एक आदमी सच में एक कटोरी पानी पक्षियों के लिए रखता है और आगे क्या होता है?
उन पक्षियों और उस आदमी के बीच क्या संवाद हुआ? इसका वर्णन नीचे दी गई कविता में किया गया है।
कटोरी में पानी देखते ही
इठलाता एक पंछी आया
चोंच में बूँद उठाते ही
मन में उसने यह सोचा
“ले जा रहा हूँ अब इसे,”
“अपने घोंसले के बच्चे को”
“आज की जरूरत पूरी हुई,”
“कल की चिंता क्यूँ करूँ?”
कटोरी के जल की चर्चा
चिड़ियों में दूर तक फैली
गाँव की सभा में उसकी
बात विशेष रूप से कही गई
“है कोई इस गाँव में,”
“जो सच में अच्छा है”
“पानी रखता कटोरी में,”
“और कहता— यह तुम्हारा है!”
नेक दिल मानव के घर
कुछ पक्षी मिलने को आए
अपने नन्हे पंख फड़फड़ाकर
उनमें से एक यूँ बोला
“हमारे लिए पानी रखा,”
“ऐ मानव, बताओ क्यूँ?”
“हम तो तुम्हारे जैसे नहीं,”
“फिर भी उपकार किया क्यूँ?”
आजकल जात-पात का डर
हर ओर दिखने लगा है
मानव ही मानव का बैरी
ऐसा समय भी आ गया है
“हम तो रोज़ देखते हैं,”
“इस दुनिया का हाल”
“ऐसे में परायों के लिए,”
“कौन रखेगा जल की प्याली?”
तुम्हारे पास यही देखने
हम उड़कर आए हैं
कृपा कैसे स्वीकार करें?
इसीलिए कुछ कहने आए हैं
भोले सवाल सुनकर
वह व्यक्ति मौन हो गया
लज्जित चेहरे से फिर
धीरे-धीरे यह बोला
“यह दान नहीं, मित्र मेरे,”
“एक कर्ज चुका रहा हूँ”
“इस कटोरी के जल का”
“कारण तुम्हें बताता हूँ”
हमने ही पेड़ काट डाले
प्रकृति को वीरान किया
तुम्हारे घोंसले उजाड़ कर
अपना आशियाना बसा लिया
वन उजाड़कर हमने ही
शहरों को बड़ा बनाया
ऊँची-ऊँची इमारतों का
गर्व से अहंकार जताया
“पर उस ऐशो-आराम में,”
“सुकून नहीं पाया हमने”
“अंदर की तड़प को,”
“किसी से कह नहीं पाए हमने”
मशीनें ढूँढकर हमने ही
मेहनत से मुँह मोड़ा
आराम से जीने की चाह में
रोगों ने हमें जकड़ा
“तू सुबह चहकता है,”
“और मैं चिंता में डूब जाता हूँ”
“इस उलझे हुए मन को,”
“कैसे आज़ाद कर पाऊँ?”
तू जब गगन में उड़ता है
मैं तेरी उड़ान देखता हूँ
तेरी कसरतों को देखकर
खुद को भूल जाता हूँ
सुबह जब तू गाता है
मेरी नींद खुल जाती है
ऐसे में ऐ पक्षी मुझे बता
तेरे लिए मैं क्या कर पाता हूँ?
यह आभार के शब्द सुनकर
वह पक्षी झूम उठा
जल पीने की खुशी में
सारा पक्षीवृंद नाच उठा