
आप क्या करते हैं?
आप कहाँ रहते हैं?
आपके पास कौन सी कार है?
जब हम किसी नए व्यक्ति से मिलते हैं, तो सबसे पहले वे हमें परखते हैं — आप कौन हैं और आपकी कीमत क्या है।
इसी कारण हमें महंगे कपड़े, घर, गाड़ियाँ, और घड़ियाँ चाहिए होती हैं — ताकि लोग हमसे प्रभावित हों। क्योंकि जब तक वे हमारे मूल्य को नहीं पहचानते, तब तक हमें भी लगता है कि हम योग्य नहीं हैं।
एक युवा भिक्षु ने ज़ेन गुरु से पूछा — “मेरी असली कीमत क्या है?”
गुरु ने उसे एक पत्थर दिया और कहा — “इसे सब्ज़ी मंडी में ले जाओ। अगर कोई इसकी कीमत पूछे, तो बस दो उंगलियाँ उठाना, पर कुछ कहना मत। बेचना मत।”
भिक्षु गया — एक औरत ने पूछा, उसने दो उंगलियाँ उठाईं।
वह बोली — “दो डॉलर? मैं इसे मसाले पीसने के लिए लूंगी।”
अगले दिन गुरु ने उसे कला बाज़ार भेजा।
वहाँ एक मूर्तिकार ने पूछा — “दो सौ डॉलर? मैं इससे गणेश जी की मूर्ति बनाऊँगा।”
फिर गुरु ने उसे पुरातन वस्तुओं के बाज़ार में भेजा।
वहाँ भारी भीड़ लग गई — व्यापारी आपस में बोली लगाने लगे, और कीमत बीस हज़ार डॉलर तक पहुँच गई।
गुरु बोले — “तुम्हारी ज़िंदगी की कीमत भी इस पत्थर जैसी है। इसका मूल्य इस पर निर्भर करता है कि तुम खुद को कहाँ रखते हो।”
सब्ज़ी मंडी में तुम 2 डॉलर के हो, कला बाज़ार में 200 डॉलर के, और पुरातन वस्तु बाज़ार में 20,000 डॉलर के।
हम बाज़ार में तीन चीज़ें लेकर आते हैं — बुद्धि, सुंदरता और कौशल।
शिक्षा हमारी बुद्धि को निखारती है — यह हमें ज्ञान देती है, सोचने के ढाँचे सिखाती है, अभिव्यक्ति सिखाती है, और दूसरों के साथ काम करना सिखाती है।
सुंदरता का भी मूल्य होता है — यदि आप कैमरे से संवाद कर सकते हैं, अभिनय कर सकते हैं, लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ सकते हैं, तो आप मूल्यवान हैं।
और यदि आप किसी कौशल में निपुण हैं — जैसे गायन, संगीत, चित्रकला, बढ़ईगीरी, सर्जरी, या क्रिकेट में गेद को दर्शकों के ऊपर उछालना — तो वह आपका मूल्य बनाता है।
मानव समाज ने बुद्धि, सुंदरता और कौशल के हर परिणाम के लिए एक तय इनाम रखा है।
पूँजीवाद का सुनहरा नियम है — जिसके पास सोना है, वही नियम बनाता है।
इसलिए जिसके पास धन है, वही सबसे ज़्यादा कमाता है — और वही अपनी ज़रूरत के अनुसार दूसरों की सेवाएँ खरीदता है।
यदि आप अपने करियर के शुरुआती चरण में हैं, तो आपको यह स्पष्ट होना चाहिए कि आप बाज़ार में क्या लेकर आते हैं — बुद्धि, सुंदरता या कौशल?
इन तीनों के संयोजन से ही आप मूल्य बना सकते हैं।
आज की दुनिया ‘Valuation’ यानी आंकड़ों की दीवानी है — लेकिन असली लक्ष्य ‘Valuable’ बनना होना चाहिए।
अपनी बुद्धि को प्रखर बनाइए, अपनी सुंदरता या कौशल को निखारिए।
महत्व इस बात का नहीं कि आप क्या करते हैं, बल्कि इस बात का है कि आप कैसे करते हैं।
चाहे आप एक शेफ हों या टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ — इस खेल में विजेता ही सब कुछ जीतता है।
हमें खुद से पूछना चाहिए — क्या हम अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ हैं?
अपनी कमियों को पहचानिए, और लगातार सुधार की कोशिश कीजिए।
कबीर दास जी कहते हैं —
“रात गँवाई सोय कर, दिवस गवायों खाय।
हीरा जनम अनमोल था, कौड़ी बदले जाये॥”
(रात नींद में गँवा दी, दिन खाने में बिता दिया। जो जीवन जन्म से अनमोल था, उसे हमने कौड़ी के भाव बेच दिया।)
तो बताइए — क्या आप सच में जानते हैं कि आपकी कीमत क्या है?
क्या आप एक ऐसा ‘एसेट’ हैं जिसकी कीमत समय के साथ बढ़ती है, या वह जो समय के साथ घटाकर उसकी असली कीमत बतानी पड़ती है?