसला साम्राज्य की विरासत और संस्कृति का एक जीवंत उदाहरण है, और यह मंदिर सोपस्टोन का उपयोग करके बनाया गया था।

1268 ई. में होयसला प्राधिकरण, सोमनाथ द्वारा निर्मित चेन्नाकेशव मंदिर, होयसला साम्राज्य की विरासत और संस्कृति का एक जीवंत उदाहरण है, और यह मंदिर सोपस्टोन का उपयोग करके बनाया गया था। एक अद्भुत आनंद, इस मंदिर की रचनात्मक योजना दुनिया भर से लोगों को आकर्षित करती है। पश्चिमी गर्भगृह के चारों ओर का बैंड भागवत पुराण को चित्रित करता है। दक्षिणी गर्भगृह के चारों ओर की बाहरी दीवार पर दशावतारम की नक्काशी की गई थी। वरव अवतार सोमनाथपुरा केशव मंदिर से उनमें से एक था। नक्काशी में क्या अनोखा है? हमेशा की तरह, भगवान विष्णु दो हाथों में शंख नाद चक्र रखते हैं, लेकिन यदि आप अन्य दो हाथों को देखें, तो उनके पास एक गोलाकार गेंद है। यह क्या है?

 

जब आप कहते हैं, “जब यह सार्वजनिक जानकारी बन गई,” तो आप केवल उन पश्चिमी सूचना बैंकों के बारे में चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने इस तथ्य को मान्यता दी है कि सूर्य निकट ग्रह प्रणाली का केंद्र बिंदु है और उनके समाप्त होने के बाद पृथ्वी इसके चारों ओर घूम रही है। नवीनतम सेटअप प्रस्ताव से पता चलता है कि भागवतम को महाभारत युग के अंत से, कलियुग की शुरुआत (3102 ईसा पूर्व) और नवीनतम दौर में, 2600 ईसा पूर्व में शामिल किया गया था।

 

इसका मतलब यह है कि पृथ्वी गोल है यह जानकारी 2600 ईसा पूर्व इस मंदिर को बनाने वालों के पास थी I

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×