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बाल गंगाधर तिलक पुण्यतिथि: स्वराज्य के पुजारी को श्रद्धांजलि

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, तेजस्वी राष्ट्रवादी, और जनता के प्रिय नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि 1 अगस्त को मनाई जाती है। यह दिन न केवल उनके महान योगदान को स्मरण करने का अवसर है, बल्कि राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण, त्याग और आत्मबलिदान को नमन करने का भी दिन है।

 

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

 

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था। उनका पूरा नाम ‘केशव गंगाधर तिलक’ था। वे बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान, स्वाभिमानी और दृढ़निश्चयी थे। उनके पिता गंगाधर तिलक संस्कृत और गणित के विद्वान थे। प्रारंभिक शिक्षा के बाद तिलक ने पुणे के डेक्कन कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और फिर कानून की पढ़ाई पूरी की।

पत्रकारिता और सामाजिक चेतना

 

तिलक न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक महान पत्रकार और लेखक भी थे। उन्होंने “केसरी” (मराठी) और “मराठा” (अंग्रेज़ी) नामक पत्रिकाओं की शुरुआत की, जिनके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना की और भारतीय जनता को जागरूक किया।

उनके लेखन में आग होती थी, जो सीधे जनता के हृदय को छू जाती थी। वे मानते थे कि “कलम और कागज भी एक क्रांति का हथियार हो सकते हैं।”

 

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है”

 

बाल गंगाधर तिलक का सबसे प्रसिद्ध नारा था – स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा” यह नारा भारत के स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोष बन गया और हर भारतीय के मन में स्वतंत्रता की लौ जला गया।

 

तिलक पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने भारतीय जनता में आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की भावना को प्रबल किया। उन्होंने यह साफ कहा कि आज़ादी भीख में नहीं मिलेगी, इसके लिए संघर्ष करना होगा।

 

शिक्षा और समाज सुधार

 

तिलक का मानना था कि राष्ट्र की प्रगति शिक्षा से ही संभव है। उन्होंने ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ की स्थापना की और ‘डेक्कन एजुकेशन सोसायटी’ के माध्यम से आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा दिया। वे चाहते थे कि भारतीय युवा अंग्रेज़ी शिक्षा तो प्राप्त करें, परंतु अपनी संस्कृति और परंपराओं को भी न भूलें।

उन्होंने गणेश उत्सव और शिवाजी जयंती जैसे त्योहारों को सार्वजनिक रूप देकर सामाजिक एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना को बढ़ावा दिया। उनका यह प्रयास राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत सफल रहा, क्योंकि इसके माध्यम से लोगों को संगठित किया जा सका।

 

राजनीति में योगदान

 

बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने कांग्रेस के गरम दल का नेतृत्व किया, जिसमें लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल जैसे क्रांतिकारी भी शामिल थे। इन्हें मिलकर ‘लाल-बाल-पाल’ कहा गया।

वे उदारवादियों की तुलना में अधिक तीव्र राष्ट्रवादी विचार रखते थे। उनका मानना था कि केवल प्रार्थना और याचिका से ब्रिटिश राज नहीं हटेगा, उसके लिए संघर्ष आवश्यक है।

 

कारावास और ‘गीता रहस्य’

 

ब्रिटिश शासन ने तिलक की बढ़ती लोकप्रियता और लेखन से भयभीत होकर उन्हें 1908 में देशद्रोह के आरोप में मांडले (बर्मा) की जेल में भेज दिया। वहाँ उन्होंने गीता के गहन अध्ययन के बाद श्रीमद्भगवद्गीता – रहस्य’ नामक पुस्तक की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने कर्मयोग को जीवन का मूल बताया और भारतीयों को निष्काम कर्म की राह पर चलने का मार्ग सुझाया।

उनकी यह रचना आज भी एक प्रेरणा स्रोत मानी जाती है और यह दिखाती है कि किस प्रकार एक व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी ज्ञान का प्रकाश फैला सकता है।

 

उनकी मृत्यु और राष्ट्र पर प्रभाव

 

बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुआ। उनके निधन से संपूर्ण देश शोकाकुल हो गया। महात्मा गांधी ने उनके निधन पर कहा था, “भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के आकाश से एक तारा टूट गया है।”

उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग सम्मिलित हुए, और यह दिखाता है कि वे सच में जनता के नेता — लोकमान्य — थे।

 

आज के संदर्भ में तिलक का महत्व

 

आज जब हम स्वतंत्र भारत में रह रहे हैं, तिलक जैसे महापुरुषों का स्मरण हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता केवल अधिकार नहीं, एक जिम्मेदारी भी है। उन्होंने जो आदर्श स्थापित किए — शिक्षा, राष्ट्रप्रेम, सामाजिक एकता और आत्मबलिदान — वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

उनका जीवन हमें सिखाता है कि जब तक हम अपनी संस्कृति और आत्मबल पर विश्वास नहीं करेंगे, तब तक हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र नहीं हो सकते।

 

निष्कर्ष

 

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जीवन भारत के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता की अलख जगाई, बल्कि देश को एक नई दिशा दी। उनकी पुण्यतिथि हमें यह अवसर देती है कि हम उनके जीवन से प्रेरणा लें और अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करें।

1 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि पर हम सभी भारतवासियों को उन्हें नमन करते हुए यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलकर भारत को एक सशक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाएँगे।

 

लोकमान्य तिलक को शत-शत नमन!
जय हिन्द! वन्दे मातरम्!

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