गोवा की पृष्ठभूमि पर जयवंत दलवी के महानंदा उपन्यास पर आधारित फिल्म के गाने का काम प्रभु कुंज में चल रहा था। शांताबाई किसी स्थिति पर गाना नहीं लिखना चाहती थीं। उसी वक्त माई ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें आगे बढ़ाया।
गॉडफादर के सामने और कहा, “ओह शांता ऐसा कैसे हो सकता है कि गाना सुझाया न जाए? मंगेश तुम्हारे सामने खड़ा होकर यह देख रहा है।”
और कैसा आश्चर्य? शांताबाई के शब्द, हृदयनाथ का संगीत और आशाताई की चंद्रमा की तरह गहरी आवाज यमन कल्याण राग में एक अद्वितीय गीत के त्रिवेणी संगम से निकली।