पाशहस्ता दंडहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ।।
शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी ।
वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका ।।
ऋक्ष-केशी महा-कुक्षिर्नागास्या प्रेतपृष्ठका ।
दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मृग-श्रृंगा वृषानना ।।
फाटितास्या धूम्रश्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका ।
तापिनी शोषिणी स्थूलघोणोष्ठा कोटरी तथा ।।
विद्युल्लोला वलाकास्या, मार्जारी कटपूतना ।
अट्टहास्या च कामाक्षी, मृगाक्षी चेति ता मताः ।।
स्तोत्र पाठ के बाद वेदी में ( छोटा यज्ञ कुंडी ) में अग्नि स्थापन करे और सभी 64 योगिनी के नाम के स्मरण करते हुवे 11 आहुति दीजिए ।( शुद्ध घी से या फिर हवन द्रव्य से आहुति दे )
प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’ तथा अन्त में स्वाहा लगाकर हवन करें –
१॰ ॐ गजास्यै स्वाहा, २॰ सिंह-वक्त्रायै, ३॰ गृध्रास्यायै, ४॰ काक-तुण्डिकायै , ५॰ उष्ट्रास्यायै, ६॰ अश्व-खर-ग्रीवायै, ७॰ वाराहस्यायै, ८॰ शिवाननायै, ९॰ उलूकाक्ष्यै, १०॰ घोर-रवायै, ११॰ मायूर्यै, १२॰ शरभाननायै, १३॰ कोटराक्ष्यै, १४॰ अष्ट-वक्त्रायै, १५॰ कुब्जायै, १६॰ विकटाननायै, १७॰ शुष्कोदर्यै, १८॰ ललज्जिह्वायै, १९॰ श्व-दंष्ट्रायै, २०॰ वानराननायै, २१॰ ऋक्षाक्ष्यै, २२॰ केकराक्ष्यै, २३॰ बृहत्-तुण्डायै, २४॰ सुरा-प्रियायै, २५॰ कपाल-हस्तायै, २६॰ रक्ताक्ष्यै, २७॰ शुक्यै, २८॰ श्येन्यै, २९॰ कपोतिकायै, ३०॰ पाश-हस्तायै, ३१॰ दण्ड-हस्तायै, ३२॰ प्रचण्डायै, ३३॰ चण्ड-विक्रमायै, ३४॰ शिशुघ्न्यै, ३५॰ पाश-हन्त्र्यै, ३६॰ काल्यै, ३७॰ रुधिर-पायिन्यै, ३८॰ वसा-पानायै, ३९॰ गर्भ-भक्षायै, ४०॰ शव-हस्तायै, ४१॰ आन्त्र-मालिकायै, ४२॰ ऋक्ष-केश्यै, ४३॰ महा-कुक्ष्यै, ४४॰ नागास्यायै, ४५॰ प्रेत-पृष्ठकायै, ४६॰ दन्द-शूक-धरायै, ४७॰ क्रौञ्च्यै, ४८॰ मृग-श्रृंगायै, ४९॰ वृषाननायै, ५०॰ फाटितास्यायै, ५१॰ धूम्र-श्वासायै, ५२॰ व्योम-पादायै, ५३॰ ऊर्ध्व-दृष्टिकायै, ५४॰ तापिन्यै, ५५॰ शोषिण्यै, ५६॰ स्थूल-घोणोष्ठायै, ५७॰ कोटर्यै, ५८॰ विद्युल्लोलायै, ५९॰ बलाकास्यायै, ६०॰ मार्जार्यै, ६१॰ कट-पूतनायै, ६२॰ अट्टहास्यायै, ६३॰ कामाक्ष्यै, ६४॰ मृगाक्ष्यै ।
इस के बाद योगिनी यंत्र स्थापन ओर भगवान शिव की आरती करें । पूजा के बाद क्षमापना प्रार्थना करे ।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं l यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव l
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं l पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं ।
साधना समाप्त होने के बाद शिवलिंग पर चढ़ाएं चावल अलग से रख लें तथा अगले दिन बहते जल यथा नदी में प्रवाहित कर दें। ये उपासना 21 रात्रि तक करनी है । योगिनी देवी की माता स्वरूप ही उपासना करें । उपासना पूर्ण होने के बाद यंत्र या मूर्ति या सुपारी में स्थापना की हो वो सिद्ध हो जाएगा । चौरंग पर स्थापित उसी लाल वस्त्रम बांधकर अल्मारीमे रख दीजिए ।
ये उपासना के बाद जीवनमे कोई कमी नही रहेगी । बचपन से लेकर आजतक जो भी सपने देखे हो सच हो जाएँगे । हरेक समस्या स्वयम ही नाश हो जाएगी । कभी बीच उपसनामे ही कोई योगिनी प्रगट हो जाय तो वंदन किजीये पर कुछ मांगना नही । वो कहे तो भी विनंती कीजिये कि 21 दिन पूरे होने पर आप प्रसन्न रहिए । 21 वे दिन जब साधना पूर्ण हो तब दंडवत प्रणाम कीजिये और फिर जीवनमे जो भी पाना चाहते हो वो योगिनी माताओं से निवेदन कीजिये । सतयुग से आजतक महान सिद्धयोगीओ ने इस योगिनी शक्तिओ से ही अनेक सिद्धि प्राप्त की है ।