Sshree Astro Vastu

राहु केतु के नोडल चक्र के भेद उनकी संख्या

राहु-केतु का नोडल चक्र: कर्मिक रहस्यों का खगोलीय द्वार

 

     राहु और केतु, वैदिक ज्योतिष के छाया ग्रह, जीवन के कर्म चक्र को नियंत्रित करने वाले शक्तिशाली तत्व हैं। ये न केवल खगोलीय घटनाओं जैसे ग्रहणों के कारक हैं, बल्कि पिछले जन्मों के कर्मों और वर्तमान जीवन के उद्देश्य को समझने का माध्यम भी। इस लेख में हम इनके नोडल चक्र के भेदों, संख्या, क्रमबद्ध संरचना और प्रभावों का चरणबद्ध शोधात्मक विश्लेषण करेंगे, जो वेद, पुराण, शास्त्र और श्लोकों पर आधारित है।

 

नोडल चक्र का खगोलीय परिचय

 

    राहु और केतु चंद्रमा की कक्षा के दो बिंदु हैं जहां सूर्य और चंद्रमा की कक्षाएं प्रतिच्छेद करती हैं। ये कोई भौतिक ग्रह नहीं, बल्कि छाया बिंदु हैं, जिन्हें #ज्योतिष में ग्रह का दर्जा प्राप्त है।

    उत्पत्ति की पौराणिक कथा: समुद्र मंथन में असुर स्वरभानु ने अमृत पी लिया, लेकिन विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसके सिर और धड़ को अलग कर दिया। सिर राहु और धड़ केतु बन गया। स्कंद पुराण में वर्णित यह कथा बताती है कि राहु सूर्य-चंद्र को निगलने की कोशिश करता है, जिससे ग्रहण होते हैं।

 

खगोलीय गणित: राहु उत्तरी नोड (ascending node) है जहां चंद्रमा उत्तर की ओर बढ़ता है, जबकि केतु दक्षिणी नोड (descending node) है। इनकी कक्षा 18 वर्षों में पूर्ण होती है, और वे हमेशा 180 डिग्री की दूरी पर रहते हैं।

 

वैदिक संदर्भ: ऋग्वेद में राहु को ‘सर्प’ के रूप में वर्णित किया गया है, जो सूर्य को ढकता है। महाभारत और रामायण में भी इनकी चर्चा है, जहां वे कर्मिक प्रभावों के प्रतीक हैं।

 

नोडल चक्र के भेद: विविधता और वर्गीकरण

नोडल चक्र के भेद मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं – मीन नोड (mean node) और ट्रू नोड (true node)। ये भेद खगोलीय गणित और ज्योतिषीय फलकथन में महत्वपूर्ण हैं।

 

मीन नोड: औसत गति पर आधारित, जो सामान्य गोचर और दशा गणना में उपयोग होता है। बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में इसका उल्लेख है कि मीन नोड सामान्य जीवन प्रभावों के लिए उपयुक्त है।

 

ट्रू नोड: वास्तविक गति पर आधारित, जो जन्मकुंडली में नक्षत्र स्थिति निर्धारित करने में सहायक। यदि ट्रू नोड नक्षत्र परिवर्तन करता है, तो कर्मिक प्रभाव बदल जाते हैं।

अन्य भेद: पुराणों में राहु को ‘नीलांबर’ और केतु को ‘धूमकेतु’ के रूप में वर्णित किया गया है, जहां राहु भौतिक इच्छाओं का प्रतीक है और केतु आध्यात्मिक मुक्ति का।

ये भेद कुल दो मुख्य हैं, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में इनकी संख्या को नवग्रहों में शामिल कर नौ माना जाता है, जहां राहु-केतु छाया ग्रह हैं।

 

नोडल चक्र की संख्या और क्रमबद्ध संरचना

नोडल चक्र में मुख्यतः दो बिंदु हैं – राहु और केतु, लेकिन इनका चक्र 18 वर्षों का है, जो कर्म चक्र की संख्या को दर्शाता है।

 

संख्या: दो नोड्स, लेकिन चक्र में 18 वर्षी से जुड़े 18 प्रमुख परिवर्तन होते हैं, जैसे 18 डिग्री पर प्रभाव।

 

क्रम: राहु और केतु हमेशा विपरीत राशियों में रहते हैं। उदाहरणस्वरूप, यदि राहु मेष में है, तो केतु तुला में होगा। उनका गोचर वक्री होता है, अर्थात उल्टी दिशा में।

 

क्रमबद्ध चरण:

प्रथम चरण: खगोलीय गणना से नोड्स की स्थिति निर्धारित करें। चंद्रमा की कक्षा से सूर्य की कक्षा का प्रतिच्छेद बिंदु।

 

द्वितीय चरण: जन्मकुंडली में राहु-केतु अक्ष (axis) की पहचान, जैसे 1-7 भाव में प्रभाव।

 

तृतीय चरण: नक्षत्र गणना – राहु अश्विनी नक्षत्र में हो तो भौतिक सफलता, जबकि केतु मघा में आध्यात्मिक झुकाव।

 

चतुर्थ चरण: डिग्री विशेष प्रभाव – 0-10 डिग्री में प्रारंभिक कर्मिक सबक, 10-20 में परिपक्वता, 20-30 में समापन।

 

नक्षत्र और डिग्री-विशेष प्रभाव: कर्मिक दर्पण

     राहु और केतु 27 नक्षत्रों में अपनी स्थिति से जीवन प्रभावित करते हैं। प्रत्येक नक्षत्र में डिग्री के अनुसार प्रभाव बदलता है।

 

राहु के नक्षत्र प्रभाव:

    अश्विनी (0-13.20 डिग्री मेष): नवीनता और तेज गति, लेकिन अस्थिरता। पिछले जन्म की अधूरी इच्छाएं सक्रिय।

रोहिणी (10-23.20 डिग्री वृष): भौतिक सुख, लेकिन लालच। डिग्री 18 पर कर्मिक परिवर्तन।

 

    पुनर्वसु (20-3.20 डिग्री कर्क): यात्रा और परिवर्तन, डिग्री 15 पर आकस्मिक लाभ।

 

केतु के नक्षत्र प्रभाव:

मघा (0-13.20 डिग्री सिंह): पूर्वजों से जुड़े कर्म, डिग्री 10 पर मुक्ति की ओर झुकाव।

मूल (0-13.20 डिग्री धनु): रहस्यमयी प्रभाव, पिछले जन्म के दुखों का समापन।

रेवती (16.40-30 डिग्री मीन): #आध्यात्मिक अंत, डिग्री 25 पर कर्म चक्र पूर्ण।

ये प्रभाव कर्म चक्र को समझने में सहायक हैं, जहां राहु भविष्य की ओर खींचता है और केतु अतीत से मुक्त करता है।

 

कर्म चक्र और पिछले जन्म: जीवन उद्देश्य का रहस्य

राहु-केतु नोडल चक्र कर्म चक्र के प्रवेश (राहु) और निकास (केतु) द्वार हैं।

 

पिछले जन्म का प्रभाव: केतु पिछले जन्म के सबकों को दर्शाता है, जैसे यदि केतु 12वें भाव में हो तो पूर्व जन्म में त्याग की कमी। बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कहा गया है कि केतु मुक्ति का प्रतीक है।

 

वर्तमान उद्देश्य: राहु नई इच्छाओं को जन्म देता है, जैसे राजनीति या तकनीक में सफलता। 18 वर्षीय चक्र में हर 9 वर्ष पर कर्मिक समायोजन होता है।

 

शोधात्मक विश्लेषण: पुराणों में राहु को ‘तमोगुणी’ कहा गया है, जो दंगा-फसाद पैदा करता है, जबकि केतु सन्यासी है। जीवन में ये कर्म चक्र को संतुलित करते हैं, जहां अशुभ स्थिति में अलगाव या हानि, शुभ में सफलता।

 

श्लोक, मंत्र और शास्त्रीय प्रमाण

वैदिक ग्रंथों में राहु-केतु के मंत्र और श्लोक कर्म निवारण के लिए हैं।

 

राहु स्तोत्र: “ओम भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः” – स्कंद पुराण से, दोष निवारण के लिए 18,000 जप।

 

केतु मंत्र: “पालाश पुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं | रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्” – पुराणिक, आध्यात्मिक शांति के लिए।

 

गायत्री मंत्र: “ओम नाकध्वजाय विद्महे पद्म हस्ताय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात्” – पिछले जन्म के प्रभाव शांत करने के लिए।

ये मंत्र ज्योतिष शास्त्र में प्रमाणित हैं, जो नोडल चक्र के प्रभाव को संतुलित करते हैं।

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×