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वसुबारस: मातृत्व, श्रद्धा और समृद्धि का पर्व

भारत भूमि अपने विविध त्योहारों, परंपराओं और संस्कारों के लिए जानी जाती है। यहाँ हर पर्व के पीछे कोई न कोई गूढ़ आध्यात्मिक, सांस्कृतिक या सामाजिक संदेश छिपा होता है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है वसुबारस — जिसे भारत के विभिन्न भागों में गोवत्स द्वादशी, वसु दिन, या वसु बारस के नाम से जाना जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से दीपावली के आरंभ का सूचक माना जाता है। वसुबारस का दिन भारतीय संस्कृति में मातृत्व, पालन-पोषण और समृद्धि का प्रतीक है।

🌿 वसुबारस का अर्थ और नाम की व्युत्पत्ति

‘वसुबारस’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है — वसु” और बारस”

  • वसु’ का अर्थ है धन, समृद्धि, गाय और देवत्व से युक्त ऊर्जा।
  • बारस’ का अर्थ है बारहवाँ दिन।

अर्थात्, वसुबारस का अर्थ हुआ धन और समृद्धि का बारहवाँ दिन। यह दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गाय और बछड़े की विशेष पूजा की जाती है क्योंकि हिंदू संस्कृति में गाय को माता के समान माना गया है — गोमाता”

🐄 गोमाता की महिमा और पूजन का महत्व

भारतीय संस्कृति में गाय को ‘कामधेनु’ कहा गया है, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है। वेदों और पुराणों में गाय का स्थान अत्यंत ऊँचा बताया गया है।
गावो विश्वस्य मातरः” — अर्थात् गाय सम्पूर्ण विश्व की माता है।

गाय केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक और पारिस्थितिक दृष्टि से भी भारतीय जीवन का अभिन्न अंग रही है। पुराने समय में गाय का दूध, घी, गोमूत्र और गोबर — ये पाँच तत्व (पंचगव्य) हर गृहस्थ जीवन में उपयोगी थे। इसलिए गोमाता की पूजा वास्तव में प्रकृति और मातृत्व के प्रति कृतज्ञता का भाव है।

वसुबारस के दिन महिलाएँ विशेष रूप से गाय और उसके बछड़े (वत्स) की पूजा करती हैं। वे उन्हें स्नान कराती हैं, हल्दी-कुमकुम चढ़ाती हैं, फूलों की माला पहनाती हैं और आरती उतारती हैं। फिर उन्हें गुड़, हरभरा (चना), गेहूँ, और घास खिलाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन गाय की सेवा करने से परिवार में संतान सुख, धन और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

🌸 वसुबारस और दीपावली का आरंभ

वसुबारस को ही दीपावली उत्सव का पहला दिन माना जाता है। इसके बाद क्रमशः धनतेरस, नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली), लक्ष्मी पूजा (दीपावली), गोवर्धन पूजा, और भाई दूज आते हैं।
वसुबारस के दिन घरों की सफाई और सजावट प्रारंभ हो जाती है। महिलाएँ घर के द्वार पर गोबर से सुंदर गोवर्धन चित्र या गोमाता के प्रतीक बनाती हैं। इससे वातावरण में पवित्रता आती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।

🪔 कथा: वसुबारस के पीछे की पौराणिक कथा

वसुबारस से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रसिद्ध कथा इस प्रकार है —

प्राचीन काल में एक ब्राह्मण स्त्री थी, जो संतान की अभिलाषा रखती थी। लेकिन वह गृहकार्य में लापरवाही करती थी और गायों की सेवा नहीं करती थी। एक दिन किसी साधु ने उससे कहा — “गाय माता की सेवा करोगी तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।”
वह स्त्री मन से पश्चाताप करने लगी और उसने गोमाता की निष्ठापूर्वक सेवा शुरू कर दी। कुछ समय बाद उसे एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ।

इस कथा का सार यह है कि वसुबारस के दिन गोसेवा और मातृत्व के प्रति सम्मान से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

🌺 महिलाओं के लिए विशेष पर्व

वसुबारस मुख्यतः गृहस्थ स्त्रियों का पर्व है। जिन महिलाओं के घर में नवजात शिशु या छोटे बच्चे होते हैं, वे इस दिन गाय और बछड़े की पूजा करके अपनी संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना करती हैं।
इस दिन महिलाएँ दूध और दुग्धजन्य पदार्थों का सेवन नहीं करतीं, क्योंकि यह दिन गोमाता को समर्पित होता है। वे अन्य व्यंजनों से व्रत खोलती हैं, जैसे — पूरणपोली, हलवा, चने की दाल आदि।

🍃 पूजा-विधि और परंपराएँ

वसुबारस की पूजा प्रातःकाल अथवा सायंकाल की जाती है। पूजन विधि इस प्रकार होती है —

  1. गाय और बछड़े को स्नान कराना:
    स्वच्छ जल से उन्हें नहलाया जाता है और कपड़े या फूलों की माला पहनाई जाती है।
  2. पूजन स्थल की तैयारी:
    गोबर से मंडप बनाया जाता है और उस पर हल्दी-कुमकुम से स्वस्तिक व गोमाता के चित्र बनाए जाते हैं।
  3. पूजा सामग्री:
    फूल, धूप, दीप, अक्षत, रोली, गुड़, हरभरा (चना), और घास रखी जाती है।
  4. आरती और मंत्रोच्चार:
    गोमाता की आरती उतारी जाती है —
    गो माता तुमसे बड़ा उपकारी कौन,
    तुम्हारे बिना नहीं चलता जीवन कौन।”
  5. प्रसाद वितरण:
    पूजा के बाद प्रसाद रूप में गुड़ और हरभरा बाँटा जाता है।

इस प्रकार श्रद्धा और सादगी से यह पूजा सम्पन्न होती है।

🌾 वसुबारस का सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश

वसुबारस केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक भी है।

  • यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति और पशु-पक्षी हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं
  • गाय हमारे कृषि-आधारित समाज की आर्थिक रीढ़ है — खेतों में हल चलाने से लेकर जैविक खाद बनाने तक।
  • आधुनिक युग में जहाँ कृत्रिमता बढ़ रही है, वसुबारस हमें प्राकृतिक और सतत जीवनशैली की ओर लौटने की प्रेरणा देता है।

🌕 वसुबारस और मातृत्व का भाव

वसुबारस का मूल भाव मातृत्व से जुड़ा हुआ है। जैसे गाय अपने बछड़े को स्नेह से पोषित करती है, वैसे ही माँ अपने बच्चे के लिए समर्पित रहती है। इस पर्व के माध्यम से हम माँ के निःस्वार्थ प्रेम का स्मरण करते हैं।

वास्तव में, वसुबारस का पर्व यह सिखाता है कि –

“माँ केवल इंसान की नहीं होती, हर जीव में मातृत्व का भाव बसता है।”

इसलिए गाय की पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि माँ के रूप में प्रकृति का आदर है।

💫 वर्तमान समय में वसुबारस का महत्व

आज के युग में जब लोग परंपराओं को आधुनिकता के नाम पर भूलते जा रहे हैं, वसुबारस जैसे त्योहार हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं।
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि धन-संपत्ति केवल भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारी संवेदनाओं में भी है।
अगर हम अपने आस-पास के जीवों, प्रकृति, और समाज के प्रति दया, प्रेम और जिम्मेदारी निभाएँ — वही सच्चा ‘वसु’ है।

🙏 समापन

वसुबारस का पर्व हमें यह संदेश देता है कि कृतज्ञता, मातृत्व और समृद्धि तीनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। जब हम गोमाता की पूजा करते हैं, तो वास्तव में हम उस सृजनशक्ति का सम्मान करते हैं जो सम्पूर्ण सृष्टि को पोषण देती है।

दीपावली के आरंभ में वसुबारस का होना इस बात का प्रतीक है कि प्रकाश से पहले कृतज्ञता और सेवा का भाव आवश्यक है।
इसलिए आइए, इस वसुबारस पर हम सभी प्रण लें —

“गाय, प्रकृति और मातृत्व के प्रति श्रद्धा रखें,
और अपने जीवन में सादगी, सेवा और संतोष को स्थान दें।”

शुभ वसुबारस!
गोमाता तुम्हारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद दें।

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