Sshree Astro Vastu

Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

मर्यादा

बहुरूपिया राज दरबार में पहुंचा, प्रार्थना की- “अन्नदाता बस 5 आने का सवाल है और महाराज से बहुरूपिया और कुछ नहीं चाहता।”

राजा ने कहा- मैं कला का पारखी हूं, कलाकार का सम्मान करना राज्य का नैतिक कर्तव्य है, कोई ऐसी कला दिखाओ कि मैं प्रसन्नता से 5 आना पुरस्कार में दे सकूं, पर दान नहीं दे सकता।

कोई बात नहीं अन्नदाता! मैं आप के सिद्धांत को तोड़ना नहीं चाहता, पर मुझे अपना स्वांग दिखाने के लिए 3 दिन का समय चाहिए, कहकर बहुरूपिया चला गया।

दूसरे दिन नगर से बाहर एक टीले के ऊपर समाधि मुद्रा में एक साधु दिखाई दिए। नेत्र बंद, तेजस्वी चेहरा, लंबी जटाएं।

चरवाहों ने उस साधु को देखा।

 

उन्होंने पूछा- स्वामी जी!आपका आगमन कहां से हुआ है?

 

कोई उत्तर नहीं!

 

क्या आपके लिए कुछ फल, दूध की व्यवस्था की जाए?

 

कोई उत्तर नहीं!

 

शाम को चरवाहों ने नगर में चर्चा की। घर-घर तपस्वी की चर्चा होने लगी। दूसरे दिन नगर के अनेक शिक्षित, धनिक, दरबारी, थाली में मेवा, फल, नाना प्रकार के पकवान लेकर दर्शन के लिए दौड़ पड़े।

 

सबके आग्रह करने पर भी साधु ने उन वस्तुओं को ग्रहण करना तो दूर, आंख भी नहीं खोली।

 

यह बात मंत्री तक पहुंची। वह भी स्वर्ण मुद्राएं लेकर दर्शनार्थ पहुंचा और निवेदन किया- “बस एक बार नेत्र खोल कर कृतार्थ कीजिए!”

 

मंत्री का निवेदन भी व्यर्थ गया। अब तो सभी को निश्चय हो गया कि यह संत अवश्य पहुंचा हुआ है।

 

मंत्री ने राजा के महल में जाकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया, तो राजा सोचने लगे, जब मेरे राज्य में इतने बड़े तपस्वी का आगमन हुआ है तो उनके स्वागत के लिए मुझे जाना चाहिए।

 

दूसरे ही दिन सुबह वे दर्शनार्थ जाने को उद्यत हुए। खबर बिजली की तरह फैल गई। जिस मार्ग से राजा की सवारी निकलने वाली थी, वह साफ करा दिए गए। रास्ते में सुरक्षा व्यवस्था ठीक कर दी गई।

 

राजा ने तपस्वी के चरणों में अशर्फियों का ढेर लगा दिया और उनके चरणों में मस्तक टेक कर आशीर्वाद की कामना करने लगे ।

 

पर तपस्वी विचलित नहीं हुआ।

अब तो प्रत्येक व्यक्ति को निश्चय हो गया कि तपस्वी बहुत त्यागी और सांसारिक वस्तुओं से दूर है।

 

चौथे दिन बहुरूपिया फिर दरबार में पहुंचा, हाथ जोड़कर बोला- “राजन! अब तो आपने मेरा स्वांग देख लिया होगा और पसंद भी आया होगा, अब तो मेरी कला पर प्रसन्न होकर मुझे 5 आने का पुरस्कार दीजिए, ताकि परिवार के पालन पोषण हेतु आटा दाल की व्यवस्था कर सकूं!”

 

राजा चौका- कौन सा स्वाँग?

 

बहुरूपिए ने कहा-“वही तपस्वी साधु वाला, जिसके सामने आप ने अशर्फियों का ढेर लगा दिया था!”

 

राजा ने कहा- “तू कितना मूर्ख है! जब राजा सहित पूरी जनता, तेरे चरणों में सर्वस्व लुटाने आतुर खड़ी थी, तब तुमने धन दौलत पर दृष्टि तक नहीं डाली,और अब 5 आने के लिए चिरौरी कर रहा है।”

 

बहुरूपिए ने कहा- “राजन! उस समय एक तपस्वी की मर्यादा का प्रश्न था। एक साधु के वेश की लाज रखने की बात थी। भले ही साधु के रूप में मैं, बहुरूपिया था,पर था तो एक साधु ही!  फिर उस धन दौलत की ओर दृष्टि उठाकर कैसे देख सकता था? उस समय सारे वही भाव थे,और अब पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए, अपने श्रम के पारिश्रमिक और पुरस्कार की मांग है आपके सामने।”-संकलित

 

*ऐसा ही एक संदर्भ आता है की मायाजाल फैलाने वाला परम् तपस्वी मायावी रावण ने भी कहा था कि “अपने मायाजाल से मैं सीता के समक्ष यदि राम का स्वरूप धर कर जाऊंगा तो फिर वासना तथा काम के भाव ही नही आ पाएंगे”

 

जय श्री राम

सदैव प्रसन्न रहिये

 

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है

उसके पास समस्त है!

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×