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छठ पूजा – आस्था, परंपरा और सूर्य उपासना का पावन पर्व

भारत विविधताओं का देश है — यहाँ हर त्यौहार के पीछे एक गहरी भावना, आस्था और सांस्कृतिक संदेश छिपा होता है। इन्हीं में से एक अत्यंत पवित्र और लोक आस्था से जुड़ा पर्व है छठ पूजा”। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। लेकिन अब इसका विस्तार पूरे भारत और विदेशों तक हो चुका है। छठ पूजा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि यह प्रकृति, जल और सूर्य के प्रति हमारी कृतज्ञता का भी प्रतीक है।

 

☀️ छठ पूजा का अर्थ और उत्पत्ति

 

‘छठ’ शब्द संस्कृत के ‘षष्ठी’ से बना है, जिसका अर्थ होता है छठा दिन। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि दीपावली के छह दिन बाद आती है। इस दिन सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया (उषा देवी) की पूजा की जाती है।

हिंदू मान्यता के अनुसार, सूर्य देव को जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य का दाता माना गया है। कहा जाता है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। पांडवों की पत्नी कुंती पुत्र कर्ण सूर्य देव के परम भक्त थे, और उन्होंने सूर्य की उपासना कर दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त किए थे। इसी श्रद्धा की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए माता द्रौपदी ने भी पांडवों की सुख-समृद्धि के लिए छठ व्रत किया था।

 

🌾 छठ पूजा की तैयारी और विधि

 

छठ पूजा कुल मिलाकर चार दिनों तक चलने वाला व्रत और अनुष्ठान है। इसकी विशेषता यह है कि यह सबसे कठिन और अनुशासित व्रतों में से एक माना जाता है।

 

(1) नहाय-खाय (पहला दिन)

 

छठ पूजा की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है। इस दिन व्रती (जो व्रत रखता है) स्नान कर अपने घर की पवित्रता बनाए रखता है। घर में पूरी साफ-सफाई की जाती है। व्रती दिन में एक ही बार सात्विक भोजन करता है, आमतौर पर लौकी-भात या चना दाल और कद्दू की सब्जी खाई जाती है। इस भोजन को शुद्ध घी में बनाया जाता है।

 

(2) खरना (दूसरा दिन)

 

दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखता है और सूर्यास्त के बाद पूजा कर प्रसाद ग्रहण करता है। प्रसाद में आमतौर पर गुड़ की खीर, रोटी (ठेकुआ) और केला होता है। इस प्रसाद को परिवार और पड़ोसियों में बाँटा जाता है। खरना के बाद व्रती अगले 36 घंटे तक निर्जला उपवास (बिना पानी) रखता है, जो अत्यंत कठिन और तपस्या समान होता है।

 

(3) संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)

 

तीसरे दिन व्रती और श्रद्धालु नदी, तालाब या घाट पर एकत्रित होते हैं। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। महिलाएँ पारंपरिक वस्त्र पहनकर, हाथ में दउरा-सूप लेकर सूर्य देव को फल, ठेकुआ, केला, गन्ना, नारियल आदि अर्पित करती हैं। इस समय वातावरण भक्ति गीतों, ढोलक, और लोक संगीत से गूंज उठता है। यह दृश्य अत्यंत भावनात्मक और मनमोहक होता है।

 

(4) उषा अर्घ्य (चौथा दिन)

 

छठ पर्व का समापन ‘उषा अर्घ्य’ के साथ होता है। प्रातः काल व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य की पहली किरण को जल और प्रसाद अर्पित किया जाता है। यह अर्घ्य न केवल सूर्य देव के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक है, बल्कि जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का स्वागत भी है।

इसके बाद व्रती व्रत खोलता है और परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करता है।

 

🙏 छठ मैया और सूर्य देव की पूजा का महत्व

 

छठ पूजा में मुख्य रूप से सूर्य देव की पूजा की जाती है क्योंकि वे समस्त जीवों के जीवन स्रोत हैं। सूर्य की किरणें पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं — वे ऊर्जा, प्रकाश और स्वास्थ्य देते हैं।

छठी मैया, जिन्हें उषा देवी भी कहा जाता है, को संतान सुख, स्वास्थ्य, और परिवार की समृद्धि देने वाली देवी माना गया है। कहा जाता है कि सच्चे मन से व्रत करने वालों की मनोकामनाएँ अवश्य पूर्ण होती हैं। इसलिए बहुत-से लोग संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य लाभ या पारिवारिक सुख के लिए यह व्रत करते हैं।

🌸 छठ पूजा की विशेषताएँ

 

  1. शुद्धता और सादगी – छठ पूजा में किसी प्रकार की भव्य सजावट या दिखावा नहीं होता। सब कुछ प्राकृतिक और सात्विक रूप से किया जाता है।
  2. प्रकृति के प्रति आभार – सूर्य, जल, वायु, और पृथ्वी के प्रति आभार प्रकट किया जाता है।
  3. सामूहिकता की भावना – यह पर्व समाज में एकता और सहयोग का संदेश देता है। गाँव या शहरों में लोग मिलकर घाटों की सफाई, सजावट, और व्यवस्था करते हैं।
  4. लोकगीत और परंपराएँ – “केलवा के पात पर, उगले सुरज देव…” जैसे पारंपरिक गीतों की गूंज इस पर्व को और भी भावनात्मक बना देती है।

 

🌞 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से छठ पूजा

 

सिर्फ धार्मिक ही नहीं, छठ पूजा के पीछे गहरा वैज्ञानिक कारण भी है।

  • सूर्य की पहली और अंतिम किरण में अल्ट्रावायलेट किरणें कम होती हैं, जो शरीर के लिए लाभदायक हैं।
  • जल में खड़े होकर सूर्य की ओर देखने से विटामिन D का संतुलन बनता है और नेत्रों की रोशनी बढ़ती है।
  • उपवास और प्राकृतिक भोजन शरीर को डिटॉक्स करता है, जिससे मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं।

 

🪔 छठ पूजा का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

 

छठ पूजा भारत के उन पर्वों में से एक है जहाँ जाति, धर्म या वर्ग का कोई भेदभाव नहीं होता। हर व्यक्ति समान भाव से इसमें भाग लेता है। गाँवों में छठ के दौरान जो सामूहिक एकता दिखाई देती है, वह समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती है।

शहरों में भी लोग अपनों के साथ छठ का आयोजन करते हैं — चाहे वह किसी सोसाइटी का टैरेस हो, पार्क या कृत्रिम तालाब। यह पर्व हर भारतीय को अपनी जड़ों से जोड़ता है।

 

🌼 आधुनिक युग में छठ पूजा

 

आज भले ही जीवनशैली आधुनिक हो गई हो, पर छठ पूजा की पवित्रता और अनुशासन में कोई कमी नहीं आई। अब प्रवासी भारतीय भी अमेरिका, दुबई, ऑस्ट्रेलिया, लंदन आदि देशों में छठ का आयोजन करते हैं। वहाँ कृत्रिम तालाब बनाकर, मिट्टी के दीप जलाकर, और पारंपरिक गीत गाकर लोग अपनी संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं।

छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के मधुर संबंध का उत्सव है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में शुद्धता, संयम, और आभार कितना महत्वपूर्ण है। सूर्य देव और छठी मैया की उपासना हमें यह संदेश देती है कि –

“जब हम प्रकृति का सम्मान करते हैं, तब वह हमें असीम ऊर्जा और समृद्धि से आशीर्वाद देती है।”

छठ पूजा भारतीय संस्कृति की आत्मा है — जो हमें एकता, पवित्रता और कृतज्ञता के भाव से जोड़ती है।

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