
भारत त्योहारों की भूमि है। यहाँ हर दिन, हर मास और हर ऋतु किसी न किसी पर्व का संदेश लेकर आती है। लेकिन कुछ पर्व केवल पर्व ही नहीं होते, वे संस्कृति, आस्था और अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति का मेल होते हैं। ऐसा ही एक महापर्व है देव दीवाली, जिसे काशी में मनाया जाता है और जिसे “देवताओं की दिवाली” कहा जाता है। यह त्यौहार कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, ठीक 15 दिन बाद जब सम्पूर्ण भारत दीपावली मना चुका होता है। ऐसा माना जाता है कि दिवाली मनुष्य मनाते हैं, और देव दीवाली देवताओं की दिव्य हर्षोन्माद की अभिव्यक्ति है।
देव दीवाली के पीछे एक गहन पौराणिक कथा है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का संहार किया था। त्रिपुरासुर अपनी शक्ति और अहंकार के कारण देवताओं और ऋषियों को अत्यंत कष्ट देने लगा था। देवताओं ने बार-बार शिव से प्रार्थना की और अंततः भगवान शिव ने “त्रिपुरारी” रूप धारण कर उसका वध किया। इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने आनन्दपूर्वक दीप जलाए और गंगा तट को प्रकाश से भर दिया। उसी दिव्य उत्सव की स्मृति आज भी गंगा घाटों पर असंख्य दीप जलाकर मनाई जाती है।
देव दीवाली को भगवान शिव की विजय का पर्व, प्रकाश और धर्म की अधर्म पर जीत का प्रतीक माना जाता है। यह दिवस देवताओं द्वारा पृथ्वी पर आकर काशी में दीप जलाने की कथा से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा की रात गंगा के हर अणु में देवों का वास होता है।
विश्वप्रसिद्ध काशी (वाराणसी) में देव दीवाली का उत्सव किसी स्वप्निल संसार से कम नहीं दिखाई देता। पूरा शहर दीपों से सज जाता है, मानो देवताओं के स्वागत में काशी को विशेष रूप से बनाया गया हो।
मणिकर्णिका से दशाश्वमेध, अस्सी घाट से राजघाट तक प्रत्येक घाट पर हजारों-लाखों दीये जगमगाते हैं। शाम होते-होते गंगा किनारे ऐसा दृश्य बनता है जैसे धरती पर आकाश उतर आया हो। नावों पर बैठकर लोग दूर से इस दिव्य प्रकाश को देखते हैं, जो मन को असीम शांति और श्रद्धा से भर देता है।
दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा महाआरती देव दीवाली का मुख्य आकर्षण होती है। वेद-मंत्रों की ध्वनि, शंख-नाद, घंटियों की गूँज और दीपों की लौ का दृश्य मन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है। आरती के समय गंगा की लहरों पर पड़ता दीपों का प्रतिबिंब स्वर्गीय आनंद का अनुभव देता है।
देव दीवाली के दिन काशी में विभिन्न संस्कृतियों का अनोखा संगम देखने को मिलता है। नृत्य-संगीत, लोकगीत, धार्मिक शोभायात्राएँ, प्रसाद वितरण और अखंड कीर्तन पूरे शहर में वातावरण को पवित्र बना देते हैं। कई जगहों पर कुशल कलाकारों द्वारा दीप सज्जा प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का दिन स्नान, ध्यान और दान के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान से पापों का नाश होता है और शुभ फल की प्राप्ति होती है।
देव दीवाली के दिन किए जाने वाले दान का विशेष महत्व है—
दीप दान
अन्न दान
वस्त्र दान
गौ दान
तुलसी एवं आंवला पूजन
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन किया गया एक दीप दान भी अनंत गुणा फल देता है।
देव दीवाली केवल एक दृश्यात्मक उत्सव नहीं, बल्कि ऊर्जा और आध्यात्मिक उत्थान का पर्व है। दीपक का प्रकाश अंधकार यानी अज्ञान का symbol है। जब लाखों दीप एक साथ जलते हैं तो वह केवल काशी ही नहीं, मनुष्य के अंतर्मन को भी प्रकाशमान कर देते हैं। इस रात ध्यान, जप और साधना करने से विशेष फल मिलता है।
इस दिन सभी देवता काशी स्थित गंगा में स्नान करने आते हैं।
गंगा का हर कण दिव्य हो जाता है।
मन में कोई भी शुभ कामना की जाए, वह शीघ्र पूर्ण होती है।
शिव, विष्णु और देवगणों का संयुक्त आशीर्वाद मिलता है।
देव दीवाली का एक बड़ा संदेश सामाजिक समरसता भी है। लाखों लोग विभिन्न राज्यों से एकत्र होकर दीप जलाते हैं। किसी जाति, वर्ग या भेदभाव का भाव नहीं होता—सभी एक ही उद्देश्य से आते हैं:
प्रकाश फैलाना।
यह पर्व बताता है कि यदि हम सभी अपने-अपने जीवन में एक छोटा-सा दीप जलाएं, तो मिलकर बड़ी-से-बड़ी अंधकारमय परिस्थिति को भी खत्म कर सकते हैं।
देव दीवाली को अब केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के पर्यटक भी देखने आते हैं। विदेशों की बड़ी-बड़ी मीडिया एजेंसियाँ इस दिन के अदभुत दृश्यों को कवर करती हैं। काशी की यह छवि न केवल धार्मिक महत्व बढ़ाती है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को विश्व में स्थापित करती है।
पिछले कुछ वर्षों में काशी में पर्यावरण की दृष्टि से भी जागरूकता बढ़ी है। लोग मिट्टी के दीपक, प्राकृतिक घी और तेलों का उपयोग अधिक कर रहे हैं। प्लास्टिक और केमिकल-आधारित रोशनियों का उपयोग कम हो रहा है। यह पहल पर्यावरण संरक्षण के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
देव दीवाली केवल देवताओं का उत्सव नहीं, बल्कि जीवन का संदेश है—
अहंकार का नाश
असत्य पर सत्य की विजय
अंधकार में प्रकाश का उदय
आत्मा की जागृति
जैसे भगवान शिव ने त्रिपुरासुर जैसे अहंकारी राक्षस का संहार किया, वैसे ही हमें अपने भीतर के राग, द्वेष, घृणा और भय जैसे आंतरिक असुरों को समाप्त करना चाहिए। यही देव दीवाली का सच्चा अर्थ है—
अंतर्मन में प्रकाश फैलाना।
देव दीवाली वह पर्व है जब काशी सचमुच स्वर्ग का रूप ले लेती है। गंगा के किनारे दीपों का महासागर, महाआरती की दिव्यता, हजारों लोगों की आस्था और हजारों वर्षों पुरानी परंपरा—ये सब मिलकर इस उत्सव को अद्वितीय बनाते हैं। यह केवल देखने का त्योहार नहीं, बल्कि महसूस करने का अनुभव है।
देव दीवाली हमें सिखाती है कि यदि जीवन में प्रकाश चाहिए, तो पहले स्वयं एक दीप बनना पड़ेगा।