क्योंकि ये ही वो लोग हैं,जो स्वीकार कर चुके है, कि आप उनसे बेहतर है!
संसार में कोई किसी से जलता नहीं है।जड़ शरीर और चेतन शरीर दोनों मिल कर एक जैसे दिखाई देते हैं जिसके वजह से चौबीसों घण्टे भ्रम बना रहता है कि यह मै हूं,इससे सिद्ध होता है कि दूसरा भी कोई है।और जहां द्वैत रहता है वहां पर दोष बना रहता है
जिसके वजह से राग और द्वेष, इर्ष्या, कपट,कुटिलता, दंभ, मत, मत्सर, पाखण्ड, काम क्रोध,लोभ, मोह और माया इत्यादि सब बने रहते हैं।यह प्रकृति का स्वभाव है और जब तक प्रकृति बनी हुई रहती है तब तक इन सब से पीछा नहीं छूट सकता है।लेकिन जब परमात्मा कृपा करते हैं फिर संत के रूप में प्रकट हो कर सत्संग करने के लिए मन के अंदर प्रेरणा के माध्यम से प्रेरित करते हैं।
जिसके वजह से मन सत्संग, अध्ययन,भजन, कीर्तन, संध्या, ध्यान और नाम जप निरंतर चलने लगता है जिसके वजह से मन अंतर्मुखी हो जाता है फिर बाहर से आने वाला विषय के प्रति मन आकर्षित नहीं होता है जिसके वजह से वासना उपासना बन कर शक्ति प्रदान करने लगती है।और उस शक्ति के प्रभाव से जड़ शरीर से चेतन शरीर अलग हो जाता है फिर प्रकृति बदल जाती है जिसके वजह से स्वभाव बदल जाता है फिर सब में एक ही सत्य का बोध हो जाता है जिसके वजह से किसी घृणा हो ही नहीं सकता है, तथा यह ज्ञान हो जाता है कि कोई किसी से न जलने वाला है न था और न ही होगा।यह सब प्राकृतिक स्वभाव है बदलता रहता है।राम राम