इस दिन स्नान, दान, जप, तप का प्रभाव ज्यादा होता है । उत्तरायण के एक दिन पूर्व रात को भोजन थोडा कम लेना ।
दूसरी बात, उत्तरायण के दिन पंचगव्य का पान पापनाशक एवं विशेष पुण्यदायी माना गया है । त्वचा से लेकर अस्थि तक की बीमारियों की जड़ें पंचगव्य उखाड़ के फेंक देता है । पंचगव्य आदि न बना सको तो कम-से-कम गाय का गोबर, गोझारण, थोड़े तिल, थोड़ी हल्दी और आँवले का चूर्ण इनका उबटन बनाकर उसे लगा के स्नान करो अथवा सप्तधान्य उबटन से स्नान करो (पिसे हुए गेहूँ, चावल, जौ, टिल, चना, मूँग और उड़द से बना मिश्रण) ।
इस पर्व पर जो प्रात: स्नान नहीं करते हैं वे सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहते हैं ।
मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गौदान करने का फल शास्त्र में लिखा है और इस दिन सूर्यनारायण का मानसिक रूप से ध्यान करके मन-ही-मन उनसे आयु-आरोग्य के लिए की गयी प्रार्थना विशेष प्रभावशाली होती है ।
इस दिन किये गए सत्कर्म विशेष फलदायी होते हैं । इस दिन भगवान् शिव को तिल, चावल अर्पण करने अथवा तिल, चावल मिश्रित जल से अर्घ्य देने का भी विधान है । उत्तरायण के दिन रात्रि का भोजन न करें तो अच्छा है लेकिन जिनको सन्तान है उनको उपवास करना मना किया गया है ।
इस दिन जो ६ प्रकार से तिलों का उपयोग करता है वह इस लोक और परलोक में वांछित फल को पाता है :
१] पानी में तिल डाल के स्नान करना ।
२] तिलों का उबटन लगाना ।
३] तिल डालकर पितरों का तर्पण करना, जल देना ।
४] अग्नि में तिल डालकर यज्ञादि करना ।
५] तिलों का दान करना ।
६] तिल खाना ।
तिलों की महिमा तो है लेकिन तिल की महिमा सुनकर तिल अति भी न खायें और रात्रि को तिल और तिलमिश्रित वस्तु खाना वर्जित है ।
उत्तरायण पर्व के दिन सूर्य-उपासना करें
ॐ आदित्याय विदमहे भास्कराय धीमहि । तन्नो भानु: प्रचोदयात् ।
इस सुर्यगायत्री के द्वारा सूर्यनारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभकारी माना गया है अथवा तो ॐ सूर्याय नम: । ॐ रवये नम: । … करके भी अर्घ्य दे सकते है ।
आदित्यदेव की उपासना करते समय अगर सूर्यगायत्री का जप करके ताँबे के लोटे से जल चढाते है और चढ़ा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहा की मिटटी का तिलक लगाते हैं तथा लोटे में ६ घूँट बचाकर रखा हुआ जल महामृत्युंजय मंत्र का जप करके पीते हैं तो आरोग्य की खूब रक्षा होती है । आचमन लेने से पहले उच्चारण करना होता है –
अकालमृत्यु को हरनेवाले सूर्यनारायण के चरणों का जल मैं अपने जठर में धारण करता हूँ । जठर भीतर के सभी रोगों को और सूर्य की कृपा बाहर के शत्रुओं, विघ्नों, अकाल-मृत्यु आदि को हरे ।
मकर संक्रांति, हिन्दुओं के प्रमुख पर्वों में से एक है। सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रांति, विभिन्न रूपों में मनाई जाती है। विभिन्न प्रांतों में इस त्यौहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं, उतने किसी अन्य पर्व में नहीं। हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है। जब सूर्य का प्रवेश, धनु राशि से मकर राशि में होता है तो इस राशि परिवर्तन को मकर संक्रांति कहा जाता है। इस दिन, पवित्र नदियों में स्नान करने के साथ ही दान की भी परंपरा है। वैसे, हर साल यह त्यौहार 14 जनवरी के दिन मनाया जाता है लेकिन ग्रहों के बदलाव या उदया तिथि के अनुसार, अक्सर 14 और 15 जनवरी को लेकर लोगों के बीच असमंजस रहती है। आइए जानते हैं कि 2024 में मकर संक्रांति का त्यौहार कब मनाया जाएगा?
मकर संक्रांति के दिन पुण्यकाल और महापुण्यकाल में स्नान-दान बेहद फलदायी माना जाता है इस बार पुण्य काल मुहूर्त 15 जनवरी 2024 को सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन शाम 5 बजकर 40 मिनट पर होगा। वहीं महापुण्य काल दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से शाम 6 बजे तक रहेगा।
सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी 2024 की रात 2 बजकर 44 मिनट पर होगा। इसलिए उदयातिथि के अनुसार 15 जनवरी 2024 को मकर संक्राति मनाई जाएगी। सूर्य का उत्तरायण प्रवेश अत्यन्त शुभ माना गया है। क्योंकि इस दिन से पूरे मलमास से रूके हुए विवाह, गृह प्रवेशष यज्ञोपवित संस्कार जैसे मांगलिक व शुभ कार्य पुन: शुरू हो जाते हैं।
-इस दिन, सुबह जल्दी उठकर नदी में स्नान करना आवश्यक होता है।
-एक साफ चौकी लेकर उस पर गंगाजल छिड़कें और लाल वस्त्र बिछाएं।
-चौकी पर लाल चंदन से अष्टदल कमल बनाएं।
-सूर्य देव का चित्र, चौकी पर स्थापित करें।
-सूर्य देव के मंत्रों का जाप करें।
-सूर्य देव को तिल और गुड़ से बने हुए लड्डुओं का भोग लगाएं।
हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। मान्यतानुसार, इस दिन, यदि स्नान के बाद दान किया जाए तो उसका कई गुना फल मिलता है। यह दिन, बेहद ही शुभ माना जाता है क्योंकि इस दिन, सूर्य देव, अपने पुत्र शनि से मिलन करते हैं और इस दिन शुक्र ग्रह का भी उदय होता है। इस दिन स्नान करते समय, काले तिल में गंगाजल मिलाकर स्नान करना शुभ माना जाता है और साथ ही कुंडली में मौजूद ग्रह दोष भी समाप्त होते हैं।
मकर संक्रांति पर मन में अच्छे विचार रखने चाहिए और दान पुण्य के कार्यों में रुचि लेनी चाहिए। मकर संक्रांति पर बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए और पिता का आर्शीवाद लेना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। इस दिन, कहीं-कहीं पतंग उड़ाने की भी परंपरा है।
हमारे पवित्र ग्रन्थ, श्रीमद्भगवद्गीता तथा पूर्ण परमात्मा का संविधान, यह कहते हैं कि यदि हम पूर्ण संत से नाम दीक्षा लेकर पूर्ण परमात्मा की भक्ति करें तो वे इस धरती को स्वर्ग बना देंगे और आपकी इच्छाओं को पूरा करेंगे।