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वोशी-वेशी, और उभयचरी योग का विस्तृत शोधात्मक विश्लेषण प्रभाव: परिभाषा और निर्माण

    वैदिक ज्योतिष में वोशी, वेशी, और उभयचरी योग सूर्य के आसपास ग्रहों की विशेष स्थिति के कारण बनने वाले सूर्यादि योग हैं। ये योग सूर्य के साथ अन्य ग्रहों (चंद्रमा, राहु, और केतु को छोड़कर) के विशिष्ट भावों में स्थित होने पर बनते हैं। इनका निर्माण निम्नलिखित प्रकार से होता है:

 

वेशी योग:

    परिभाषा: जब सूर्य से दूसरे भाव (अगले भाव) में चंद्रमा, राहु, और केतु को छोड़कर कोई शुभ ग्रह (जैसे बृहस्पति, शुक्र, बुध, या शनि, यदि शुभ स्थिति में हो) स्थित हो, तो वेशी योग बनता है।

 

      शास्त्रीय उल्लेख: बृहत् पराशर होरा शास्त्र में, सूर्य को आत्मा और राजकीय सम्मान का कारक माना गया है। वेशी योग के बारे में पराशर मुनि कहते हैं:

 

“सूर्यस्य द्वितीये ग्रहः शुभः चन्द्रराहुकेतूनां विना वेशी योगः।”

 

     अर्थात, सूर्य से द्वितीय भाव में शुभ ग्रह होने पर वेशी योग बनता है, जो जातक को धन, यश, और बुद्धिमत्ता प्रदान करता है।

 

वोशी योग:

      परिभाषा: जब सूर्य से बारहवें भाव (पिछले भाव) में चंद्रमा, राहु, और केतु को छोड़कर कोई शुभ ग्रह हो, तो वोशी योग बनता है।

शास्त्रीय उल्लेख: फलदीपिका में, मुनिवर लिखते हैं:

 

“सूर्यस्य द्वादशे ग्रहः शुभः वोशी योगः, धनवृद्धिः, विद्या, विदेश यात्रा च।”

      अर्थात, सूर्य से बारहवें भाव में शुभ ग्रह होने पर वोशी योग बनता है, जो धन, विद्या, और विदेश यात्राओं का कारक है।

 

उभयचरी योग:

     परिभाषा: जब सूर्य के दोनों ओर, अर्थात दूसरे और बारहवें भाव में, चंद्रमा, राहु, और केतु को छोड़कर शुभ ग्रह हों, तो उभयचरी योग बनता है। यह योग अत्यंत शुभ माना जाता है।

        शास्त्रीय उल्लेख: ज्योतिष ग्रंथों में उभयचरी योग को राजयोग की श्रेणी में रखा गया है:

“सूर्यस्य उभयतः शुभग्रहाः उभयचारी योगः, राजमान्यं, यशः, समृद्धिः च।”

 

      अर्थात, सूर्य के दोनों ओर शुभ ग्रह होने पर उभयचरी योग बनता है, जो राजकीय सम्मान, यश, और समृद्धि देता है।

 

जातक के जीवन पर प्रभाव

     इन योगों का प्रभाव जातक की कुंडली में सूर्य और संबंधित ग्रहों की स्थिति, बल, और शुभता पर निर्भर करता है। निम्नलिखित प्रभाव सामान्य और विशिष्ट हैं:

 

वेशी योग:

लाभ:

      बुद्धिमत्ता और वाकपटुता: वेशी योग युक्त व्यक्ति अच्छा वक्ता, बुद्धिमान, और ज्ञानी होता है।

      धन और समृद्धि: यह योग धन लाभ, सामाजिक प्रतिष्ठा, और सफलता प्रदान करता है। विशेष रूप से शुक्र या बृहस्पति से बनने वाला वेशी योग जातक को कला, व्यापार, या नेतृत्व में निपुण बनाता है।

आशावाद: जातक आशावादी और उदार स्वभाव का होता है।

 

हानि:

     यदि सूर्य नीच या पाप प्रभाव में हो, या दूसरा भाव अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो वेशी योग का पूर्ण प्रभाव नहीं मिलता।

जातक को प्रारंभिक जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

यदि ग्रह वक्री या कमजोर हो, तो अपमान या असफलता का सामना हो सकता है।

 

वोशी योग:

लाभ:

     धन और विदेश यात्रा: वोशी योग युक्त व्यक्ति धनवान, लोकप्रिय, और विदेश यात्राओं में सफल होता है।

 

     स्थिरता और परिश्रम: यह योग जातक को स्थिर वचन वाला, परिश्रमी, और गणित या विज्ञान में रुचि रखने वाला बनाता है।

निश्चयशक्ति: बृहस्पति से बनने वाला वोशी योग धर्मपरायणता और दृढ़ निश्चय प्रदान करता है।

 

हानि:

      यदि बुध से वोशी योग बनता है, तो जातक को आलोचना या आर्थिक कमी का सामना करना पड़ सकता है।

     यदि सूर्य कमजोर हो या बारहवां भाव पाप प्रभाव में हो, तो योग का प्रभाव कम हो जाता है।

 

उभयचरी योग:

लाभ:

     राजयोग: यह योग व्यक्ति को प्रशासन, राजनीति, या उच्च पदों पर ले जाता है।

यश और प्रसिद्धि: जातक अपने क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है और सामाजिक सम्मान पाता है।

 

संतुलन: सूर्य के दोनों ओर शुभ ग्रह होने से जीवन में संतुलन और समृद्धि रहती है।

 

हानि:

यदि सूर्य या संबंधित ग्रह नीच, पाप प्रभावित, या वक्री हों, तो योग का प्रभाव कमजोर हो सकता है।

अत्यधिक महत्वाकांक्षा के कारण मानसिक तनाव हो सकता है।

 

सूर्य सिद्धांत और खगोलीय गणित के आधार पर विश्लेषण

    सूर्य सिद्धांत एक प्राचीन भारतीय खगोलीय ग्रंथ है, जो ग्रहों की गति, स्थिति, और उनके प्रभावों का गणितीय और खगोलीय आधार पर विश्लेषण करता है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार, सूर्य ग्रहों का राजा है और इसका प्रभाव कुंडली में आत्मा, नेतृत्व, और ऊर्जा से संबंधित है। सूर्य की स्थिति और इसके आसपास के ग्रहों की गति इन योगों को प्रभावित करती है।

 

खगोलीय गणित:

     सूर्य सिद्धांत में ग्रहों की गति को अंश (डिग्री) और कला (मिनट) में मापा जाता है। वेशी और वोशी योग के लिए, सूर्य और संबंधित ग्रहों के बीच अनुदैर्ध्य अंतर (Longitudinal Difference) महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यदि सूर्य मेष राशि में 15 अंश पर है और बृहस्पति वृषभ राशि में 10 अंश पर (दूसरे भाव में), तो वेशी योग बनता है।

     सूर्य सिद्धांत के अनुसार, सूर्य की गति (लगभग 1 डिग्री प्रति दिन) और अन्य ग्रहों की गति के आधार पर इन योगों का प्रभाव समय के साथ बदल सकता है।

उभयचरी योग में सूर्य के दोनों ओर ग्रहों की स्थिति सममित होनी चाहिए, जो खगोलीय दृष्टिकोण से सूर्य की ऊर्जा को संतुलित करती है।

 

आध्यात्मिक आयाम:

     सूर्य सिद्धांत में सूर्य को प्राण शक्ति और आत्मा का प्रतीक माना गया है। वेशी, वोशी, और उभयचरी योग सूर्य की इस शक्ति को अन्य ग्रहों के माध्यम से बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, बृहस्पति का प्रभाव आध्यात्मिक ज्ञान और धर्मपरायणता को बढ़ाता है।

 

     क्वांटम थ्योरी के साथ तुलनात्मक विश्लेषण

क्वांटम थ्योरी और वैदिक ज्योतिष में कुछ दार्शनिक समानताएं हैं, विशेष रूप से ऊर्जा, संभावना, और चेतना के संदर्भ में। इन योगों को क्वांटम दृष्टिकोण से देखें:

 

     क्वांटम सुपरपोजिशन और संभावना:

क्वांटम थ्योरी में, कण कई अवस्थाओं में एक साथ मौजूद हो सकते हैं जब तक कि उनकी माप न की जाए। इसी तरह, वैदिक ज्योतिष में सूर्य और अन्य ग्रहों की स्थिति एक साथ कई संभावित प्रभाव (शुभ और अशुभ) उत्पन्न करती है। वेशी और वोशी योग की शुभता ग्रहों की स्थिति और उनके बल पर निर्भर करती है, जो क्वांटम सुपरपोजिशन की तरह एक संभावित अवस्था को दर्शाती है।

 

    उदाहरण: यदि सूर्य और बृहस्पति का संयोजन शुभ है, तो यह एक सकारात्मक “संभाव्यता तरंग” (Probability Wave) बनाता है, जो जातक के जीवन में शुभ परिणाम लाती है।

 

    क्वांटम एंटेंगलमेंट और ग्रहों का प्रभाव:

क्वांटम एंटेंगलमेंट में, दो कण एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, और एक की स्थिति दूसरे को प्रभावित करती है। वेशी, वोशी, और उभयचरी योग में सूर्य और अन्य ग्रहों की स्थिति एक-दूसरे के प्रभाव को बढ़ाती है। सूर्य की ऊर्जा (आत्मा) और बृहस्पति की बुद्धि या शुक्र की समृद्धि एक “एंटेंगल्ड” प्रभाव पैदा करती हैं।

 

     उदाहरण: उभयचरी योग में सूर्य के दोनों ओर शुभ ग्रहों की स्थिति एक संतुलित ऊर्जा क्षेत्र बनाती है, जो क्वांटम दृष्टिकोण से एक “सिंक्रोनाइज्ड सिस्टम” की तरह कार्य करता है।

 

     क्वांटम चेतना और आध्यात्मिकता:

क्वांटम थ्योरी में चेतना को ब्रह्मांड का आधार माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य आत्मा और चेतना का प्रतीक है। वेशी, वोशी, और उभयचरी योग सूर्य की इस चेतना को अन्य ग्रहों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। यह योगवासिष्ठ के दर्शन से भी मेल खाता है, जहां चेतना (चित) ही सृष्टि का आधार है।

 

     दार्शनिक और आध्यात्मिक विश्लेषण

योगवासिष्ठ, जो अद्वैत वेदांत का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, इन योगों को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखता है।

 

    वेशी योग: यह योग व्यक्ति को बाह्य जगत में यश और समृद्धि की ओर ले जाता है, जो योगवासिष्ठ के अनुसार “प्रवृत्ति मार्ग” (सक्रिय जीवन) का प्रतीक है।

वोशी योग: बारहवां भाव आत्म-चिंतन और विदेश यात्रा से संबंधित है, जो योगवासिष्ठ में “निवृत्ति मार्ग” (आंतरिक खोज) का प्रतीक है।

 

     उभयचरी योग: यह दोनों मार्गों का संतुलन है, जो अद्वैत दर्शन में “चित्-शक्ति” का प्रतीक है, जहां व्यक्ति बाह्य और आंतरिक दोनों क्षेत्रों में सफल होता है।

श्लोक (योगवासिष्ठ से प्रेरित):

 

“चित्सूर्यस्य संनादति ग्रहैः संनादति विश्वं, योगेन संनादति जीवनं समृद्धिम्।”

 

अर्थ: चेतना रूपी सूर्य ग्रहों के साथ संनादति, और योग द्वारा जीवन समृद्धि की ओर बढ़ता है।

 

तांत्रिक उपाय

     निम्नलिखित कुछ अनूठे तांत्रिक उपाय हैं, जो शास्त्रों, सूर्य सिद्धांत, और मेरे विश्लेषण पर आधारित हैं। ये उपाय सामान्य रूप से उपलब्ध नहीं हैं और विशेष रूप से इन योगों की शुभता बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। कृपया इन्हें किसी योग्य ज्योतिषी या तांत्रिक गुरु की सलाह के साथ करें:

 

वेशी योग के लिए:

     उपाय: रविवार को सूर्योदय के समय एक तांबे के लोटे में गंगा जल, लाल चंदन, और केसर मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। इसके बाद, निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें:

“ॐ ह्रीं सूर्याय नमः”

 

     साथ ही, एक छोटा सूर्य यंत्र (तांबे का) लाल कपड़े में लपेटकर अपने पूजा स्थान में रखें और रोज़ाना धूप दिखाएं।

 

      विशेषता: यह उपाय सूर्य की ऊर्जा को बढ़ाता है और वेशी योग की बुद्धिमत्ता और यश को सक्रिय करता है।

 

वोशी योग के लिए:

      उपाय: शनिवार की रात को एक काले कपड़े में 12 सूर्यमुखी बीज (Sunflower Seeds) और 12 काले तिल बांधें। इसे अपने सिर के ऊपर से 7 बार घुमाकर किसी नदी में प्रवाहित करें। इसके साथ निम्न मंत्र का जाप करें:

“ॐ घृणिः सूर्याय नमः”

     यह उपाय बारहवें भाव की नकारात्मकता को हटाता है और विदेश यात्रा में सफलता दिलाता है।

 

विशेषता: सूर्यमुखी बीज सूर्य की          सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं, और काले तिल अशुभ प्रभावों को नष्ट करते हैं।

 

उभयचरी योग के लिए:

     उपाय: रविवार को सूर्योदय के समय एक पीपल के पेड़ के नीचे तांबे के सिक्के (जिन पर सूर्य का चिन्ह बना हो) और 7 कमल के फूल चढ़ाएं। इसके बाद, निम्न श्लोक का पाठ करें:

 

“आदित्यं विश्वकर्तारं नमामि त्वां सनातनम्।”

 

     फिर, एक छोटा सूर्य यंत्र और बृहस्पति यंत्र (दोनों तांबे के) एक साथ लाल और पीले कपड़े में बांधकर अपने कार्यस्थल पर रखें।

 

     विशेषता: यह उपाय सूर्य और बृहस्पति की संयुक्त शक्ति को सक्रिय करता है, जो उभयचरी योग की राजकीय शक्ति को बढ़ाता है।

 

     अद्वितीय तांत्रिक उपाय (सर्व योगों के लिए):

     उपाय: एक तांबे की प्लेट पर सूर्य यंत्र और संबंधित ग्रह (जैसे बृहस्पति या शुक्र) का यंत्र उकेरें। इस प्लेट को रविवार की सुबह गंगा जल और दूध से अभिषेक करें। फिर, इसे सूर्य की किरणों में 30 मिनट रखें और निम्न मंत्र का 1008 बार जाप करें:

 

“ॐ ह्रां ह्रीं हौं सः सूर्याय नमः”

    इसके बाद, इस प्लेट को अपने घर के पूर्वी कोने में स्थापित करें और रोज़ाना लाल फूल चढ़ाएं।

 

    विशेषता: यह उपाय सूर्य की क्वांटम ऊर्जा को ग्रहों के साथ संनादित करता है, जिससे योगों का प्रभाव अधिकतम होता है। यह उपाय योगवासिष्ठ के चेतना सिद्धांत और सूर्य सिद्धांत के खगोलीय गणित पर आधारित है।

 

      वेशी, वोशी, और उभयचरी योग वैदिक ज्योतिष में सूर्य के आसपास शुभ ग्रहों की स्थिति से बनने वाले शुभ योग हैं, जो धन, यश, विद्या, और राजकीय सम्मान प्रदान करते हैं। इनका प्रभाव सूर्य सिद्धांत के खगोलीय गणित, क्वांटम थ्योरी की संभावना और चेतना, और योगवासिष्ठ के आध्यात्मिक दर्शन से समझा जा सकता है। तांत्रिक उपाय इन योगों की शक्ति को बढ़ाने में सहायक हैं। यदि आपकी कुंडली में ये योग हैं, तो किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श लेकर इन उपायों को अपनाएं।

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