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टिश्यू पेपर का जाल: पर्यावरण की हानि और हमारा रूमाल

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक पोस्ट बहुत घूम रही है, जिस पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। पोस्ट इस प्रकार है –

रूमाल गायब? उठाओ टिश्यू पेपर – इस्तेमाल करो और फेंको, इस्तेमाल करो और फेंको, इस्तेमाल करो और फेंको! एक ही मंत्र – फेंको, फेंको, फेंको… लगातार फेंकते रहो!”

साल 2025 में दुनिया भर में लगभग 2 करोड़ टन टिश्यू पेपर इस्तेमाल किया जाएगा।
1 टन टिश्यू पेपर बनाने के लिए 17 पेड़ काटने पड़ते हैं।
यानि एक साल में लगभग 42 करोड़ पेड़ काटे जाएंगे!

तो चलिए, आज से हम फिर से कपड़े के रूमाल का इस्तेमाल शुरू करें… पेड़ बचाएं, प्रकृति बचाएं!

इस पोस्ट के आंकड़े थोड़े बहुत अलग हो सकते हैं, लेकिन इसमें जो पर्यावरण के ह्रास का संकेत है, वह बेहद गंभीर है।
यूज़ एंड थ्रो” (Use and Throw) की आदत ने हमारे प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाया है। आइए इसे वैज्ञानिक दृष्टि से समझें।

टिश्यू पेपर की बढ़ती मांग

विश्व और भारत – दोनों स्तरों पर स्वच्छता और रहन-सहन के स्तर में सुधार के कारण टिश्यू पेपर की मांग बढ़ती जा रही है।

वैश्विक स्तर पर टिश्यू पेपर का बाजार बहुत बड़ा है और लगातार बढ़ रहा है।
दुनिया में औसतन प्रति व्यक्ति टिश्यू पेपर की खपत 5.6 किलोग्राम है,
जबकि कुछ विकसित देशों (जैसे उत्तर अमेरिका) में यह 27 किलोग्राम तक है।

अब भारत की स्थिति देखें —
भारत में प्रति व्यक्ति टिश्यू पेपर की खपत वैश्विक औसत से बहुत कम, 0.5 किलोग्राम से भी कम है।
लेकिन बदलती जीवनशैली और स्वच्छता को लेकर बढ़ती जागरूकता के चलते,
भारत में टिश्यू पेपर की मांग हर साल 8.8% से अधिक की दर से बढ़ने का अनुमान है।
यानि, आज हमारा इस्तेमाल कम है, पर भविष्य में पर्यावरण पर इसका दबाव निश्चित रूप से बढ़ेगा!

टिश्यू पेपर बनाने की प्रक्रिया और पर्यावरणीय प्रभाव

🌳 पेड़ों की कटाई और कार्बन उत्सर्जन

टिश्यू पेपर ज्यादातर वर्जिन पल्प (Virgin Pulp) से बनता है — यानी सीधे कटे हुए पेड़ों के गूदे से,
क्योंकि यह ज्यादा मुलायम और शोषक होता है।

पेड़ों की कटाई से जंगलों की पारिस्थितिकी नष्ट होती है और अनेक वन्य जीवों के आवास समाप्त हो जाते हैं।
साथ ही, जंगलों के घटने से वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की प्राकृतिक क्षमता कम होती है,
जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है।

💧 पानी और ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग

कागज बनाने के लिए बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है।
एक अध्ययन के अनुसार, केवल एक टॉयलेट पेपर रोल बनाने में लगभग 140 लीटर पानी लगता है!

लगदा तैयार करने, सुखाने और अंतिम उत्पाद बनाने की प्रक्रिया में भारी ऊर्जा खपत होती है,
जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है।

⚗️ रासायनिक प्रदूषण

टिश्यू पेपर को सफेद और मुलायम बनाने के लिए क्लोरीन-आधारित रसायनों का उपयोग किया जाता है।
ये रसायन प्रक्रिया के बाद पानी और हवा में मिल जाते हैं,
जिससे जल और वायु प्रदूषण होता है — और यह नदियों समुद्री जीवों के लिए बहुत हानिकारक है।

🗑️ कचरा और भूमि प्रदूषण

टिश्यू पेपर इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है और लैंडफिल (कचरा स्थलों) में जमा हो जाता है।
कुछ टिश्यू पेपर बायोडिग्रेडेबल होते हैं,
लेकिन वे प्लास्टिक पैकेजिंग में आते हैं जिससे और अधिक कचरा बनता है।

सिर्फ अमेरिका में हर साल लगभग 7.6 अरब पाउंड टिश्यू पेपर कचरे में जाता है।

रूमाल — एक सरल लेकिन प्रभावी समाधान

इन सब समस्याओं का सबसे आसान, सस्ता और कारगर उपाय है — रूमाल का पुनः उपयोग।

  • 🔁 पुनः प्रयोग: एक रूमाल को सैकड़ों बार इस्तेमाल किया जा सकता है,
    जिससे कचरा उत्पादन लगभग 26 गुना तक घट जाता है।
  • 💧 पानी और ऊर्जा की बचत:
    कपड़े का रूमाल बनाने में केवल एक बार पानी लगता है,
    जबकि बार-बार इस्तेमाल और धोने के बावजूद यह
    टिश्यू पेपर की लगातार उत्पादन प्रक्रिया की तुलना में बहुत कम पानी और ऊर्जा खर्च करता है।
    (यदि रूमाल अन्य कपड़ों के साथ धोया जाए तो अतिरिक्त पानी की खपत भी नहीं होती।)
  • 💚 स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सुरक्षित:
    ठीक से धोकर और साफ रखकर उपयोग किया गया रूमाल स्वच्छ और स्वास्थ्यकर होता है।

आइए, एक छोटी सी आदत बदलें!

हमने सदियों तक रूमाल का उपयोग किया है।
लेकिन “यूज़ एंड थ्रो” की आधुनिक संस्कृति ने हमें प्रकृति से दूर कर दिया है।

आज से संकल्प लें:

  • टिश्यू पेपर का इस्तेमाल केवल तब करें जब वास्तव में ज़रूरी हो।
  • जहाँ संभव हो, रूमाल का उपयोग करें।
  • और दूसरों को भी इस बदलाव के लिए प्रेरित करें।

यह छोटा सा बदलाव लाखों पेड़ों, हजारों लीटर पानी और हमारी धरती के स्वच्छ भविष्य की रक्षा कर सकता है।

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