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संदेह

जब पति नहाने गया होता है, तभी उसके मोबाइल पर एक संदेश आता है:
“हाय, गुड मॉर्निंग डियर”
(संदेश फ्रॉम बेबी)

पत्नी सहज ही उस संदेश को पढ़ लेती है और सोच में पड़ जाती है, यह “बेबी” कौन है?
पति के बाथरूम से आने पर वह उसे बताती है कि किसी “बेबी” का संदेश आया है।
पति मुस्कुराता है, मोबाइल उठाकर जवाब देता है,
“हाय बेबी, हाऊ आर यू?”
और अपने काम में लग जाता है।

पत्नी यह जवाब भी देखती है और पूरा दिन सोचती रहती है, यह “बेबी” आखिर कौन हो सकती है?
शाम को जब पति घर लौटता है, तो पत्नी उससे पूछती है, यह बेबी कौन है?”
पति केवल मुस्कुराता है और बिना जवाब दिए अपने काम में लग जाता है।

कुछ दिन ऐसे ही निकल जाते हैं।
फिर एक सुबह, मोबाइल पर एक और संदेश आता है:
“हाय, आज तो मिलोगे न? बहुत याद आ रही है तुम्हारी।”
(संदेश फ्रॉम बेबी)

यह पढ़कर पत्नी के मन में शक और बढ़ जाता है।
बार-बार ऐसे ही संदेश आते रहते हैं।
पति हर बार जवाब देता है, और यह देखकर पत्नी का शक दिन-पर-दिन गहराता जाता है।

फिर एक दिन, पत्नी को पति की जेब में सिनेमा की दो टिकटें मिलती हैं।
उसके मन में गुस्सा उफान मारता है।
आखिरकार, यह शक क्रोध में बदल जाता है।
दोनों के बीच जबरदस्त झगड़ा होता है।
पत्नी के मन में गांठ पड़ जाती है।

उस गुस्से और भावावेश में, पत्नी उसी दिन पति के ऑफिस जाने के बाद एक चिट्ठी लिखती है:
मैं घर छोड़कर मायके जा रही हूँ, हमेशा के लिए…”

जब पति घर लौटता है और वह चिट्ठी पढ़ता है, तो स्तब्ध और सुन्न रह जाता है।

पंद्रह दिन बीत जाते हैं।
एक दिन पत्नी अपने गाँव में स्थित मायके के घर पर होती है।
घर की घंटी बजती है।
पत्नी दरवाज़ा खोलती है।
दरवाजे पर दस साल की एक बेहद प्यारी बच्ची खड़ी होती है।
बच्ची पूछती है, क्या आप अमुक की मिसेज हैं?”
पत्नी कहती है, हाँ।”
तब बच्ची अपने हाथ में पकड़ा हुआ एक पत्र पत्नी को देती है।
पत्नी पत्र पढ़ने लगती है:

 

प्रिय सखी,
जिस ‘बेबी’ को लेकर इतना बड़ा तूफान खड़ा हुआ और तुम घर छोड़कर चली गई, वही ‘बेबी’ तुम्हारे सामने खड़ी है।
यह प्यारी बच्ची अनाथ आश्रम में रहती है।
इसीसे मैं बात करता था, सिनेमा देखने जाता था।
जब तुमने पहली बार पूछा कि ‘यह बेबी कौन है?’ तो मैंने जानबूझकर नहीं बताया।
सोचा, थोड़ा मज़ाक करूँ।
पर तुम्हारा ‘बेबी-संदेह’ बढ़ता ही गया।
और यहीं हमारे रिश्ते में विश्वास का दरार आ गया।
फिर भी, मैंने तय किया था कि मैं बेबी से तुम्हारी मुलाकात करवाऊँगा।
लेकिन तुम सुनने के मूड में ही नहीं थीं और गुस्से में घर छोड़कर चली गईं।

और हाँ, एक और बात।
यह जो बेबी तुम्हारे सामने खड़ी है, वह कोई और नहीं, बल्कि तुम्हारी ही बेटी है।

रुको, चौंको मत।
शांत होकर आगे पढ़ो।

हमारी शादी से दो साल पहले की बात है।
तुम कॉलेज के अंतिम वर्ष में थीं।
वहाँ एक प्रोफेसर ने नोट्स देने के बहाने तुम्हें घर बुलाया।
तुम्हें कॉफी में नशीला पदार्थ दिया और तुम्हारे साथ ‘वो घिनौना कार्य’ किया।
इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी, लेकिन प्रकृति ने अपना काम किया।
काफी कोशिशों के बाद भी गर्भपात नहीं हो पाया।
इज्ज़त का मुद्दा न बने, इसलिए तुम्हारे घरवालों ने तुम्हें छह महीने तक घर में छुपा दिया।
तुम्हारे पिता खुद डॉक्टर थे, इसलिए ज़्यादा शोर-शराबा नहीं हुआ।
बच्चे का जन्म हो गया।

फिर, यह बच्चा तुम्हारे वैवाहिक जीवन में अड़चन न बने, इसलिए तुम्हारे पिता ने इसे गाँव के अनाथ आश्रम में छोड़ दिया।
और यही बच्चा है यह बेबी।
चाहो तो इसके बाएँ कंधे पर बना तिल देखकर पहचान सकती हो, जो तुमने इसे पहली बार रोते हुए देखा था।
या फिर सीधे अपने पिता से पूछ लो।

(पत्नी तुरंत उस बच्ची के पास जाती है और उसके बाएँ कंधे का तिल देखती है।
तिल देखते ही वह अंदर से टूट जाती है।
आँखें आंसुओं से भर जाती हैं।
लेकिन पत्र अभी बाकी है।
वह फिर से पढ़ना शुरू करती है।)

अब यह सब मुझे कैसे पता?
तुम्हारे शर्मीले पिता ने हमारी शादी के एक महीने पहले मुझसे मिलकर यह सब बता दिया था।
और कहा था कि चाहो तो शादी तोड़ सकते हो।
फिर भी मैंने तुम्हें स्वीकार किया, क्योंकि उस घटना में तुम्हारी कोई गलती नहीं थी।
और हमारी शादी हो गई।

लेकिन मैं बीच-बीच में उस बेबी से मिलने जाता रहा।
उसके साथ समय बिताना मुझे अच्छा लगता था।
उस बच्ची ने मुझसे लगाव बना लिया था।

बस, अब मैंने सब कह दिया है।
अब यह तुम्हारे ऊपर है।
अगर तुमने फैसला किया है कि हम फिर से साथ आएँगे, तो और तभी गैलरी में आना।

सदैव तुम्हारा।”

पत्नी तुरंत दौड़ते हुए गैलरी में जाती है।
नीचे सड़क पर पति खड़ा होता है, शांत और मुस्कुराते हुए।
और पत्नी की आँखों से आँसुओं का सैलाब बहने लगता है।

क्योंकि कोई भी वजह हो, पति-पत्नी के बीच ‘संदेह’ के लिए कभी जगह नहीं होनी चाहिए।
शांतिपूर्वक बात करके समस्या का समाधान करें और मन को हल्का रखें।
क्योंकि दुनिया में ‘संदेह’ ही एकमात्र ऐसा रोग है, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं निकला है।

उसका इलाज बस एक ही है…
रिश्ते में विवाद नहीं, संवाद होना चाहिए।

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