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सुखी वैवाहिक जीवन के योग | कुंडली में सुखी वैवाहिक जीवन का राज

ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली में बहुत ही  विशेष   योग होते है जो वैवाहिक जीवन  में पति पत्नी में परस्पर प्रेम ,दाम्पत्य सुख, जीवन साथी से अंतरंग तथा मैत्रीपूर्ण सम्बन्धो को बताते है ।

 

आइये देखते है जन्म पत्रिका में सुखी  तथा सौभाग्यशाली वैवाहिक जीवन के क्या मापदंड है

तथा कौनसे योग दाम्पत्य सुख में कमी , अलगाव तथा झगड़े के कारण बनते है ।

 

 कुंडली में सुखी वैवाहिक जीवन के योग

पुरुष की कुंडली के शुक्र का सम्बन्ध महिला की कुण्डली के मंगल से होना पति पत्नी में परस्पर प्रेम और आकर्षण को बताता है ।

यदि ये लग्न कुंडली में है तो विवाह के समय प्रेम और आकर्षण को बताता है ।

और यदि नवमांश कुंडली (D – 9 chart) में है तो विवाह के पश्चात् निरंतर प्रेम और आकर्षण में वृद्धि को बताता है ।

 

  लग्न कुंडली में लड़के और लड़की के सूर्य और चंद्रमा  एक दूसरे से परस्पर त्रिकोण में हैं तो ये विवाह के पश्चात् समझदारी भरा गहरी दोस्ती पूर्ण वैवाहिक जीवन होता है ।

लग्न कुंडली मे सप्तम भाव तथा सप्तमेष का सम्बन्ध 5 9 11 भाव से होना प्रेम , आपसी सामंजस्य , परिवार के प्रति जिम्मेदारी तथा समर्पण को बताता है ।

 

  नवमांश कुण्डली में  शुक्र और नवमांश कुंडली के सप्तमेश का द्वितीय भाव या उपचय भाव (3 ,6, 10, 11)  में स्थित  होना विवाह के बाद समृद्धि और खुशहाली देता है ।

 

 नवांश वर्ग कुण्डली के लग्न पर शुभ प्रभाव होना और नवमांश कुंडली में लग्नेश का सम्बन्ध शुभ ग्रहों से होना वैवाहिक जीवन में एक विश्वस्यनीय और ईमानदारी जीवन साथी देता है।

 

लग्न कुंडली  में शुक्र और सप्तमेश यदि  त्रिकोण में है तो ये सुखी वैवाहिक जीवन का संकेत है ।

 

  नवमांश कुंडली में राजयोगों की उपस्थिति उच्च वैवाहिक सुख और आदर्श जीवन साथी प्रदान करता है।

 

लग्न कुंडली में शुभ सम्बंधित द्वादश भाव और सुस्थित  द्वादशेश (12th lord) घनिष्ठ मैत्रीपूर्ण अंतरंग सम्बन्धो को दर्शाते है ।

  लग्न कुण्डली के सप्तमेश का बली होकर नवमांश कुंडली में  उच्च या स्व राशि में स्थित होना जीवन साथी की  आर्थिक  मजबूत स्थिति ( धनी जीवन साथी देता है ) को बताता है ।

 

 सर्वाष्टक वर्ग में 7 और 11 भाव में 6 और 10 कि अपेक्षा अधिक शुभ अंक होना पति पत्नी में सामंजस्य , प्रेम तथा विश्वास को बताता है ।

 

 लग्न कुंडली के सप्तमेष का षड्बल 1:5 से अधिक है तथा सप्तम भाव का सम्बन्ध किसी भी अलगाववादी ग्रह से नहीं है तो ये वैवाहिक सम्बन्ध मजबूत प्रेम तथा विश्वास की डोर में बंधा होगा ।

 

उपयुक्त योगों में से किन्ही भी 2 योगों का कुंडली में  होना अच्छे वैवाहिक जीवन के संकेत है ।

यदि 3 से अधिक योग आपकी कुंडली में है तो ये वैवाहिक जीवन , अटूट , सामंजस्य पूर्ण , विश्वस्त , मैत्रीपूर्ण वैवाहिक जीवन होगा ..

 

 कुंडली में कष्टप्रद दाम्पत्य जीवन के योग :-

 

लग्न कुंडली में सप्तम भाव द्वितीय भाव पर अलगाववादी ग्रहों (राहु , केतु , शनि , सूर्य)का प्रभाव वैचारिक मतभेद तथा झगड़े को बताता है ।

 

लग्न कुंडली में सप्तमेष का 6 ,12 भाव में अशुभ ग्रहों के साथ होना वैवाहिक जीवन में तनाव , सम्बन्धो में आक्रामकता देता है ।

 

लग्न कुंडली के सप्तमेष तथा शुक्र का नवमांश कुंडली में त्रिक भावों में होना वैवाहिक सुख में कमी करता है ।

 

लग्न कुंडली में सप्तम भाव की अपेक्षा छटे तथा दशम भाव का बली होना सम्बन्धो में अलगाव , देता है ।

 

नवमांश कुंडली मे लग्न पर अलगाववादी ग्रहों का प्रभाव  दाम्पत्य सुख को नष्ट करता है ।

 

सभी की कुंडली में कभी भी एक ही प्रकार के योग नहीं होते । कुछ योग वैवाहिक सुख में कमी बताते है तथा कुछ योग वैवाहिक सुख देने वाले होते है ।

अतः किन्ही एक दो योगों से हमें किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँचना चाहिए ।

 

दशा अन्तर्दशा में जब लगातार लम्बे समय तक एक प्रकार के योगों से सम्बंधित ग्रह होते है तब व्यक्ति को उसके शुभ – अशुभ प्रभाव मिलते है ।

 

किसी एक अशुभ योग की दशा अन्तर्दशा कुछ समय के लिए अपना प्रभाव तो दिखती है लेकिन इससे सम्पूर्ण दाम्पत्य जीवन निर्धारित नहीं हो जाता …

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