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सूर्य–चंद्र अमावस्या योग

जब सूर्य और चंद्रमा एक ही भाव  या डिग्री पर स्थित होते हैं, तब अमावस्या योग बनता है। यह योग व्यक्ति के मन  और आत्मा को एक कर देता है, जिससे जातक का जीवन अंदरूनी संघर्ष, गहराई और आत्मविकास से भरा होता है।

 

 मुख्य प्रभाव:

  1. मन और आत्मा में संघर्ष:

सूर्य का तेज़ चंद्रमा के प्रकाश को ढँक देता है, जिससे व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर या अस्थिर हो सकता है।

कभी आत्मविश्वास बहुत ऊँचा, तो कभी बहुत नीचे चला जाता है।

 

  1. गहरी सोच और रहस्यप्रियता:

जातक अंदर से बहुत गहराई से सोचने वाला होता है।

रहस्यमय, आध्यात्मिक और आत्म-निरीक्षण करने वाला स्वभाव।

 

  1. माता-पिता से दूरी या मतभेद:

सूर्य पिता का, चंद्र माता का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए दोनों में युति होने पर कभी-कभी परिवार में भावनात्मक दूरी बनती है।

 

  1. भाग्य और कर्म के बीच टकराव:

व्यक्ति को जीवन में संघर्ष के बाद ही सफलता मिलती है।

कर्म प्रधान जीवन — हर चीज़ मेहनत और अनुभव से हासिल होती है।

 

  1. शुभ स्थिति में:

जब सूर्य–चंद्र शुभ भाव (जैसे 9वां, 10वां, या लग्न) में हों या गुरु की दृष्टि हो, तो यह योग राजयोग भी बन सकता है।

जातक बहुत आत्मबलवान, दृढ़निश्चयी और आत्मनिर्भर होता है।

 

 उपाय

  1. “ॐ नमः शिवाय” का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।
  2. सोमवार को सफेद वस्त्र पहनें और दूध या चावल का दान करें।
  3. सूर्य देव को जल चढ़ाएं — विशेषकर रविवार को।
  4. माता की सेवा करें — चंद्रमा को मजबूत करता है।
  5. मन की शांति के लिए ध्यान औरप्राणायामकरें।
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