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बहुला चतुर्थी व्रत: महत्व, कथा और पूजन विधि

परिचय

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चतुर्थी कहा जाता है। यह व्रत मुख्यतः गौ पूजन और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए प्रसिद्ध है। भारत के कई हिस्सों में इसे “गोपाष्टमी” या “गौरी-गणेश पूजन” से जोड़ा जाता है, लेकिन बहुला चतुर्थी का विशिष्ट महत्व गौ माता की महिमा और उनके संरक्षण से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और गौ पूजन करने से संतान सुख, परिवार में समृद्धि, और पापों का क्षय होता है।

बहुला चतुर्थी का महत्व

बहुला चतुर्थी केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिंदू संस्कृति में गाय को “माता” का दर्जा दिया गया है। वेदों में इसे ‘अघ्न्या’ कहा गया है, अर्थात जिसे कभी भी मारा न जाए। बहुला चतुर्थी व्रत का उद्देश्य गौ माता के महत्व को जनमानस में स्थापित करना और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है।

इस व्रत का महत्व निम्न कारणों से और भी बढ़ जाता है—

  1. गौ संरक्षण का संदेश – यह पर्व लोगों को गौ रक्षा और सेवा के लिए प्रेरित करता है।
  2. पारिवारिक सुख-शांति – मान्यता है कि व्रत करने से परिवार में कलह समाप्त होती है।
  3. संतान सुख की प्राप्ति – निःसंतान दंपत्ति भी इस दिन व्रत करके संतान प्राप्ति की कामना करते हैं।
  4. आध्यात्मिक शुद्धि – गौ सेवा और व्रत से मन, वाणी और शरीर की शुद्धि होती है।

बहुला चतुर्थी की पौराणिक कथा

बहुला चतुर्थी से जुड़ी कथा भगवान श्रीकृष्ण के समय की मानी जाती है।

कथा –
कहते हैं कि द्वापर युग में एक गाय थी जिसका नाम बहुला था। वह अत्यंत धर्मनिष्ठ और अपने मालिक के प्रति वफादार थी। एक दिन बहुला जंगल में घास चरने गई। तभी रास्ते में एक शेर ने उसे पकड़ लिया। शेर भूख से व्याकुल था और उसे खाने की इच्छा व्यक्त की।

बहुला ने विनम्रता से शेर से कहा –
“हे वनराज! मेरा बछड़ा घर पर मेरा इंतजार कर रहा है। कृपया मुझे पहले बछड़े को दूध पिलाने दें, फिर मैं स्वयं लौटकर आपके भोजन हेतु आ जाऊँगी।”

शेर ने सोचा कि यह असंभव है कि कोई अपने मृत्यु स्थान पर स्वयं लौटकर आए। लेकिन बहुला की आंखों में सत्य और धर्म की चमक देखकर उसने उसे जाने दिया।

बहुला घर लौटी, अपने बछड़े को प्यार से दूध पिलाया और फिर वचन निभाने के लिए वापस शेर के पास आ गई।

शेर ने उसकी सच्चाई देखकर कहा –
“हे गौ माता! मैं आपका मांस नहीं खाऊँगा। आपने अपने धर्म का पालन किया है, अतः मैं भी अपने धर्म का पालन करते हुए आपको आशीर्वाद देता हूँ कि आज के दिन आपका पूजन और व्रत करने वाला सदैव सुखी और समृद्ध होगा।”

यह शेर वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण का रूप था, जिन्होंने बहुला की सत्यनिष्ठा की परीक्षा ली थी।

 

पूजन विधि

बहुला चतुर्थी का व्रत प्रातःकाल स्नान करके, संकल्प लेकर और दिनभर उपवास रखकर किया जाता है। इसका मुख्य केंद्र गौ पूजन है।

पूजन की चरणबद्ध विधि इस प्रकार है:

  1. स्नान और संकल्प – प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें –
    मैं आज बहुला चतुर्थी व्रत करूंगा/करूंगी, भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता की पूजा कर परिवार के कल्याण की कामना करूंगा/करूंगी।”
  2. गौ माता का पूजन
    • गौ माता को स्नान कराएं (यदि संभव हो) या स्वच्छ जल छिड़कें।
    • उन्हें हल्दी, रोली, फूल, धूप, दीप, चावल और वस्त्र अर्पित करें।
    • घास, गुड़, फल, हरा चारा खिलाएं।
  3. भगवान श्रीकृष्ण की पूजा
    • श्रीकृष्ण जी को दूध, मक्खन और मिश्री का भोग लगाएं।
    • तुलसी पत्र अर्पित करें।
    • श्रीकृष्ण चालीसा या गोपाल सहस्रनाम का पाठ करें।
  4. व्रत कथा श्रवण – बहुला चतुर्थी की कथा सुनना और सुनाना अनिवार्य माना जाता है।
  5. आरती और परिक्रमा – गौ माता की 7 परिक्रमा करें और फिर आरती करें।
  6. व्रत समापन – व्रत का समापन सूर्यास्त के बाद, गौ माता को पुनः चारा खिलाकर और परिवारजनों को प्रसाद वितरित करके करें।

व्रत नियम

  • इस दिन मांसाहार, तला-भुना भोजन, प्याज-लहसुन का सेवन न करें।
  • व्रत में केवल फलाहार या दूध-फल का सेवन करें।
  • किसी भी गौ को मारना, भगाना या कष्ट पहुंचाना महापाप माना जाता है।
  • गौ सेवा, दान-पुण्य और जरूरतमंदों की मदद करना शुभ है।

बहुला चतुर्थी का धार्मिक महत्व

धर्मशास्त्रों में कहा गया है –
गावो विश्वस्य मातरः” – अर्थात गाय सम्पूर्ण जगत की माता है।
गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना जाता है। बहुला चतुर्थी के दिन गाय की सेवा करना सभी देवी-देवताओं की सेवा के समान है।

इस व्रत का विशेष महत्व यह भी है कि यह सत्य, धर्म और वचनबद्धता के पालन का संदेश देता है। बहुला की कथा हमें सिखाती है कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी ईश्वर की कृपा पाई जा सकती है।

सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश

बहुला चतुर्थी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन जैसा है। इस दिन हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि—

  • हम गौ संरक्षण में सहयोग करेंगे।
  • डेयरी उद्योग में होने वाले अत्याचारों के खिलाफ जागरूकता फैलाएंगे।
  • गाय और अन्य पशुओं के लिए पानी, चारा और सुरक्षित आश्रय का प्रबंध करेंगे।

गाय केवल दूध ही नहीं देती, बल्कि उनका गोबर और गोमूत्र भी खेती, चिकित्सा और स्वच्छता के लिए उपयोगी होता है। इस प्रकार, गाय का संरक्षण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करता है।

बहुला चतुर्थी से जुड़ी अन्य मान्यताएं

  • कुछ स्थानों पर यह व्रत गणेश चतुर्थी के आरंभ से पहले आता है, इसलिए इसे गणेश पूजा की तैयारी का भी प्रतीक माना जाता है।
  • गुजरात और राजस्थान में इस दिन महिलाएं विशेष रूप से अपने बच्चों के स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।
  • कई जगहों पर इस दिन बैल, बकरी और अन्य पालतू पशुओं का भी पूजन होता है, क्योंकि वे भी कृषि और जीवन यापन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

उपसंहार

बहुला चतुर्थी व्रत केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह हमें पशु प्रेम, पर्यावरण संरक्षण और सत्यनिष्ठा की प्रेरणा देता है। बहुला गाय की तरह हमें भी अपने वचनों और कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।

इस दिन गाय की सेवा, भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और सच्चे मन से व्रत करने से न केवल भौतिक सुख-संपत्ति, बल्कि आध्यात्मिक शांति भी प्राप्त होती है। बहुला चतुर्थी हमें यह याद दिलाती है कि धरती पर सभी जीव-जंतु हमारे परिवार का हिस्सा हैं, और उनकी सेवा ही सच्ची ईश्वर भक्ति है।

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