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भ्रम का निवारण जो कर दे वही सुन्दर कांड है ।

भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि,

 

तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि॥
 

 

भावार्थ:-  श्री रघुवीर का यश भव (जन्म-मरण) रूपी रोग की (अचूक) दवा है। जो पुरुष और स्त्री इसे सुनेंगे, त्रिशिरा के शत्रु श्री रामजी उनके सब मनोरथों को सिद्ध करेंगे॥

श्रीरामजी  माता सीताजी के वियोग के फलस्वरुप इस भ्रम मे आ गए थे कि माता जी उन्हे मिलेंगी कि नही बस इस भ्रम मे वह जी रहे थे वही दूसरी तरफ माता सीता जी भी अकेली श्रीराम के वियोग मे अशोक वाटिका मे बैठी आंसुओ से युक्त इस भ्रम मे थी कि क्या कोई खबर श्रीराम की मिलेगी या नही,उनसे मुलाकात होगी कि नही।

तभी पेड़ पर बैठे  वीर बजरंगी मुद्रिका नीचे गिरा दी और जब उसे देख कर माता ने शंका की तब हनुमान जी नीचे उतर कर सारी बातो से अवगत करायाऔर माता जी का भ्रम दूर किया  और बतलाया कि माते आप चिन्ता न करे प्रभुश्रीराम आएगे और दुष्ट रावण को कुल सहित मारकर आपको ले जाएगे | यहॉ सीता मईया का भ्रम दूर हूआ।

 

माता का भ्रम दूर करने के बाद जब वापस आते हैं किष्किंधा मे तो श्रीराम को सीता मईया के बारे मे सारी बात जाम्बंत जी द्वारा बतलाने के बाद श्रीराम का भी भ्रम दूर हो जाता है।

 

देवताओ को भी भ्रम था कि हनुमान जी अपने कार्य मे सफल होगे या नही तो सुरसा द्वारा परीक्षा के पश्चात उनका भी भ्रम दूर होता है।

 

रावण भी इस भ्रम मे था कि उसके इच्छा के बिना लंका मे कोई प्रवेश नही कर पाएगा ,उसके पुत्रो को कोई नही हरा पाएगा |पवन सुत लंका मे प्रवेश करके तथा अक्षय कुमार को मार कर रावण का भी भ्रम दूर किए।

 

त्रिजटा को भ्रम था कि उसका सपना सत्य होगा या नही तो अंजनी पुत्र ने लंका दहन कर यह भी दूर किया।

 

स्वंय केशरी नंदन को यह भ्रम था कि कैसे त्रिजटा के सपना लंका जलाने को पूर्ण करे तब रावण के आदेश वानर के  पूछ मे आग लगा दो  यह इनका भ्रम दूर किया।

 

 इसलिए जो भ्रम मिटा दे वही सुन्दर कांड है |

 

दु:ख के सागर को पार कर सुख के तट पर पहूचना ही सुन्दर कांड है!!!!!!

 

एक तरफ तो श्री सरकार माता जी के वियोग से अत्यंत दुखित थे। दूसरी तरफ माता भी अशोक वाटिका मे दूखित ही थी। बजरंग बली जी इस दुख को दूर करने के लिए ही समुद्र लांघ कर माता के पास जाते है और माता को श्रीरामजी सरकार के बारे मे सब जानकारी एवं प्रभु द्वारा दिया हूआ मुद्रिका को देकर मईया जानकी जी की दूखो का अंत किया एवं वहॉ से आकर श्री सरकार को सब कुछ बता कर एवं चूडामणि मईया के द्वारा दिया हुआ।

श्री सरकार को देकर रघुबीर जी का दुख दूर किया।

इसके बाद वानरी सेना सहित प्रभु जी समुद्र तट पर आते है और पूल निर्माण होने पर मईया को पाने तथा रावण के वध हेतू लंका मे प्रवेश करते हैं। जहॉ सीता मईया के मिलन का रास्ता मिलने से सरकार का दूख दूर हो रहा है वही मईया को सरकार की जानकारी मिलने से दूख दूर हुआ वही आर्य सभ्यता के संरक्षक मुनि गण एवं देवताओ का दूख रावण के वध के लिए भी इसी कांड मे रास्ता मिला।

इसलिए ही दुखो के सागर को पार कर सुख के तट पर पहूचना ही सुन्दर कांड है। असफलता को सफलता मे बदलना ही सुन्दर कांड है।

श्री राम कथा के सभी सप्त सोपानो मे यही एक मात्र सोपान है जिसमे हम पाते है कि सफलता ही मिली है कोई असफलता का जिक्र नही है।

जहॉ बाल कांड मे नारद जी विश्वमोहिनी को पाने मे असफल होते हैं, अयोध्याकांड मे राजा दशरथ जी श्री सरकार को राजा रुप मे नही देख पाते,भरत जी प्रभु को चित्रकुट से वापस लाने मे असफल होते है, अरण्य कांड मे जंयत श्री राम जी के अलावे कही शरण पाने मे असफल होता है, किष्किंधा कांड मे बालि सुग्रीव को हराने मे असफल होता है,लंका कांड मे मेघनाद का यज्ञ असफल होता है,वही उत्तर कांड मे शम्बूक प्रकरण भी एक तरह से असफलता का ही प्रतीक है।

 

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।

 

सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥
 

भावार्थ:-श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का देने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे॥

अत: यह सुन्दर कांड असफलता पर सफलता प्राप्त करना ही है।

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