Sshree Astro Vastu

Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

आरती

भाऊबीज को बीते दो महीने हो गए थे, लेकिन गोपाल का कोई अता-पता नहीं था। इस वजह से कुसुमताई परेशान थीं। गोपाल के लिए क्या-क्या नहीं किया था उन्होंने? छोटे भाई के रूप में हमेशा ख्याल रखा, लेकिन वह सब भूल गया।

कुछ झगड़ों और विवादों को दस साल हो गए थे। फिर भी वह मनमुटाव लिए बैठा था। अब तो उम्र अस्सी के करीब है। क्या उसे यह समझ नहीं आता कि इंसान अमर नहीं है? अच्छी बातें इंसान जल्दी भूल जाता है और कड़वी बातें बार-बार याद करता रहता है।

आरती, उनकी बहू, चाय लेकर आई। चाय की कुछ बूंदें प्लेट में गिर गई थीं, और कुसुमताई को यह देखकर गुस्सा आ गया।

“आरती, मुझे प्लेट में चाय गिरना बिल्कुल पसंद नहीं। तुम्हें पता है न? फिर जानबूझकर ऐसा क्यों करती हो?”

शांत और सहनशील आरती कुछ कहती नहीं थी, लेकिन कुसुमताई का स्वभाव भी ऐसा था कि वे अपनी आदत से बाज नहीं आती थीं।

“मां, मैं दूसरी प्लेट ले आती हूं,” आरती ने कहा।

आरती और कुसुमताई के स्वभाव में ज़मीन-आसमान का फर्क था। कुसुमताई का हर काम व्यवस्थित होता था, जबकि आरती जल्दी-जल्दी काम निपटा लेती थी। स्कूल की नौकरी, बच्चों की देखभाल, और घर के कामों के बीच वह परफेक्शन पर ध्यान नहीं दे पाती थी।

कुसुमताई का बेटा अमित अपने काम में व्यस्त था। वह जब भी अपनी मां से बात करता, वही पुरानी बातें – गोपाल मामा की नाराजगी, आरती की छोटी-छोटी गलतियां – सुनने को मिलतीं। हालांकि, वह जानता था कि आरती एक अच्छी इंसान है।

एक दिन, ऑफिस से अमित ने आरती को फोन किया।
“आरती, तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है और एक बुरी खबर। पहले कौन-सी सुनोगी?”

आरती मुस्कुराई। “पहले खुशखबरी बताओ।”

“मुझे प्रमोशन मिला है। मैं मैनेजर बन गया हूं!”

आरती खुशी से झूम उठी। “वाह, बहुत-बहुत बधाई, मैनेजर साहब!”

“अब बुरी खबर। मुझे काफी ट्रैवल करना पड़ेगा, यहां तक कि विदेश भी जाना होगा।” अमित ने कहा।

आरती ने अमित को शुभकामनाएं दीं और उसे याद दिलाया कि मां को यह खबर सुनाकर खुश कर देना।

रविवार का प्लान बदल गया
आरती ने अमित से कहा, “तुम मां को बाहर खाने पर ले जाओ। कृष्णा डायनिंग रूम का खाना उन्हें बहुत पसंद है। वहां ले जाकर उन्हें खुश करो।”

रविवार को कुसुमताई ने अपनी पसंदीदा साड़ी पहनी, बालों में अंबाडा बांधा, और बेटे के साथ बाहर जाने के लिए तैयार हो गईं। कृष्णा डायनिंग रूम में अमित ने मां के साथ समय बिताया, उनकी पसंद का खाना खिलाया, और उनकी पसंद का नाटक दिखाया।

गोपाल मामा की वापसी
जब अमित और कुसुमताई घर लौटे, तो देखा कि गोपाल मामा और मामी वहां आए हुए थे। कुसुमताई ने उन्हें देखा और भावुक होकर गले लगा लिया।

गोपाल मामा बोले, “ताई, तुम्हारी बहू ने मुझसे जो बातें कीं, उनके कारण मैं सारा गुस्सा भूलकर यहां आया हूं।”

आरती ने उस दिन मां की पसंद का खाना बनाया। दोनों भाई-बहन ने पुराने गिले-शिकवे भुलाकर दिल खोलकर बातें कीं।

कुछ ही दिनों बाद कुसुमताई बीमार हो गईं। अस्पताल में आरती ने उनकी पूरी सेवा की। एक दिन कुसुमताई ने आरती से कहा, “तूने मुझे और गोपाल को करीब लाया। मैं तेरा शुक्रिया अदा करती हूं। तूने रिश्तों को सहेजा है। मेरी आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए तेरा आभार। हर जन्म में मुझे तेरे जैसी बहू मिले!”

आरती के लिए यह पल अनमोल था। अमित ने जब यह सुना, तो उसने पूछा, “आरती, तुमने मामा से ऐसा क्या कहा?”

आरती मुस्कुराई, “मैंने कहा कि मामी का गुस्सा मुझ पर निकलता है, और मुझे राहत देने के लिए वे घर आ जाएं।”

अमित आरती की सूझ-बूझ और रिश्तों को सहेजने की कला का कायल हो गया।

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×