चौबीस नवंबर सोलह सौ पचहत्तर की तारीख गवाह बनी थी हिंदुओं के हिंदू बने रहने की वो दोपहर का समय था और जगह थी दिल्ली का चांदनी चौक लाल किले के सामने जब मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठा हुए बिल्कुल शांत बैठे थे और सबकी सांसें अटकी हुई थी
शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुर जी अगर इस्लाम कबूल कर लेते हैं तो फिर सब हिंदुओं को मुस्लिम बनना होगा बिना किसी ज़ोर जबरदस्ती के औरंगजेब के लिए भी यह इज्जत का सवाल था हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था खुर्शल के आया था औरंगजेब लालकिला से निकलकर सुनहरी मस्जिद के काजी के पास उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़कर यातना देने का फतवा निकलता था
वो मस्जिद आज भी है गुरुद्वारा शीशगंज चांदनी चौक, दिल्ली के पास आखिरकार जब इस्लाम कबूलवाने की जिद पर इस्लाम ना कबूलने का हौसला अडिग रहा तो औरंगजेब के इशारे पर जल्लाद की तलवार चली और प्रकाश अपने स्रोत में लीन हो गया ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पूरे हिंदुस्तान का भविष्य बदलने से रोक दिया सिर्फ एक हाँ होती तो ये देश हिंदुस्तान नहीं होता। इन्होने हिन्द की चादर बन जनयु और तिलक की रक्षा की उनका अतुल्य सहस भारत वर्ष कभी नहीं भूल सकता। कभी एकांत में बैठ के सोचियेगा। गुरु तेग बहादुर जी अपना बलिदान ना देते तो हर एक मंदिर की जगह मस्जिद होती और घंटियों की जगह अज़ान सुनाई दे रही होती इस ब्लॉग को हिन्दू और हर एक सिख तक पहुचाइये जिससे 24 नवम्बर का इतिहास सभी को पता होना चाहिए।