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दत्त पूर्णिमा: श्रद्धा, ज्ञान और करुणा का पर्व

दत्त पूर्णिमा, जिसे दत्तात्रेय जयंती के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक पर्व है। यह पर्व भगवान दत्तात्रेय के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—के संयुक्त अवतार के रूप में माना जाता है। इसलिए यह दिन भक्तों के लिए केवल उत्सव का ही नहीं, बल्कि मोक्ष, ज्ञान, तपस्या और सद्गुणों को आत्मसात करने का अवसर भी होता है।

इस लेख में हम दत्त पूर्णिमा का धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व विस्तार से समझेंगे।

 

  1. दत्तात्रेय अवतार की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, दत्तात्रेय भगवान ऋषि अत्रि और अनसूया के पुत्र थे। अनसूया की तपस्या और पतिव्रता के तेज से प्रसन्न होकर त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और शिव—ने उन्हें पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। इसी से दत्तात्रेय का नाम पड़ा—

  • दत्त = दिया हुआ
  • अत्रेय = अत्रि का पुत्र

दत्तात्रेय एक महान योगी, तपस्वी और जगतगुरु माने जाते हैं। उन्होंने संसार को सिखाया कि प्रकृति की प्रत्येक वस्तु हमारे लिए गुरु हो सकती है—इसलिए उन्हें अवधूत गुरु भी कहा जाता है।

  1. दत्त पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

दत्त पूर्णिमा हिंदू आध्यात्मिक परंपराओं का अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से—

  • मन के विकार दूर होते हैं
  • आध्यात्मिक उन्नति मिलती है
  • साधकों को ध्यान योग में उन्नति प्राप्त होती है
  • पितृदोष जैसे ग्रहदोषों की शांति होती है

यह दिन विशेष रूप से नाथ संप्रदाय, अवधूत पंथ, दत्त संप्रदाय और दक्षिण भारत के भक्तों में अत्यधिक लोकप्रिय है।

  1. दत्तात्रेय का दार्शनिक योगदान

(क) 24 गुरुओं की शिक्षाएँ

भगवान दत्तात्रेय ने अपने जीवनकाल में 24 प्राकृतिक तत्वों को गुरु मानकर उनसे सीखने की प्रेरणा दी।
इनमें धरती, हवा, पानी, आग, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, समुद्र, मधुमक्खी, हाथी, पक्षी आदि शामिल हैं।

दत्तात्रेय ने बताया कि—

  • हर तत्व हमें कुछ न कुछ सिखाता है
  • जीवन में हर अनुभव ज्ञान का स्रोत है
  • प्रकृति ही परम शिक्षक है

यह दर्शन आज भी आधुनिक जीवन के लिए प्रासंगिक है।

(ख) अद्वैत वाले सिद्धांत के प्रवर्तक

दत्तात्रेय को अद्वैत सिद्धांत का भी एक आधार माना जाता है, जिसमें आत्मा और परमात्मा को एक माना जाता है।

  1. दत्त पूर्णिमा की पूजा विधि

दत्त पूर्णिमा की पूजा सरल और अत्यंत पवित्र मानी जाती है। पारंपरिक रूप से पूजा का तरीका यह है —

  1. प्रातः स्नान
    मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन स्नान कर पवित्र जल अर्पण करने का विशेष महत्व है।
  2. गुरु पूजन
    दत्तात्रेय परम गुरु माने जाते हैं, इसलिए इस दिन गुरु पूजन भी अनिवार्य माना जाता है।
  3. भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा या चित्र की स्थापना
  4. धूप, दीप, फूल, चंदन और नैवेद्य का अर्पण
  5. दत्त मंत्र का जाप
    • “ॐ द्राम दत्तात्रेयाय नमः”
    • “ॐ श्री गुरुदत्तात्रेयाय नमः”
  6. गुरुचरित्र, दत्त महात्म्य या दत्त पुराण का पाठ
  7. गौ-सेवा और अन्नदान
    भगवान दत्तात्रेय की पूजा गौ-सेवा के बिना अधूरी मानी जाती है।
  8. रात्रि का भजन-कीर्तन
    कई स्थानों पर पूरे दिन भक्ति कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  1. दत्त पूर्णिमा का समाज में महत्व

(क) गुरु–शिष्य परंपरा का सम्मान

यह दिन गुरु के महत्व को समझने और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है।

 

(ख) करुणा और सेवा का संदेश

दत्तात्रेय ने सिखाया कि सच्चा धर्म दूसरों की सेवा में है।
इसलिए दत्त पूर्णिमा पर—

  • भोजन वितरण
  • गरीबों को वस्त्र दान
  • ज़रूरतमंदों की सहायता
    विशेष पुण्यदायी माना जाता है।

(ग) साधना और मानसिक शांति

आज के तनावपूर्ण जीवन में दत्त पूर्णिमा लोगों को योग, ध्यान और प्रार्थना के माध्यम से मानसिक शांति प्रदान करती है।

  1. भारत में दत्त पूर्णिमा के प्रमुख तीर्थ स्थल

दत्तात्रेय के उपासकों के लिए कई पवित्र स्थान अत्यधिक महत्व रखते हैं —

(1) गंधर्वपुर दत्त मंदिर (कर्नाटक)

दत्तात्रेय का प्रमुख केंद्र। यहां दत्त जयंती पर विशाल मेला लगता है।

(2) ऑडुंबर (महाराष्ट्र)

यहाँ दत्त अवतार का चमत्कार माना जाता है और दत्त संप्रदाय का प्रसिद्ध स्थल है।

(3) नरसिंह वाड़ी (महाराष्ट्र)

यहाँ कृष्णा नदी के तट पर दत्त संप्रदाय की प्राचीन परंपरा आज भी जीवित है।

(4) पितापुरम (आंध्र प्रदेश)

दत्त प्रपंच के प्रमुख दक्षिण भारतीय केंद्रों में से एक।

(5) गिरनार पर्वत (गुजरात)

यह माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय आज भी यहाँ तपस्या कर रहे हैं। रात में साधक गिरनार की चढ़ाई करके दर्शन करते हैं।

  1. दत्तात्रेय और योग–तपस्या

दत्तात्रेय को योगियों का गुरु कहा जाता है। वे नाथ पंचयोगी, अवधूत और तपस्वियों के सर्वोच्च आदर्श हैं।
उनकी तीन मुख वाली मूर्ति—

  • सृष्टि
  • पालन
  • संहार
    —इन तीनों शक्तियों का प्रतीक है।
    उनका गाय और कुत्तों के साथ चित्र यह बताता है कि—
    हर जीव में ईश्वर है।
  1. आधुनिक समय में दत्त पूर्णिमा का महत्व

आज जब मनुष्य भौतिकता में खो गया है, दत्त पूर्णिमा हमें याद दिलाती है कि—

  • जीवन सादगी है
  • प्रकृति गुरु है
  • सेवा धर्म है
  • ज्ञान मुक्ति का मार्ग है
  • करुणा और विनम्रता का मार्ग ही सर्वोत्तम है

दत्तात्रेय का दर्शन आज भी आत्मिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।

  1. दत्त पूर्णिमा और आध्यात्मिक साधना

इस दिन विशेष रूप से ये साधनाएँ की जाती हैं —

  • ब्रह्ममुहूर्त ध्यान
  • दत्त मंत्र का जाप
  • गुरुचरित्र का पारायण
  • मौन साधना
  • प्रकृति के साथ समय बिताना

साधक मानते हैं कि इस दिन किया गया साधन जल्दी फल देता है।

दत्त पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि ज्ञान, गुरु-भावना, प्रकृति-पूजन और सेवा का संगम है।
भगवान दत्तात्रेय का जीवन हमें सिखाता है कि —

  • जीवन सीखने का अवसर है
  • हर वस्तु गुरु है
  • करुणा सर्वोच्च धर्म है
  • और आत्मा–परमात्मा का मिलन ही अंतिम सत्य है

दत्त पूर्णिमा का यह पवित्र दिन हमें भीतर झांककर अपने जीवन को आत्मज्ञान, नैतिकता और मानवता से भरने की प्रेरणा देता है।

“जय गुरुदेव दत्त!”

श्री दत्त प्रसन्न हैं!

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