जून के महीने में, बरसात के मौसम के बीच, सारिका की ट्रांसफर मुलुंड में ब्रांच मैनेजर के पद पर हुई। भारी बारिश और ट्रेन की भीड़ से जूझते हुए, वह किसी तरह समय पर बैंक पहुंची। वहां ग्राहकों और कर्मचारियों से परिचय, काम का हैंडओवर, और नए काम की शुरुआत में कब दोपहर हो गई, उसे पता भी नहीं चला।
पहले दिन, ग्राहकों की भीड़ छंटने के बाद, उसने अपने लंच का डिब्बा निकाला और पिछले ब्रांच मैनेजर, श्री गोरे, के साथ खाना खाने लगी। तभी दरवाजे पर एक महिला खड़ी दिखी। उसका साधारण सा चेहरा और उपस्थिति किसी का ध्यान खींचने वाली नहीं थी। वह सारिका को दूर से ही देख रही थी, लेकिन शटर बंद करने का समय आते ही वह चली गई। गोरे सर ने जाते समय सारिका को चेताया, “उस महिला को अंदर मत आने देना, वह मानसिक रूप से अस्थिर है और पुराने पैसे मांगकर परेशान करती है।”
कुछ दिनों बाद, ब्रांच की जिम्मेदारी पूरी तरह सारिका के हाथ में आ गई। शुरुआत में काम कम था, लेकिन जैसे ही लक्ष्य दिए गए, सारिका ने मार्केटिंग टीम बनाकर सक्रियता से काम शुरू कर दिया।
एक दिन, सारिका अपने काम में व्यस्त थी, तभी वही महिला अचानक बैंक में आई और सामने की कुर्सी पर बैठ गई। उसका साधारण पहनावा, खुरदुरी त्वचा, और थकी हुई आंखें उसकी कठिन परिस्थितियों को बयान कर रही थीं। उसने सारिका से अपने “खोए हुए पैसे” वापस मांगने की बात की।
सारिका ने उससे पासबुक और सबूत लाने को कहा। कुछ दिनों बाद वह महिला फटे हुए पासबुक और रसीदों का ढेर लेकर फिर आई। सारिका ने इन कागजों को व्यवस्थित कराकर जांच के लिए अकाउंट्स डिपार्टमेंट भेजा।
जांच में पता चला कि महिला द्वारा जमा की गई रकम गलती से किसी “शाह” नामक व्यक्ति के खाते में चली गई थी। शाह ने यह पैसा निकाल लिया और खाता बंद कर दिया। सारिका ने शाह का पता लगाने की कोशिश की और आखिरकार उनसे मुलाकात की।
शाह ने पहले तो अपने पैसे होने की बात कही, लेकिन सारिका के तर्क और महिला की दुर्दशा सुनकर उनका हृदय पिघल गया। उन्होंने महिला की जमा की गई रकम और दस साल का ब्याज जोड़कर ₹1,75,000 का चेक लिखा।
जब सारिका ने वह चेक महिला को दिया, तो उसकी आंखों में आंसू थे। इस घटना ने सारिका को यह सिखाया कि कभी-कभी कर्तव्य सिर्फ एक पेशे तक सीमित नहीं होता; यह मानवता के प्रति हमारी जिम्मेदारी बन जाता है।