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जन्म कुण्डली D-15 चार्ट (द्वादशोत्तरी चार्ट) का सूर्य सिद्धांत,खगोलीय गणित, वैज्ञानिकता के साथ एक व्यापक विश्लेषण

जन्म कुंडली में D-15 चार्ट क्या है?

    ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली की गणना और विश्लेषण के लिए विभिन्न विभाजन कुंडलियाँ (Divisional Charts) का उपयोग किया जाता है, जिन्हें वर्ग चार्ट कहा जाता है। D-15 चार्ट, जिसे द्वादशोत्तरी चार्ट (Dwadashottari Chart) के नाम से जाना जाता है, एक विशेष प्रकार का वर्ग चार्ट है जो जन्म कुंडली (D-1) के आधार पर बनाया जाता है। यह चार्ट विशेष रूप से व्यक्ति के सुख, समृद्धि, विलासिता, और आत्मिक विकास से संबंधित पहलुओं का विश्लेषण करने के लिए उपयोग किया जाता है।

 

D-15 चार्ट का निर्माण जन्म कुंडली के प्रत्येक राशि को 15 बराबर भागों में विभाजित करके किया जाता है, और यह सप्तमांश (D-7) और नवमांश (D-9) की तुलना में अधिक सूक्ष्म विश्लेषण प्रदान करता है। यह चार्ट व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, विलासिता, और भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ-साथ उनके आध्यात्मिक और नैतिक विकास को समझने में मदद करता है।

 

D-15 चार्ट का अर्थ और महत्व

     D-15 चार्ट का प्राथमिक उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि से संबंधित सूक्ष्म पहलुओं का विश्लेषण करना है। यह चार्ट विशेष रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों पर केंद्रित होता है:

 

भौतिक सुख: वाहन, संपत्ति, विलासिता, और जीवन में सुख-सुविधाओं की उपलब्धता

 

आध्यात्मिक विकास: व्यक्ति की आत्मिक प्रगति, नैतिकता, और धर्म के प्रति झुकाव।

कर्म और भाग्य का संतुलन: यह चार्ट कर्म और भाग्य के बीच संतुलन को दर्शाता है, जो व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख के अनुभवों को प्रभावित करता है।

सामाजिक स्थिति: समाज में व्यक्ति की स्थिति, प्रतिष्ठा, और सम्मान।

 

D-15 चार्ट को चतुर्थ भाव (सुख और माता) और नवम भाव (धर्म और भाग्य) के साथ जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि यह सुख और धर्म के बीच संतुलन को दर्शाता है। यह चार्ट व्यक्ति के जीवन में सुख के स्रोतों (जैसे माता, घर, वाहन) और आध्यात्मिक प्रगति के बीच संबंध को समझने में मदद करता है।

 

D-15 चार्ट का नाम क्यों D-15

    D-15 चार्ट का नाम द्वादशोत्तरी इसलिए पड़ा क्योंकि यह जन्म कुंडली की प्रत्येक राशि को 15 बराबर भागों में विभाजित करता है। प्रत्येक राशि 30 अंश की होती है, और जब इसे 15 भागों में बांटा जाता है, तो प्रत्येक भाग 2 अंश का होता है। यह विभाजन सूक्ष्म स्तर पर ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभावों का विश्लेषण करने में मदद करता है।

 

    द्वादशोत्तरी शब्द का अर्थ है 12 से अधिक (द्वादश + उत्तरी), जो इस चार्ट की गणना में 12 राशियों को 15 भागों में विभाजित करने की प्रक्रिया को दर्शाता है। यह नाम इस चार्ट की गणनात्मक प्रकृति को संदर्भित करता है, जो सूर्य सिद्धांत और खगोलीय गणित पर आधारित है।

 

D-15 चार्ट के भेद

ज्योतिष शास्त्र में D-15 चार्ट को सामान्यतः एक एकल चार्ट के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसके विभिन्न पहलुओं को विश्लेषण के आधार पर निम्नलिखित भेदों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

 

सामान्य D-15 चार्ट: यह मुख्य चार्ट है जो सुख और समृद्धि का विश्लेषण करता है।

कालिक D-15 चार्ट: कुछ ज्योतिषी D-15 चार्ट को समय-आधारित विश्लेषण के लिए उपयोग करते हैं, जैसे दशा और गोचर के साथ।

 

स्थानिक D-15 चार्ट: यह चार्ट व्यक्ति के भौगोलिक स्थान और सामाजिक स्थिति के आधार पर विश्लेषण करता है।

 

आध्यात्मिक D-15 चार्ट: यह विशेष रूप से व्यक्ति की आत्मिक प्रगति और धर्म के प्रति झुकाव को देखता है

 

हालांकि, परंपरागत रूप से D-15 चार्ट को एक ही रूप में उपयोग किया जाता है, और इसके भेद ज्योतिषी की दृष्टि और विश्लेषण की गहराई पर निर्भर करते हैं।

 

D-15 चार्ट की गणना: सूर्य सिद्धांत और खगोलीय गणित

     D-15 चार्ट की गणना सूर्य सिद्धांत और वैदिक ज्योतिष के खगोलीय गणित पर आधारित है। सूर्य सिद्धांत, जो प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, ग्रहों की गति, राशियों के विभाजन, और उनके प्रभावों की गणना के लिए नियम प्रदान करता है। D-15 चार्ट की गणना निम्नलिखित चरणों में की जाती है:

 

राशि का विभाजन:

प्रत्येक राशि (30 अंश) को 15 बराबर भागों में बांटा जाता है।

प्रत्येक भाग = 30 ÷ 15 = 2 अंश।

 

उदाहरण: मेष राशि के लिए, 0-2 अंश मेष, 2-4 अंश वृष, 4-6 अंश मिथुन, और इसी तरह आगे।

 

ग्रहों की स्थिति:

जन्म कुंडली (D-1) में ग्रहों की स्थिति (अंश और कला) को नोट किया जाता है।

प्रत्येक ग्रह की स्थिति को D-15 चार्ट में उनके संबंधित 2-अंशीय खंड के आधार पर रखा जाता है।

 

लग्न का निर्धारण:

D-15 चार्ट में लग्न की गणना भी उसी तरह की जाती है, जैसे D-1 चार्ट में, लेकिन यह 2-अंशीय खंडों के आधार पर निर्धारित होता है।

 

सूर्य सिद्धांत के आधार पर गणना:

सूर्य सिद्धांत के अनुसार, ग्रहों की गति और उनकी स्थिति की गणना सूर्य की गति (सौर दिन) और नक्षत्रों के आधार पर की जाती है।

 

D-15 चार्ट में ग्रहों की स्थिति को सूर्य सिद्धांत के नक्षत्र पद्धति और राशि विभाजन के आधार पर परिष्कृत किया जाता है।

 

वैज्ञानिकता: D-15 चार्ट की गणना में खगोलीय गणित की सटीकता महत्वपूर्ण है। यह प्रक्रिया ग्रहों की कक्षा, उनकी गति, और राशियों के बीच कोणीय संबंधों पर आधारित है। आधुनिक ज्योतिष सॉफ्टवेयर इस गणना को स्वचालित रूप से करते हैं, लेकिन प्राचीन ज्योतिषी सूर्य सिद्धांत के सूत्रों का उपयोग करते थे, जैसे:

 

ग्रह स्थिति सूत्र: ग्रह का अंश = (ग्रह की गति × समय) + प्रारंभिक स्थिति

राशि विभाजन सूत्र: प्रत्येक खंड = राशि का कुल अंश ÷ खंडों की संख्या (30 ÷ 15 = 2 अंश)

 

D-15 चार्ट के प्रमुख घटक

D-15 चार्ट के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं:

 

लग्न: D-15 चार्ट का लग्न व्यक्ति की सुख और समृद्धि की दिशा को दर्शाता है।

ग्रह: सभी नौ ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु) की स्थिति और उनके प्रभाव।

 

भाव: 12 भाव, विशेष रूप से चतुर्थ (सुख), नवम (धर्म), और दशम (कर्म) भाव, D-15 चार्ट में महत्वपूर्ण हैं।

 

नक्षत्र: प्रत्येक ग्रह का नक्षत्र और उसका प्रभाव D-15 चार्ट में विश्लेषण किया जाता है।

दशा

और गोचर: D-15 चार्ट में विंशोत्तरी दशा और गोचर का उपयोग समय-आधारित भविष्यवाणी के लिए किया जाता है।

 

D-15 चार्ट का फलित: सरल विधि और सूत्र

D-15 चार्ट का फलित करने की प्रक्रिया में निम्नलिखित सरल विधियाँ और सूत्र उपयोगी हैं:

 

लग्न विश्लेषण:

D-15 में लग्न की स्थिति सुख और समृद्धि के स्तर को दर्शाती है।

 

यदि लग्न शुभ ग्रहों (गुरु, शुक्र, बुध) से युक्त या दृष्ट हो, तो व्यक्ति को भौतिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है।

 

चतुर्थ भाव विश्लेषण:

चतुर्थ भाव सुख, माता, और संपत्ति का कारक है।

 

सूत्र: यदि चतुर्थेश (चतुर्थ भाव का स्वामी) बलवान हो और शुभ ग्रहों से युक्त हो, तो सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है।

 

उदाहरण: यदि चतुर्थेश गुरु हो और वह उच्च राशि (कर्क) में हो, तो व्यक्ति को वाहन, संपत्ति, और माता का सुख प्राप्त होता है।

 

नवम भाव विश्लेषण:

नवम भाव धर्म और भाग्य का कारक है।

सूत्र: नवमेश और गुरु की स्थिति D-15 में व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति को दर्शाती है।

 

उदाहरण: यदि नवमेश सूर्य हो और वह सिंह राशि में हो, तो व्यक्ति धर्म और नैतिकता में दृढ़ होता है।

 

ग्रहों की स्थिति और दृष्टि:

शुभ ग्रहों (गुरु, शुक्र, बुध) की दृष्टि सुखदायी होती है।

 

अशुभ ग्रहों (शनि, राहु, केतु) की दृष्टि सुख में कमी ला सकती है, लेकिन यह कर्म और आध्यात्मिक प्रगति को बढ़ावा देती है।

 

दशा और गोचर का विश्लेषण:

D-15 चार्ट में विंशोत्तरी दशा के आधार पर सुख और समृद्धि का समय निर्धारित किया जाता है।

 

सूत्र: यदि दशानाथ (वर्तमान दशा का स्वामी) D-15 में शुभ भाव (1, 4, 5, 9) में हो, तो वह अवधि सुखदायी होती है।

 

सरल विधि:

D-15 चार्ट में चतुर्थ और नवम भाव को प्राथमिकता दें।

लग्न, चतुर्थेश, और नवमेश की स्थिति का विश्लेषण करें।

शुभ ग्रहों की दृष्टि और अशुभ ग्रहों के प्रभाव को संतुलित करें।

दशा और गोचर के आधार पर समय-आधारित भविष्यवाणी करें।

 

पौराणिक कथा और D-15 चार्ट

      D-15 चार्ट का संबंध वैदिक ज्योतिष की पौराणिक कथाओं से भी है, विशेष रूप से सूर्य सिद्धांत और चंद्रमा की कथाओं से। एक प्रमुख कथा जो D-15 चार्ट के महत्व को दर्शाती है, वह है समुद्र मंथन की कथा:

 

समुद्र मंथन और सुख का प्रतीक: समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत, लक्ष्मी, और अन्य रत्न प्राप्त किए। यह कथा सुख और समृद्धि के लिए संघर्ष और संतुलन को दर्शाती है। D-15 चार्ट भी इसी तरह व्यक्ति के जीवन में सुख (लक्ष्मी) और आध्यात्मिक प्रगति (अमृत) के बीच संतुलन को दर्शाता है।

 

चंद्रमा और सुख: चंद्रमा को सुख और माता का कारक माना जाता है। सूर्य सिद्धांत में चंद्रमा की गति और नक्षत्रों का उपयोग D-15 चार्ट की गणना में किया जाता है। चंद्रमा की कथा (जैसे चंद्रमा का अमृत प्राप्त करना) D-15 चार्ट के सुखदायी पहलू को दर्शाती है।

 

श्लोक:

यथा चन्द्रः सौम्यति सर्वं विश्वं, सुखं ददाति मानवस्य जीवनम्।

 

तथैव कुंडली पंचदशांशे, सुखं समृद्धिं च दर्शति शास्त्रम्॥

 

(अर्थ: जैसे चंद्रमा अपनी सौम्यता से विश्व को सुख देता है, वैसे ही D-15 चार्ट ज्योतिष शास्त्र में सुख और समृद्धि को दर्शाता है।)

 

वैज्ञानिकता और उदाहरण

 

D-15 चार्ट की वैज्ञानिकता इसकी गणनात्मक सटीकता और खगोलीय गणित में निहित है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार, ग्रहों की स्थिति और उनकी गति की गणना सौर और चंद्र गति के आधार पर की जाती है। यह प्रक्रिया आधुनिक खगोलशास्त्र के साथ भी संनादति है, क्योंकि ग्रहों की स्थिति को अंश और कला में मापा जाता है।

 

उदाहरण:

 

मान लीजिए, एक व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न मेष राशि में 10 अंश पर है। D-15 चार्ट में लग्न की गणना के लिए:

10 अंश ÷ 2 = 5वां खंड।

मेष राशि के लिए खंड: 0-2 (मेष), 2-4 (वृष), 4-6 (मिथुन), 6-8 (कर्क), 8-10 (सिंह), 10-12 (कन्या), आदि।

 

10 अंश पर लग्न कन्या राशि में होगा।

यदि चतुर्थेश गुरु कर्क राशि में उच्च हो, तो व्यक्ति को वाहन, संपत्ति, और माता का सुख प्राप्त होगा।

प्रमाण:

 

बृहत पराशर होरा शास्त्र में पराशर ऋषि ने वर्ग चार्टों के महत्व को बताया है:

“विभाजन कुंडलियां सूक्ष्म फल दर्शति, यथा पंचदशांशः सुखं समृद्धिं च।”

 

(अर्थ: विभाजन कुंडलियां सूक्ष्म फल देती हैं, जैसे D-15 सुख और समृद्धि को दर्शाता है।)

 

मंत्र:

D-15 चार्ट के विश्लेषण के लिए चंद्रमा और गुरु के मंत्र उपयोगी हैं:

 

चंद्रमा मंत्र:

ॐ सों सोमाय नमः

 

गुरु मंत्र:

ॐ बृं बृहस्पतये नमः

 

इन मंत्रों का जाप D-15 चार्ट के शुभ प्रभावों को बढ़ाने में मदद करता है।

 

D-15 चार्ट के सभी अंगों का विस्तृत वर्णन

 

लग्न: D-15 में लग्न व्यक्ति की समग्र सुख और समृद्धि की स्थिति को दर्शाता है। यदि लग्न शुभ ग्रहों से प्रभावित हो, तो जीवन सुखमय होता है।

 

चतुर्थ भाव: सुख, माता, संपत्ति, और वाहन का कारक। चतुर्थेश की स्थिति और शुभ-अशुभ ग्रहों की दृष्टि इसका फल निर्धारित करती है।

 

नवम भाव: धर्म, भाग्य, और आध्यात्मिक प्रगति का कारक। नवमेश की स्थिति व्यक्ति की नैतिकता और धर्म के प्रति झुकाव को दर्शाती है।

 

ग्रहों की स्थिति:

सूर्य: आत्मिक शक्ति और सामाजिक प्रतिष्ठा।

 

चंद्र: सुख और मानसिक शांति।

 

गुरु: धर्म और समृद्धि।

 

शुक्र: विलासिता और भौतिक सुख।

 

शनि: कर्म और संघर्ष के माध्यम से सुख।

 

दशा और गोचर: D-15 चार्ट में दशा का विश्लेषण समय-आधारित सुख और समृद्धि को दर्शाता है।

 

     D-15 चार्ट ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण वर्ग चार्ट है जो सुख, समृद्धि, और आध्यात्मिक प्रगति का सूक्ष्म विश्लेषण करता है। इसकी गणना सूर्य सिद्धांत और खगोलीय गणित पर आधारित है, जो इसे वैज्ञानिकता प्रदान करता है। चतुर्थ और नवम भाव, लग्न, और ग्रहों की स्थिति इसके प्रमुख घटक हैं। पौराणिक कथाएँ, जैसे समुद्र मंथन, इसके सुख और आध्यात्मिकता के प्रतीक को दर्शाती हैं। श्लोक और मंत्र इसके प्रभाव को बढ़ाने में सहायक हैं।

 

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🔍 आपके इष्ट देवता को जानने के लिए आपकी जन्म कुंडली (D1 चार्ट) और नवांश कुंडली (D9 चार्ट) का विश्लेषण किया जाता है।

विशेष रूप से, D9 चार्ट में 12वें भाव के स्वामी की स्थिति के आधार पर यह तय किया जाता है।

 

🙏 नियमित रूप से अपने इष्ट देव की पूजा करने से:

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🌺 जय श्री राम / हर हर महादेव / ॐ नमः भगवते वासुदेवाय 🌺

 

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