D1 चार्ट (लग्न कुंडली या राशि कुंडली) जन्म कुंडली का मूल चार्ट है, जो व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति को 12 राशियों और 12 भावों में दर्शाता है। यह वैदिक ज्योतिष में प्राथमिक चार्ट है और अन्य सभी वर्ग कुंडलियों (D2, D3, D9, आदि) का आधार है। D1 चार्ट में निम्नलिखित तत्व शामिल होते हैं:
12 राशियाँ: मेष, वृष, मिथुन, आदि।
12 भाव: प्रत्येक भाव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे स्वयं, धन, परिवार, शिक्षा, संतान, विवाह, आदि को दर्शाता है।
ग्रह: सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, और केतु।
लग्न: जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर उदित राशि, जो कुंडली का प्रारंभिक बिंदु है।
D1 का महत्व:
यह व्यक्ति के जीवन का समग्र खाका प्रस्तुत करता है।
यह ग्रहों की स्थिति, उनके बल, और भावों के प्रभाव को दर्शाता है।
यह अन्य वर्ग कुंडलियों (Divisional Charts) के लिए आधार प्रदान करता है, जो विशिष्ट क्षेत्रों (जैसे करियर, विवाह, संतान) का गहन विश्लेषण करते हैं।
D1 चार्ट स्वयं में एक एकल चार्ट है, और इसका कोई उप-भेद नहीं है। हालांकि, वैदिक ज्योतिष में इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से विश्लेषित किया जाता है, जैसे:
लग्न आधारित विश्लेषण: लग्न (Ascendant) के आधार पर भावों का विश्लेषण।
चंद्र लग्न आधारित विश्लेषण: चंद्रमा की स्थिति को लग्न मानकर कुंडली का विश्लेषण।
सूर्य लग्न आधारित विश्लेषण: सूर्य की स्थिति को आधार मानकर विश्लेषण।
ग्रहों की दशा और गोचर: ग्रहों की महादशा, अंतरदशा, और गोचर के आधार पर फलित।
हालांकि, D1 चार्ट के संदर्भ में “भेद” शब्द से तात्पर्य विभिन्न वर्ग कुंडलियों (Divisional Charts) से भी हो सकता है, जो D1 का विस्तार हैं। ये वर्ग कुंडलियाँ D1 चार्ट के आधार पर बनाई जाती हैं और विशिष्ट जीवन क्षेत्रों का विश्लेषण करती हैं।
नोट: D1 चार्ट स्वयं में एकल है, और इसके भेद वर्ग कुंडलियों के रूप में समझे जा सकते हैं।
D1 चार्ट का नाम D1 इसलिए रखा गया क्योंकि यह वैदिक ज्योतिष में प्रथम विभाजन चार्ट (First Divisional Chart) है। वैदिक ज्योतिष में कुंडली को विभिन्न विभाजनों (Divisions) में बांटा जाता है, और प्रत्येक विभाजन एक विशिष्ट चार्ट बनाता है। D1 चार्ट वह मूल चार्ट है जिसमें राशि चक्र को बिना किसी विभाजन के लिया जाता है। अन्य चार्ट (D2, D3, आदि) राशि को विभिन्न भागों में विभाजित करके बनाए जाते हैं।
D1 का अर्थ: “D” का अर्थ है Division (विभाजन), और “1” यह दर्शाता है कि यह पहला या मूल चार्ट है, जिसमें राशि चक्र को 30 अंश के पूर्ण भागों में लिया जाता है।
तकनीकी कारण: D1 चार्ट में प्रत्येक राशि 30 अंश की होती है, और इसमें कोई सूक्ष्म विभाजन नहीं किया जाता, जैसा कि D9 (नवमांश, 3°20′) या D10 (दशमांश, 3°) में होता है।
इस प्रकार, D1 नाम इसकी मूलभूत और प्राथमिक प्रकृति को दर्शाता है।
D1 चार्ट का फलित करना एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन इसे सरलता से समझने के लिए निम्नलिखित विधि और सूत्र उपयोगी हैं:
विधि:
लग्न का निर्धारण:
लग्न (Ascendant) कुंडली का प्रारंभिक बिंदु है। यह व्यक्ति के स्वभाव, शारीरिक बनावट, और जीवन दृष्टिकोण को दर्शाता है।
उदाहरण: यदि लग्न मेष है, तो व्यक्ति साहसी, उत्साही, और नेतृत्वकारी हो सकता है।
भाव विश्लेषण:
प्रत्येक भाव (1 से 12) जीवन के एक विशिष्ट क्षेत्र को दर्शाता है:
प्रथम भाव: स्वयं, व्यक्तित्व, स्वास्थ्य।
द्वितीय भाव: धन, परिवार, वाणी।
तृतीय भाव: भाई-बहन, साहस, संचार।
चतुर्थ भाव: माता, सुख, संपत्ति।
पंचम भाव: संतान, शिक्षा, प्रेम।
षष्ठम भाव: शत्रु, रोग, प्रतिस्पर्धा।
सप्तम भाव: विवाह, साझेदारी।
अष्टम भाव: आयु, रहस्य, परिवर्तन।
नवम भाव: भाग्य, धर्म, उच्च शिक्षा।
दशम भाव: कर्म, करियर, सामाजिक स्थिति।
एकादश भाव: लाभ, मित्र, इच्छापूर्ति।
द्वादश भाव: हानि, मोक्ष, विदेश।
प्रत्येक भाव में ग्रहों की स्थिति, दृष्टि, और स्वामी का विश्लेषण करें।
ग्रहों की स्थिति और बल:
ग्रहों की राशि, भाव, और डिग्री देखें।
ग्रहों का बल (उच्च, नीच, स्वराशि, मित्र राशि, शत्रु राशि) निर्धारित करें।
ग्रहों की दृष्टि और युति का विश्लेषण करें। उदाहरण: यदि गुरु (बृहस्पति) पंचम भाव में हो, तो यह शिक्षा और संतान के लिए शुभ हो सकता है।
दशा और गोचर:
विमशोत्तरी दशा के आधार पर ग्रहों की महादशा और अंतरदशा का विश्लेषण करें।
गोचर (Transit) में ग्रहों की वर्तमान स्थिति का D1 चार्ट के साथ तुलनात्मक अध्ययन करें।
योग और दोष:
कुंडली में विशेष योग (जैसे गजकेसरी योग, राजयोग) और दोष (जैसे कालसर्प दोष, मंगल दोष) की पहचान करें।
उदाहरण: यदि चंद्रमा और गुरु की युति प्रथम या नवम भाव में हो, तो गजकेसरी योग बनता है, जो समृद्धि और बुद्धिमत्ता देता है।
सूत्र:
लग्न बल: लग्नेश (लग्न का स्वामी) की स्थिति और बल महत्वपूर्ण है। यदि लग्नेश उच्च, स्वराशि, या केंद्र/त्रिकोण में हो, तो व्यक्ति का जीवन सशक्त होता है।
भाव बल: भाव स्वामी का बल और उसकी स्थिति। उदाहरण: दशमेश (दशम भाव का स्वामी) यदि बलवान हो, तो करियर में सफलता मिलती है।
ग्रह दृष्टि: ग्रहों की दृष्टि (जैसे मंगल की 4, 7, 8वीं दृष्टि; गुरु की 5, 7, 9वीं दृष्टि) भावों को प्रभावित करती है।
दशा प्रभाव: विंशोत्तरी दशा में ग्रह की स्थिति और बल के आधार पर फलित करें।
सरल उदाहरण:
मान लीजिए किसी व्यक्ति का लग्न मेष है, और सूर्य प्रथम भाव में, चंद्रमा चतुर्थ भाव में, और गुरु नवम भाव में है:
लग्न (मेष): व्यक्ति साहसी, आत्मविश्वासी होगा।
सूर्य प्रथम भाव में: नेतृत्व क्षमता, आत्मसम्मान, और स्वास्थ्य अच्छा होगा।
चंद्रमा चतुर्थ भाव में: माता का सुख, घरेलू शांति, और संपत्ति की प्राप्ति।
गुरु नवम भाव में: भाग्यशाली, धार्मिक, और उच्च शिक्षा में सफलता।
D1 चार्ट के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं:
लग्न (Ascendant):
यह कुंडली का प्रारंभिक बिंदु है और व्यक्ति के स्वभाव, शारीरिक बनावट, और जीवन दृष्टिकोण को दर्शाता है।
उदाहरण: वृश्चिक लग्न वाला व्यक्ति गहन, रहस्यमयी, और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला हो सकता है।
भाव (Houses):
केंद्र (1, 4, 7, 10): ये सबसे शक्तिशाली भाव हैं, जो जीवन के मुख्य क्षेत्रों (स्वयं, घर, साझेदारी, करियर) को दर्शाते हैं।
त्रिकोण (1, 5, 9): भाग्य और समृद्धि के भाव। पंचम और नवम भाव विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।
त्रिक (6, 8, 12): कष्ट, रोग, और हानि के भाव।
उपचय (3, 6, 10, 11): प्रयास से सुधार होने वाले भाव।
ग्रह (Planets):
प्रत्येक ग्रह एक विशिष्ट ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है:
सूर्य: आत्मा, आत्मविश्वास।
चंद्रमा: मन, भावनाएँ।
मंगल: साहस, ऊर्जा।
बुध: बुद्धि, संचार।
गुरु: ज्ञान, भाग्य।
शुक्र: प्रेम, सौंदर्य।
शनि: कर्म, अनुशासन।
राहु-केतु: कर्म और आध्यात्मिक पाठ।
ग्रहों की स्थिति, दृष्टि, और युति का विश्लेषण करें।
राशियाँ (Signs):
प्रत्येक राशि का स्वभाव (चर, स्थिर, द्विस्वभाव) और तत्व (अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल) विश्लेषण में महत्वपूर्ण है।
उदाहरण: सिंह राशि (अग्नि, स्थिर) आत्मविश्वास और नेतृत्व देती है।
नक्षत्र:
प्रत्येक राशि में नक्षत्रों का प्रभाव ग्रहों के फल को सूक्ष्म रूप से प्रभावित करता है।
उदाहरण कुंडली:
जन्म विवरण: जन्म तिथि: 1 जनवरी 1990, समय: 10:00 AM, स्थान: दिल्ली।
लग्न: मीन।
ग्रह स्थिति:
सूर्य: धनु (10वाँ भाव, करियर)।
चंद्रमा: मीन (1ला भाव, स्वयं)।
गुरु: मिथुन (4था भाव, माता और सुख)।
मंगल: वृश्चिक (9वाँ भाव, भाग्य)।
शुक्र: मकर (11वाँ भाव, लाभ)।
शनि: धनु (10वाँ भाव, करियर)।
राहु: मकर (11वाँ भाव), केतु: कर्क (5वाँ भाव)।
विश्लेषण:
लग्न (मीन): व्यक्ति संवेदनशील, रचनात्मक, और आध्यात्मिक होगा। मीन का स्वामी गुरु है, जो 4थे भाव में है, यह माता और घरेलू सुख को मजबूत करता है।
सूर्य और शनि 10वें भाव में: करियर में महत्वाकांक्षा और कठिन परिश्रम। सूर्य नेतृत्व देता है, जबकि शनि अनुशासन और दीर्घकालिक सफलता।
चंद्रमा प्रथम भाव में: भावनात्मक और संवेदनशील व्यक्तित्व, मानसिक स्थिरता।
मंगल 9वें भाव में: भाग्य और साहस में वृद्धि। व्यक्ति धार्मिक यात्राएँ या उच्च शिक्षा में रुचि रख सकता है।
शुक्र और राहु 11वें भाव में: सामाजिक मित्र मंडली और लाभ में वृद्धि, लेकिन राहु के कारण अपारंपरिक स्रोतों से आय।
केतु 5वें भाव में: संतान और रचनात्मकता में आध्यात्मिक दृष्टिकोण, लेकिन कुछ चुनौतियाँ हो सकती हैं।
फलित:
करियर: सूर्य और शनि की युति दशम भाव में होने से व्यक्ति प्रबंधन, प्रशासन, या तकनीकी क्षेत्र में सफलता पा सकता है।
संतान और शिक्षा: केतु पंचम भाव में होने से शिक्षा में कुछ रुकावटें, लेकिन रचनात्मक क्षेत्रों में सफलता।
भाग्य: मंगल नवम भाव में होने से भाग्य का साथ और विदेश यात्राएँ संभव।
विवाह: सप्तम भाव खाली है, लेकिन शुक्र 11वें भाव में होने से प्रेम और सामाजिक संबंध मजबूत।
दशा विश्लेषण:
यदि व्यक्ति गुरु की महादशा में है (जो मीन लग्न का स्वामी है और 4थे भाव में है), तो यह अवधि घर, संपत्ति, और माता के सुख के लिए शुभ होगी।
गोचर में यदि शनि दशम भाव में गोचर करता है, तो करियर में उन्नति होगी।
D1 चार्ट वैदिक ज्योतिष का आधार है और व्यक्ति के जीवन का समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। इसका नाम D1 इसलिए है क्योंकि यह प्रथम और मूल चार्ट है, जिसमें राशि चक्र को बिना विभाजन के लिया जाता है। इसके फलित की सरल विधि में लग्न, भाव, ग्रह, और दशा का विश्लेषण शामिल है। उदाहरण के माध्यम से हमने देखा कि D1 चार्ट जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे करियर, शिक्षा, और भाग्य का विश्लेषण कैसे करता है।