यदि राहु सूर्य एक साथ आकर बैठ जाए तो सूर्य के प्रभाव को अशुभ बनाने लगता है, किंतु सूर्य जैसा बेहद मजबूत ग्रह फिर भी अपना संघर्ष नहीं छोड़ता है। कुछ इसी प्रकार के व्यवहार वाले होते हैं वे लोग जिनकी कुंडली में ये दो ग्रह एकसाथ होते हैं।ग्रहण योग बनाते है
किंतु इन दो ग्रहों की युति जातक को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी देती हैं। सूर्य और राहु का एक जगह पर होना ‘ग्रहण योग’ को जन्म देता है, जिसका सबसे पहला शिकार जातक की आंखें बनती हैं। इसके अलावा यह पिता के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।
सूर्य ग्रहो का राजा आत्मा का कारक हमारे आत्मा समान का कारक है सरकार सता का कारक हमारे अंहकार का कारक है।
सूर्य प्रकाश है तो राहु अंधकार है। सूर्य धर्म है तो राहु अधर्म है सूर्य देवता है तो राहु दानव है। ये दोनो विपरीत शक्तियां जब कुंडली मे साथ के युति करती है तो ज्यादातर अशुभ फल ही देती है ।
सूर्य राहु की युति को ग्रहण दोष कहा जाता है। आइए समझते सूर्य राहु की युति को कुंडली मे सबसे पहले आप को देखना होगा कि सूर्य कारक ग्रह की सरणी में है य्या मारक है। और राहु ,सूर्य दोनो ग्रह कितने अंश लिए हुए है।
उदारहण के तौर पर सूर्य अगर कुंडली के किसी भाव मे 12 अंश लिए बैठा है और राहु 17 अंश दोनो युति में है और 5 अंशो का दोनो के बीच फर्क है तो इस युति को बहुत ही प्रबल युति कहा जाता है ।
ठीक इसके विपरीत सूर्य अगर 5 अंश लिए हुए और राहु 27 अंश ओर दोनो के बीच 22 अंशो का फर्क है तो ये युति बहुत ही कमजोर मानी जायेगी इसका फल नही के बराबर हो सकता है।
साथ ही ये देखना भी जरूरी है कि सूर्य और राहु की युति कुंडली के कोनसे भाव मे हो रही के केन्द्र ,त्रिकोण ,य्या 6,8, 12 में हो रही है ओर कोनसी राशि मे हो रही है इसका भी अपना एक महत्व है।
मान ले मेष लग्न की कुंडली है और लगन में ही सूर्य और राहु की युति है और राहु अंशो में सूर्य से दब रहा है सूर्य बलवान है । उस राशि का स्वामी मंगल अगर कुंडली मे शुभ अवस्था मे है और शनि भी कुंडली के शत्रुराशिगत नही है तो यहाँ राहु अपनी शत्रु राशि मेष राशि का होकर भी सूर्य के कंट्रोल में होकर सूर्य से मिलने वाले शुभ फलों में बढ़ोतरी करेगा ।।
ओर ठीक इसके विपरित मान ले मेष लग्न की कुंडली है और सूर्य सप्तम भाव मे तुला राशि मे नीच होकर विराजित है और साथ राहु है और अंश बल में राहु से कम है दबा हुआ है तो यहाँ ये युति बहुत खराब परिणाम देगी सप्तम भाव के फल बिगाड़ देगी साथ ही सूर्य पंचम भाव का स्वामी होकर सप्तम नीच है तो पंचम के फल भी खराब मिलेंगे ।।
अधिकतर सूर्य राहु युति के अशुभ परिणाम ये देखे गए है। सूर्य व्यपार का कारक भी है । जिनकी कुंडली मे सूर्य कारक ग्रह होकर राहु से पीडित है तो ऐसे जातकों को व्यपार में बहुत सँघर्ष करना पड़ता है बहुत मेहनत के बाउजूद उन्नति प्रगति विश्वाश अनुरुप नही मिलती । नोकरी में स्थिरता नही मिलती सरकारी नोकरी में उच्च पद की प्राप्ति नही होती ।य्या सरकारी नोकरी प्रतियोगता परिणाम में बाधा आती है।
सूर्य तंदुरुस्ती का भी कारक है ऐसे में जातक की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर कर देती है ये युति हड्डियो में विटामिन डी की कमी होना आंखों की कमजोरी होना चश्मा लग जाना स्वस्स्थ सम्बधी समसिया जल्द घेर लेना सूर्य मान समान प्रतिश्ठा का कारक भी है तो उस पर भी ठेस पहुच ना ।
अगर सूर्य और राहु की युति अष्टम भाव मे है तो ओर सूर्य पीड़ति है तो ऐसे जातक को मान संम्मान पर ठेस पहुचती है बदनामी भी झेलनी पड़ती है अगर सरकारी शत्र में जॉब करते है तो रिश्वत का आरोप भी लग जाता है।। आप की कुंडली में अगर सूर्य राहु की युति है तो अपना लग्न चार्ट पोस्ट करे कितना प्रभावी है उस अनुसार उपाय बता दिए जाएंगे