Sshree Astro Vastu

रुक्मिणी सन्देश

हिंदू धर्मग्रंथों में देवी रुक्मिणी का नाम अत्यन्त श्रद्धा-भक्ति के साथ लिया जाता है। वे श्रीकृष्ण की प्रथम पत्नी और माता लक्ष्मी के अवतार मानी जाती हैं। उनके जीवन-प्रसंगों में विशेष रूप से यह “मंगल पत्र” चर्चा में आता है, जो उन्होंने क्र ष्ण को लिखे थे। आज इस लेख में हम उस पत्र, उसके भाव-सार, प्रसंग और आज के महत्व पर बात करेंगे।

जीवन-प्रसंग

रुक्मिणी विदर्भ (वर्तमान महाराष्ट्र-उत्तरी भाग) के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। बाल्यकाल से ही उन्हें श्री कृष्ण की महिमा सुनने का अवसर मिलता रहा, उनके सौंदर्य, गुण, वीरता आदि अनेक प्रकार से प्रसारित होते रहे।
उसी बीच उनका विवाह उनके भाई रुक्मी द्वारा पूर्वनिर्धारित रूप से शिशुपाल के साथ तय किया गया, जो रुक्मिणी के विचार-स्वातन्त्र्य के विरुद्ध था। इस विरोध और अपने हृदय की व्यथा के कारण रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को एक मंगल पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी इच्छा स्पष्ट की।
यह पत्र संस्कृत में “रुक्मिणी मङ्गलम पत्रम्” के नाम से जाना जाता है।

मङ्गलम पत्र् – भाव एवं महत्व

“मङ्गलम पत्रम्” में रुक्मिणी ने श्री कृष्ण को सम्बोधित करते हुए अपने हृदय-भाव, उनकी महानता और उनसे विवाह की इच्छा प्रकट की है। उदाहरणस्वरूप पहला श्लोक इस प्रकार है:

“श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर श्रृण्वतां ते … त्वय्यच्युताविशति चित्तमपत्रपं मे”
यह श्लोक उनके द्वारा श्रीकृष्ण के गुण-वैभव-सौंदर्य को सुनने के बाद मन में उठे प्रेम-भाव का स्पष्ट चित्रण करता है। फिर वे आगे कहती हैं कि “मैंने अपना मन, अपना आत्म-समर्पण कर दिया है, आप मेरे पति बनें” — यथार्थ में उन्होंने स्वयं अपनी इच्छा प्रकट की।
यह पत्र केवल प्रेम-प्रस्ताव नहीं, बल्कि श्रद्धा-भक्ति एवं निर्णय का सूचक है। रुक्मिणी ने स्वयं अपनी स्थिति स्पष्ट की — सिर्फ पति रूप में श्री कृष्ण को स्वीकार करती हूँ, अन्य किसी को नहीं।

कथा-वृत्तांत

इस पत्र के बाद श्री कृष्ण ने विदर्भ की नगरी कुंडिनपुर पहुँचे, वहाँ से युद्ध के उपरांत रुक्मिणी का हरण किया और द्वारका ले जाकर विधिवत रूप से विवाह सम्पन्न किया गया। इस प्रकार यह कथा न केवल प्रेम-विवाह की है, बल्कि धर्म, भाग्य, आस्था एवं निर्णय का मिलन है।
इसके बाद रुक्मिणी अष्टमी, रुक्मिणी विवाह आदि पर्वों में यह प्रसंग श्रद्धा-भाव से सुनाया जाता है।

आध्यात्मिक संदेश एवं प्रेरणा

रुक्मिणी की इस कथा से हमें अनेक महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:

  1. सुनने का महत्व (श्रवण): रुक्मिणी ने पहले श्री कृष्ण की महिमा सुनी, समझी और फिर निर्णय किया। जैसा कि एक प्रवचन में बताया गया है, “श्रवण ही देखने का एक रूप है।”
  2. स्वतंत्र इच्छा एवं निर्णय: विवाह के विषय में पारम्परिक अपेक्षाओं के बावजूद, रुक्मिणी ने अपनी स्वीकृति-चुनी निर्णय लिया।
  3. समर्पण और भक्ति: पत्र में उन्होंने अपना आत्म-समर्पण व्यक्त किया — स्वयं को श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित किया। यह भक्ति-भाव का उदाहरण है।
  4. धार्मिक-सामाजिक संदेश: विवाह, प्रस्ताव, प्रेम आदि को केवल सामाजिक आयोजन नहीं, बल्कि व्यक्ति-हृदय-विचार से जुड़ा प्रक्रिया माना गया है।

आज का प्रासंगिक अर्थ

वर्तमान में जब सामाजिक, पारिवारिक, व्यक्तिगत चुनौतियाँ बहुत हैं — तब रुक्मिणी की कथा हमें याद दिलाती है कि:

  • अपने विचार, अपनी इच्छा के प्रति जागरूक रहना महत्वपूर्ण है।
  • प्रेम-विवाह केवल बाहरी व्यवस्था नहीं, बल्कि अन्तर-मन का निर्णय है।
  • भक्ति-समर्पण, यानी जिस विषय में विश्वास हो, उसे पूरी निष्ठा से अपनाना उपयुक्त है।
  • हमारी आस्था-कथा तब भी अर्थपूर्ण हो सकती है जब वह हमारी जीवन-दृष्टि को प्रभावित करे।

रुक्मिणी का मंगल पत्र सिर्फ एक प्रेम-पत्र नहीं था — वह निर्णय, भक्ति, स्वतंत्रता, और श्रद्धा का संगम था। उसकी प्रेरणा आज भी उतनी ही सजीव है, जितनी पुरानी वह घटना है। हमें चाहिए कि हम इस कथा से व्यक्ति-मानव होने के नाते, सामाजिक-मानव होने के नाते, और ईश्वर-भक्त होने के नाते कुछ सीखें।

आप सभी लोगों से निवेदन है कि हमारी पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें जिससे अधिक से अधिक लोगों को पोस्ट पढ़कर फायदा मिले |
Share This Article
error: Content is protected !!
×