दसमहाविद्या सायुज्य नवार्ण साधना जो गोपनीय है। इस साधना को सम्पन्न करने से प्रत्येक साधना मे शीघ्र सफलता एवं सिद्धियां प्राप्त होता है।
दस महाविद्या जिसकी उपासना से चतुर्मुख सृष्टि रचने में समर्थ होते हैं, विष्णु जिसके कृपा कटाक्ष से विश्व का पालन करने में समर्थ होते हैं, रुद्र जिसके बल से विश्व का संहार करने में समर्थ होते हैं, उसी सर्वेश्वरी जगन्माता महामाया के दस स्वरूपों का संक्षिप्त चरित्र प्रस्तुत है।
देवी के 10 रूपों – काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला- का वर्णन तोडल तंत्र में किया गया है। शक्ति के यह रूप संसार के सृजन का सार है। इन शक्तियों की उपासना मनोकामनाओं की पूर्ति। सिद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती है। देवताओं के मंत्रों को मंत्र तथा देवियों के मंत्रों को विद्या कहा जाता है। इन मंत्रों का सटीक उच्चारण अति आवश्यक है। ये दश महाविद्याएं भक्तों का भय निवारण करती हैं। जो साधक इन विद्याओं की उपासना करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सबकी प्राप्ति हो जाती है।
10. कमला : जिसके घर में दरिद्रता ने कब्जा कर लिया हो और घर में सुख-शांति न हो, आय का स्रोत न हो उनके लिए यह साधना सौभाग्य के द्वार खोलती है। कमला को लक्ष्मी और षोडशी भी कहा जाता है। वैसे तो शास्त्रों में हजारों प्रकार की साधनाएं दी गई हैं लेकिन उनमें से दस महत्वपूर्ण विद्याओं की साधनाओं को जीवन की पूर्णता के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है। जो व्यक्ति दश महाविद्याओं की साधना को पूर्णता के साथ संपन्न कर लेता है। वह निश्चय ही जीवन में ऊंचा उठता है परंतु ध्यान रहे विधिवत् उपासना के लिए गुरु दीक्षा नितांत आवश्यक है। निष्काम भाव से भक्ति करने के लिए दश शक्तियों के नाम का उच्चारण करके भी इनका अनुग्रह प्राप्त किया जा सकता है। शक्ति पीठों में शक्ति उपासना के अंतर्गत नवदुर्गा व दसमहाविद्या साधना करने से शीघ्र सिद्धि होती है।
साधक स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें। इस समय निम्न मंत्रों को बोलें-
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें।
शापोद्धार मंत्र का एक माला जाप करे-
।। ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा ।।
अब उत्कीलन मंत्र का एक माला जाप करे-
।। ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं मंत्र चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा ।।
ध्यान मंत्र:-
खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥
दसमहाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं दसगुणात्मिकायै चामुंडायै प्रसीद प्रसीद दुर्गादेव्यै नमः॥
जब ध्यान हो जाये तब दस महाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र का नित्य 11 माला जाप 21 दिन रात्रिकालीन समय मे उत्तर मुखी बैठकर करे,आसन वस्त्र लाल रंग के हो।फोटो मे दुर्गा सप्तशती मंत्र दे रहा हु उसका कॉपी बनवाकर यंत्र को स्थापित करे और मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से कर सकते हैं।इससे साधना के बाद नवार्ण मंत्र और दस महाविद्या मंत्रो मे पुर्ण सफलता प्राप्त होता है।
साथ मे काली तंत्र का एक विधान दे रहा हु जिसे आप इस साधना को करने के बाद करे तो महाकाली जी का आशिर्वाद विषेश रुप से प्राप्त होता है।
बाईस अक्षर का श्री दक्षिण काली मंत्र –
।। ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं स्वाहा ।।
विनियोग-
अस्य श्री दक्षिण मंत्रस्य भैरव ऋषी: |उस्णिक छंद : |
दक्षिण कलिका देवता |क्रीं बीजं |ह्रुं शक्ति : |क्रीं कीलकम |ममाभिस्ट सिध्यथर्ये जपे विनियोग : |
ऋषयादी न्यास –
ॐ भैरव ऋषये नमः शिरसी ||१ ||
उष्णिक छंद्से नमः मुखे ||२||
दक्षिण कलिका देवताये नमः ह्रदि ||३||
क्रीं बीजाय नमः गृहे ||४||
ह्रूं शक्तये नमः पादयो ||५||
क्रीं किलकाय नमः नाभौ ||६||
विनियोगाय नमः सर्वांगे ||७||
करन्यास –
ॐ क्राम आन्गुष्ठाभ्याम नमः ||१||
ॐ क्रीं तर्जनिभ्याम नमः ||२||
ॐ क्रूं मध्यमाभ्याम नमः ||३||
ॐ क्रें अनामिकभ्याम नमः ||४||
ॐ क्रों कनिष्ठकाभ्याम नमः ||५||
ॐ क्र: करतल कर्पुश्थाभ्याम नमः ||६||
ह्रद्यादी षडंग न्यास –
ॐ क्राम ह्रदयाय नमः ||१||
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा ||२||
ॐ क्रुम शिखाये वष्ट ||३||
ॐ क्रेह कवचाय ह्रुं ||४||
ॐ क्रों नेत्रत्रयाय वौष्ट ||५||
ॐ क्र: अस्त्राय फट ||६||
वर्णमाला न्यास –
ॐ अं अँ ईं ऊं ऊं त्र लृम लृम नामोह्रदी ||१||
ॐ अं अई ओ औ अं अ: कं खं गे धं दक्षभुजे ||२||
ॐ दं चं छं जं झं गं थं ठं ड ढ नमो वामभूजे ||३||
ॐ ण तं थं दं धं नं पं फं लं भं नमो दक्ष पादे ||४||
ॐ मं यं रं लं वं शं षम सं हं क्षम नमो वामपादे ||५||
इस न्यास के बाद निचे दिए गए न्यास करे-
ॐ क्रीं नमः भ्रमरन्ध्रे ||१||
ॐ क्रीं नमः भ्रूमध्ये ||२||
ॐ क्रीं नमः ललाटे ||३||
ॐ ह्रीं नमः नाभो ||४||
ॐ ह्रीं नमः गृह्ये ||५||
ॐ ह्रुं नमः वक्ते ||६||
ॐ ह्रुं नमः गुवर्गे ||७||
ध्यान मंत्र –
।। ॐ स्धशीचछन्नसिर: कृपणंभयं हस्तेवरम बिभ्रती धोरास्याम सिर्शाम स्त्रजा सुरुचिरामुन्मुक्त केशावलिम || स्रुकास्रुक प्रव्हाम स्मशान निल्याम श्रुतयो: रावालंकृति श्रुतयो: सवालंकृतिम श्यामांगी कृतमेख्लाम शवकरेदेवीभजे कालिकाम ।।
इस तरह से ध्यान करके मंत्र सिद्धि के लिए जाप करे।
पराम्बा आप सभी धर्मप्रेमी जनो पर कृपा करें यही प्रार्थना