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महाकाली भवान्यष्टकम्‌ स्त्रोत

।। कारागार और फांसी की सजा से भी बचा लेता है मां काली का यह स्तोत्र अद्भुत स्त्रोत ।।

हमारे प्राचीन शास्त्रों में ऐसी बहुत सी बातें बताई गई हैं जिनसे हम अनजान है। भवान्यष्टकम् भी ऐसी ही एक रचना है। इसका निर्माण आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार इसके जप से मां भगवती आद्यशक्ति प्रसन्न होती हैं और साधक की कामनाएं पूर्ण करती हैं।

 

वैदिक परंपरा में भी जब कोई ऐसा संकट आ जाए जिसका समाधान न हो तो इसका प्रयोग किया जाता है। कोई व्यक्ति कारागार में है या मृत्युदंड की सजा पा चुका है तो वह भी इसके प्रयोग से मुक्त हो सकता है।

॥ भवान्यष्टकम्‌ स्त्रोत ॥

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।

न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥1॥

 

भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।

कुसंसार-पाश-प्रबद्धः सदाऽहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥2॥

 

न जानामि दानं न च ध्यान-योगं न जानामि तंत्र न च स्तोत्र-मन्त्रम्‌।

न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥3॥

 

न जानामि पुण्यं न जानानि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्‌।

न जानामि भक्ति व्रतं वाऽपि मात-र्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥4॥

 

कुकर्मी कुसंगी कुबुद्धि कुदासः कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।

कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबंधः सदाऽह गतिस्त्व गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥5॥

 

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्‌।

न जानामि चाऽन्यत्‌ सदाऽहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥6॥

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चाऽनले पर्वते शत्रुमध्ये।

अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥7॥

 

अनाथो दरिद्रो जरा-रोगयुक्तो महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।

विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाऽहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥8॥

 

॥ इति श्रीमच्छशंकराचार्यकृतं भवान्यष्टकं संपूर्णम्‌ ॥

 

         ज्योतिषविद वरुण शास्त्री

   वैदिक ज्योतिष व कुंडली विशेषज्ञ

 

कुंडली विश्लेषण, हस्त द्वारा निर्मित कुंडली, तंत्र मंत्र यंत्र, रत्न ज्योतिष , भूमि भवन बाधा, पितृ व प्रेत बाधा , तंत्र बाधा आदि सभी की जानकारी कुंडली विश्लेषण एव  जांच द्वारा बताई जाती हैं ।।

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