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रावण-पुत्र 'अक्षय कुमार 'का वध नहीं चाहते थे हनुमान, क्यों....

महर्षि वाल्मीकि द्वारा सदियों पहले रचे गए महान हिन्दू ग्रंथ ‘रामायण’ में उन्होंने ऐसे कई प्रसंग वर्णित किए जो रोचक एवं रहस्यमयी भी हैं।। भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम का जन्म, माता सीता का स्वयंवर, प्रभु राम के साथ माता सीता का अयोध्या आना, उनका वनवास तथा अंत में लंकापति रावण को पराजित कर फिर वापस अयोध्या नगरी लौटना।।

 

यह सभी प्रसंग प्रसिद्ध एवं रोचक हैं, जिन्हें हम वर्षों से सुनते आ रहे हैं।। इस महान ग्रंथ ने हमें महान देवी-देवताओं का स्मरण कराया है।। रामायण ग्रंथ के प्रत्येक प्रसंग को महर्षि वाल्मीकि ने घटनानुसार विस्तारित किया है।।परन्तु कुछ प्रसंग ऐसे हैं जिन्हें वे ही लोग जानते हैं जिन्होंने पूर्ण रूप से इस ग्रंथ का एक-एक पाठ पढ़ा हो।।

 

श्रीराम का जीवन, माता सीता के साथ उनका स्नेह, दानव राजा रावण का अंत यह सभी प्रसंग हमने बखूबी गंभीरता से पढ़े होंगे लेकिन एक प्रसंग ऐसा है जिसे जान आप भी दंग रह जाएंगे।। यह है रामायण में वर्णित लंकापति रावण के सबसे छोटे पुत्र ‘अक्षय कुमार का वध’।।

अक्षय कुमार लंका नरेश रावण का सबसे छोटा सन्तान था, परन्तु इसके बावजूद उसमें कई देवताओं के समान शक्तियां थी।। ऐसा माना जाता है कि उसकी वीरता देवों के समान थी।। रावण की सेना में सबसे बलवान योद्धाओं में से एक था अक्षय कुमार।।

 

वन में रावण द्वारा माता सीता का हरण करने के पश्चात जब श्रीराम को यह मालूम हुआ कि उनकी पत्नी लंका नरेश रावण की कैद में है तो उन्होंने मां सीता को वापस पाने का निर्णय लिया।।लेकिन वे किसी भी निर्णय पर आने से पहले चाहते थे कि उनकी ओर से कोई महारथी उनका संदेश लेकर रावण के पास जाए, लेकिन कौन जाता?

 

उनकी आंखों के सामने एक विशाल समुद्र था जिसे बिना किसी माध्यम के पार कर सकना असंभव था।। ऐसे में कौन था जिसके पास समुद्र को लांघकर दूसरी ओर लंका जाने की क्षमता थी।। वे थे पवन पुत्र हनुमान।।

 

पवन देव के आशीर्वाद से वे आकाश में उड़ सकने की शक्ति रखते थे।। इसके साथ ही हनुमानजी अपने शारीरिक आकार को एक पहाड़ से भी ऊंचा कर सकने की दैवीय शक्तियों से भरपूर थे।। अंत में श्रीराम का आशीर्वाद पाकर हनुमानजी निकल पड़े माता सीता की खोज में।।

 

सुनहरी लंका में रावण के महल के बीचो-बीच थी अशोक वाटिका।। सुंदर बाग एवं बड़े-बड़े रसीले फलों के वृक्ष से भरा पड़ा था यह बाग।। वहीं बाग की एक दिशा में राक्षसियों के बीच बैठी थीं माता सीता।। उनकी सुंदरता तथा चेहरे पर एक तेज को देख हनुमानजी समझ गए कि ये प्रभु राम की अर्धांगिनी सीता ही हैं।।

 

वे उनके पास गए तथा माता सीता को श्रीराम का संदेश दिया तथा यह आश्वासन दिलाया कि वे लोग जल्द ही उन्हें रावण की कैद से छुड़ा ले जाएंगे।। अब हनुमानजी श्रीराम द्वारा सौंपा हुआ कार्य तो कर चुके थे लेकिन रावण तक पहुंचने का एक माध्यम चाहते थे।। फिर क्या था, उनके दिमाग ने एक जुगत लगाई।।

 

वे बाग के वृक्षों पर चढ़ने लगे, फल खाने लगे तथा बाग की खूबसूरती को नष्ट करने लगे।। यह देख कई सैनिक उन्हें पकड़ने तो आए परन्तु हर किसी का प्रयत्न बेकार गया।। कुछ सैनिकों ने तो राजा रावण को जाकर संदेश भी दिया कि बाग में एक बड़ा वानर घुस गया है, और बागीचे की चीज़ों को नष्ट कर रहा है।।

 

तब रावण ने अपने सैनिकों को उसे पकड़ लाने का आदेश दिया, पर हनुमानजी किसी सैनिक की पकड़ में कहां आने वाले थे।। राक्षसों को सबक सिखाने के लिए हनुमानजी ने सेना में से कुछ को मार डाला और कुछ को मसल डाला और कुछ को तो पकड़-पकड़कर धूल में मिला दिया।।

 

जो कुछ घायल अवस्था में किसी तरह से वहां से निकलने में सफल हुए वे रावण के पास अपने जीवन की भीख मांगने पहुंचे और उसे बताया कि यह वानर बहुत बलवान है।। कोई भी राक्षस उसका सामना नहीं कर सकता।। क्रोध में आकर रावण ने इस बार अपने सबसे छोटे पुत्र अक्षय कुमार को हनुमानजी को सबक सिखाने के लिए भेजा।।आज्ञानुसार अक्षय कुमार अपने आठ घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर हनुमानजी से लड़ने चल पड़ा।।

 

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण के इस प्रसंग को बेहद गंभीरता एवं स्पष्ट तस्वीर जाहिर करते हुए वर्णित किया गया है।। वे बताते हैं कि रावण पुत्र अक्षय कुमार अपने पिता की आज्ञानुसार हनुमानजी का वध करने के लिए उनके सामने जैसे ही आया, तब हनुमानजी ने एक बड़ा सा वृक्ष उसके सामने फेंकते हुए उसे युद्ध करने के लिए ललकारा।।

हनुमानजी को देखकर गुस्से से अक्षय कुमार की आंखें लाल हो गईं।। युद्ध आरंभ करते हुए उसने हनुमानजी पर कई बाण छोड़े, लेकिन उनका हनुमानजी पर कोई असर नहीं हुआ।। परन्तु वह फिर भी बाण छोड़ता चला गया।। अपने शत्रु के इस प्रयास को देखते हुए हनुमानजी उसकी वीरता देखकर प्रसन्न थे।।

 

खुद को शत्रु के बाणों से बचाते हुए हनुमानजी मन ही मन खुद से एक सवाल पूछ रहे थे।। वे सोच रहे थे कि यह शत्रु बेहद शक्तिशाली है, यह एक वीर योद्धा है और ऐसे योद्धा को मारना क्या सच में सही होगा।।

 

किन्तु अंत में उन्होंने यह फैसला किया कि धर्म के मार्ग पर कुछ भी सही-गलत नहीं होता, जो धर्म है वही सही मार्ग है।। अभी हनुमानजी अपना विचार दृढ़ कर ही रहे थे कि अक्षय कुमार का बल बढ़ता जा रहा था।।

 

अतः हनुमानजी ने अक्षय कुमार को मारने का निर्णय कर लिया।। वह वायु की तेज गति से उसके रथ पर कूदे और उसे पूरी तरह नष्ट कर दिया।। इसके बाद दोनों के बीच द्वंद युद्ध हुआ और अंततः अक्षय कुमार मृत्यु को प्राप्त हो गया।।

 

अक्षय कुमार की मृत्यु का संदेश जैसे ही रावण तक पहुंचा वह हताश हो गया।।यह उसके लिए एक बड़ा अपमान भी था, क्योंकि कोई वानर उसी के क्षेत्र में दाखिल होकर उसी की संपत्ति को हानि पहुंचा रहा था।।लेकिन रावण ने फिर भी हार ना मानने का फैसला किया।।

 

उसने तुरन्त अपने पुत्र मेघनाद को दरबार में बुलाया और उससे उस वानर को पकड़कर दरबार में लाने का हुक्म दिया।। रावण ने खासतौर से मेघनाद से कहा कि तुम उस वानर को मारोगे नहीं, बल्कि बांधकर मेरे सामने लाओगे।।

 

पिता की आज्ञा का पालन करते हुए शीघ्र ही मेघनाद रथ पर बैठा और हनुमानजी से युद्ध करने चल पड़ा।।उसका रथ चार सिंह खींच रहे थे।। हनुमानजी ने जैसे ही मेघनाद को अपनी ओर आता देखा तो वे बागीचे के दूसरी ओर भागने लगे।। उन्होंने एक विशाल वृक्ष उखाड़ा और जोर से मेघनाद की ओर फेंका।। ऐसा करने से मेघनाद का रथ टूट गया और वह नीचे आ गिरा।। मेघनाद के साथ आए अन्य राक्षसों को हनुमानजी ने एक-एक करके मसलना शुरू कर दिया।।

 

राक्षसों को खत्म कर अब हनुमानजी मेघनाद की ओर बढ़े।।दोनों में घमासान युद्ध हुआ।।इस बीच मेघनाद ने अपनी माया शक्ति का इस्तेमाल भी करना चाहा लेकिन इसका हनुमानजी पर कोई असर नहीं हो रहा था।। अंत में उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तब हनुमानजी ने मन में विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूं तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी।।

 

उसने हनुमानजी को ब्रह्मबाण मारा, जिसके लगते ही वे वृक्ष से नीचे गिर पड़े।। जब उसने देखा कि हनुमानजी मूर्छित हो गए हैं, तब वह उनको नागपाश से बांधकर रावण के सामने ले गया।।

 

ब्रह्माजी के एक वरदान के अनुसार एक नागपाश हनुमानजी को एक मुहूर्त के लिए ही बंधक बना सकता था, इसलिए वह घबराए नहीं।। दूसरी ओर मेघनाद को लगा कि वह हनुमानजी को बंदी बनाने में सफल हुआ और बेहद प्रसन्न हो गया।।

 

किन्तु हनुमानजी के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था।। वे लंका तो गए थे किन्तु लंका का दहन करने के लिए और इससे अच्छा अवसर उन्हें शायद ही प्राप्त होता।। अंत में भारी संख्या में सैनिकों की कड़ी सुरक्षा होते हुए भी हनुमानजी लंका दहन कर वहां से वापस लौट आए……🙏🙏

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