क्या लिखूं और कैसे लिखूं? छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र के रूप में जन्मा “छावा”… शंभू राजे… छत्रपति संभाजी महाराज…
थिएटर से बाहर आए एक घंटा हो गया, लेकिन अभी भी सांस जैसे गले में ही अटकी हुई महसूस हो रही है…
बचपन में इतिहास की किताबों में पढ़ा हुआ “छावा”… शिवाजी सावंत के उपन्यास में देखा हुआ छावा और आज लक्ष्मण उतेकर की फिल्म में अनुभव किया हुआ छावा…
आखिरी 20 मिनट…
पलकों की झपक तक ना हो, ऐसी…
स्तब्ध कर देने वाली…
क्या-क्या सहा होगा हमारे शंभू राजे ने…
कैसे सहा होगा?
धर्म के लिए… स्वराज्य के लिए कितना प्रेम रहा होगा…
हम तो सिर्फ तवे की हल्की जलन से भी कराह उठते हैं…
और हमारे शंभू राजा…
कैसे बने होंगे…
कैसे गढ़े गए होंगे?
आखिरी 15 मिनट…
आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे…
पूरे थिएटर में सन्नाटा था…
डर इस बात का था कि गले में अटका हुआ सिसकियां कहीं बाहर न निकल आए…
मराठा होने पर गर्व महसूस हुआ…
अपने छत्रपतियों पर गर्व महसूस हुआ…
अपने राजाओं पर गर्व महसूस हुआ…
अगर छत्रपति शिवाजी महाराज और शंभू राजे ना होते तो हमारा क्या होता?
हम किस स्थिति में होते?
ये सोचने तक की हिम्मत नहीं होती…
बचपन में इतिहास की किताबों में शंभू राजे पर हुए अत्याचारों को पढ़ा था… वह सिर्फ दिमाग में था…
लेकिन आज वह दिल में उतर गया…
रग-रग में समा गया…
पूरे शरीर में खून उबलने लगा… और दिमाग सुन्न हो गया…
ऐसा लगा कि थिएटर में ही पर्दे पर दिख रहे औरंगजेब पर टूट पड़ें… उसे काट डालें…
विक्की कौशल एक शानदार अभिनेता तो हैं ही…
लेकिन यह फिल्म देखकर मैं उनकी फैन हो गई… जबरदस्त अभिनय…
जान डाल दी है उन्होंने अपने किरदार में…
औरंगजेब – अक्षय खन्ना…
वह भी उतने ही दमदार लगे… सच में गुस्से से पत्थर फेंकने का मन कर जाए, ऐसा अभिनय…
रश्मिका का भी जन्म महारानी येसुबाई का किरदार निभाकर धन्य हुआ…
बस ‘श्रीवल्ली’ को ‘श्रीसखी’ क्यों बनाया गया, यह समझ नहीं आया… लेकिन छोड़िए…
उन्होंने महारानी येसुबाई का किरदार अच्छी तरह निभाया…
बाकी सभी के अभिनय भी बेहतरीन रहे…
हमेशा की तरह दिव्या दत्ता ने छोटे से रोल में भी सोयराबाई को दमदार तरीके से निभाया…
फिल्म जरूर देखें…
यह हमारे राजा की फिल्म है… हमारी फिल्म है…
अपने बच्चों को दिखाएं… उन्हें बताएं कि यह सब सच में हुआ था…
शंभू राजे ने यह सब सहा…
इतने पराक्रम किए…
सिर्फ दाढ़ी और मूंछ बढ़ाने से कोई छत्रपति शिवाजी महाराज या छत्रपति संभाजी महाराज नहीं बन सकता…
इसके लिए खून में स्वराज्य का जुनून होना चाहिए…
रग-रग में छत्रपति शिवाजी महाराज और शंभू राजे बसने चाहिए…
वैसे गुण… वैसा पराक्रम… वैसा धैर्य… और स्वराज्य के लिए वैसा ही प्रेम होना चाहिए…
फ़िल्म #छावा…. (अवश्य अपने बच्चों को दिखाइए)
हमारे बुजुर्गों ने तलवार की धार पर सर रख दिया मगर सर झुका कर सजदा नहीं किया इसलिए हम हिंदू हैं,
हमारे बुजुर्गों की आँखें निकाल ली गई पर उन्होंने इबादत के लिए अपनी पलकें नहीं झुकने दी इसलिए हम हिंदू हैं,
हमारे बुजुर्गों के नाम मौत के फ़रमान पढ़ दिए गए मगर उन्होंने कलमा नहीं पढ़ा बस इसलिए अब तक हिंदू हैं…!!
(छत्रपति शिवाजी के पुत्र छत्रपति शम्भा जी के…. दुर्दांत औरंगज़ेब के हाथों ….निर्मम बलिदान पर भावोद्देग में रोता एक सनातनी बालक )
मित्रो आप कल्पना नहीं कर सकते की संभाजी महाराज को इन मुग़ल जिहादियोंने ४० दिन तक अनगिनत यातनाये देकर मारा था, उनकी किताब में यही सब लिखा है जहाँ काफिर दिखे उसे तड़पा तड़पा के मार दो संभाजी महाराज को इन मुग़ल जिहादी सुवरोने अनगिनत यातनाये दी थी, जैसे की उनकी आँखों में गरम सलाखे डालना, उनकी ज़बान खिंचकर उखाड़ना, उनके जख्मी शरीर पर मिर्च-नमक रगड़ना और उनकी पूरी चमड़ी को शरीर से उखाड़ना इतने पर भी संभाजी महाराज ने अपना धर्म बदलने से इंकार कर दिया था अंत में मुग़ल जिहादियों ने उन्हें ४० वे दिन मार दिया था | संभाजी महाराज के बलिदान की कल्पना भी हम नहीं कर सकते, इस वीडियो को अपने ग्रुप में ज्यादा से ज्यादा शेयर करो और यह फिल्म एक बार थिएटर में जाके जरूर देखे हिंदूओ इजरायल बनो,अमेरिका और चीन का कानून पालन करो, पाकिस्तान बांग्लादेश अफगान को गाजा पट्टी में तब्दील कर दो, पिछले हजार साल के अपने पूर्वजों के बलिदान का ब्याज वसूल दो, पिछले हजार साल का बदला लेने की तैयारी करें, भारत सरकार 100 करोड हिंदू अब तो जाग जाओ हिन्दू भाइयो, हर हर महादेव
मैं हमेशा सिनेमा का समर्थक रहा हूँ…
सिनेमा मतलब ‘सिर्फ’ बॉलीवुड नहीं होता…
यह एक माध्यम है.. लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का… अपना narrative पहुंचाने का, लोगों को किसी विषय पर जागरूक करने का…
दुर्भाग्य यह है कि भारत में इसका उपयोग कुछ ख़ास लोगों ने अपने कुत्सित प्रोपेगंडा के लिए किया…
हालांकि अब बदलाव दिख रहा है…
“छावा” में आप लाखों कमियाँ ढूंढ लेंगे… लेकिन एक बात है जिसे कोई झुठला नहीं सकता… इस फ़िल्म ने छत्रपति संभाजी राजे महाराज के जीवन के बारे में लोगों के मन में जागरूकता बढ़ाई है…
देश भर से ऐसे video आ रहे हैं… यही है माध्यम की ताकत… माध्यम हमेशा अपने कब्जे में रखिये… तभी कुछ सकारात्मक बदलाव आएंगे…
माध्यम का boycott करेंगे, या उससे दूर भागेंगे तो उस पर विपक्षी का वर्चस्व हो जायेगा. बात साधारण सी है… समझनी चाहिए…
फिल्म खत्म होने के बाद एक चीज़ करने से रह गई…
और वही बात दिल को चीर गई…
अभी भी दिल को कसक रही है…
क्योंकि उस वक्त गले में सिसकियां भरी थीं…
शब्द बाहर नहीं निकल पाए…
जोर से चिल्लाना था…
कहना था…
छत्रपति संभाजी महाराज की… जय…
छत्रपति शिवाजी महाराज की… जय…
जय भवानी… जय शिवाजी…
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