कबीरा तन पंछी भया, जहाँ मन तहाँ उड़ी जाए।
जो जैसी संगति करे, सो तैसा ही फल पाए।
मित्रों_”घी को कोई भी व्यक्ति सीधा ग्रहण नहीं कर सकता। अगर कोई व्यक्ति कहे कि आप घी खाया करो, तो आपका ध्यान सिर्फ गेंहू के आटे के साथ हलुआ, रोटियां के साथ या पराठे के साथ आदि अनेक व्यंजनों के रूप में आप सपरिवार आनंद ले सकते हो। क्योंकि घी की संगति आटे से हुई हैं।
इसलिए घी की उपयोगिता बदल गई। ठीक उसी प्रकार अगर कोई भी इंसान अच्छे व्यक्ति की संगति करता है तो वह भी महान हो सकता है। क्योंकि घी को सीधा गिलास में भरकर पिया नही जा सकता, जब उसी घी में आटा मिलाकर और भुनकर और उसमें थोड़ी शक्कर व मेवा आदि का मिश्रण बनता है
तो हर कोई कह उठता है कि वाह क्या बात है। ठीक इसी प्रकार घी रूपी मनुष्य, भागवत रूपी आटे की संगत करता है तो हम उसे महामानव के रूप में देखते हैं। श्रीराम की संगति पाने के कारण ही हनुमान, अंगद और सुग्रीव जैसे वानर आज भी अविष्मरणीय हैं। अच्छी संगति, अच्छे विचारों और अच्छे कार्य करने वाले लोगों को ही समाज सम्मान और प्रतिष्ठा देता है।