“राहत इंदौरी” ने लिखा था कि-“सभी का खून है शामिल है,यहाँ की मिट्टी में,किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.”
राहत ने जिस दुर्भावना के साथ ये लिखा था, उसका माकूल और खूबसूरत जवाब “बेचैन मधुपुरी” जी ने दिया है
सभी का खून शामिल था यहाँ की मिट्टी में,
हम अनजान थोड़े हैं!
किंतु जिनके अब्बा ले चुके पाकिस्तान,
अब उनके बाप का हिंदुस्तान थोड़े है!
नही शामिल है तुम्हारा खून इस मिट्टी में,
यह तुम्हारे बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है!
बहुत लूटा फिरंगी ने कभी बाबर के नाजायज पूतों ने
यह मेरा घर है मेरी ज़ान, मुफ्त की सराय थोड़ी है
बिरले मिलते है सच्चे मुसलमान इस दुनिया में
हर कोई अब्दुल हमीद और कलाम थोड़ी है
यकीनन किराएदार ही मालूम पडते हैं इस मुल्क में
य़ू ही अपने ही देश को कोई जलाता थोड़ी है।
ख़फ़ा होते हैं तो हो जाने दो, घर के मेहमान थोड़ी हैं
पूरी दुनिया में लताड़े जा चुके हैं, इनका मान थोड़ी है
ये कान्हा और राम की धरती, सजदा करना ही होगा
मेरा वतन ये मेरी माँ है, कोई लूट का सामान थोड़ी है
मैं जानता हूँ, हमारे घर में बन चुके हैं सैकड़ों भेदी
जो चंद सिक्कों में बिक जाए वो मेरा ईमान थोड़ी है
मेरे पूर्वजों ने सींचा है अपने लहू के कतरे कतरे से
बहुत बांटा मगर अब और नहीं, यह ख़ैरात थोड़ी है
जो रहजन थे उन्हें हाकिम बना कर उम्र भर पूजा
मगर अब हम भी सच्चाई से अनजान थोड़े हैं
कुछ तो अपने भी शामिल है इस वतन तोड़ने में
अब खुजलीवाल और मोमता मुसलमान थोड़ी है।।
“बेचैन मधुपुरी”