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व्यसन योग।

राहु नशेड़ी बनने का मुख्य कारण है।

 

किसी भी प्रकार के व्यसन हो, उसमें राहु की भूमिका रहती है।

 

लग्न में, द्वितीय भाव में, चतुर्थ भाव में, पँचम भाव में, अष्टम भाव में, राहु हो तो जातक नीच हो तो जातक शराब और धूम्रपान का आदि बन जाता है।

 

शनि के साथ सहयोग से इन भावों में राहु हो और नशे की आदत हो तो कैंसर की संभावना बनती है।

 

धूम्रपान इन अंगों को प्रभावित करता है –

 

लग्न में मुँह का कैंसर।

 

द्वितीय भाव मे गले का कैंसर।

 

तृतीय भाव मे स्वास नली में प्रॉब्लम।

 

चतुर्थ भाव में फेफड़ों का कैंसर।

 

पँचम भाव में लिवर का कैंसर।

 

अष्टम भाव में पेट के निचले भाग में समस्या देता है।

 

पँचम और अष्टम भाव मे राहु वाले अधिकतर अल्कोहल वाले देखे गए हैं और अल्कोहल से ही उनके पेट में अधिक समस्या रही है।

 

यदि उपरोक्त भावों में राहु का नक्षत्र आये और उसमें चन्द्रमा हो, तो भी जातक किसी ना किसी प्रकार से नशे का आदि हो जाता है।

 

एक कुण्डली में द्वितीय भाव में शतभिषा नक्षत्र का चन्द्रमा था और चतुर्थ भाव मे राहु था।

 

जातक तम्बाकू चबाने का और चरस पीने का आदि था।

 

अल्कोहल यूज नहीं करता था।

 

एक जातक के चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि का राहु था और सप्तम भाव मे शनि था जिसकी दसवीं दृष्टि राहु पर थी।

 

जातक चरस पीने का आदि है और अल्कोहल भी यूज करता है।

 

फेफड़ों में प्रॉब्लम होने से साँस को प्रॉब्लम आई है।

 

शनि कैमिकल का कारक है इसलिए अल्कोहल का यूज और राहु धुएं का कारक है इसलिए धूम्रपान का यूज होना स्वभाविक है।

 

राहु मंगल शनि या शनि मंगल केतु वाले जातक इंजेक्शन का यूज भी करते हैं।

 

क्योंकि केतु वेध का कारक है।

 

मंगल रक्त का कारक है।

 

खुद को चीरा लगाना या इंजेक्शन लगाना केतु के कारण होता है।

 

मंगल के कारण नशा रक्त के माध्यम से होता है।

 

राहु शनि हो या शनि केतु हो, ट्यूमर कैन्सर का असर बनता है।

 

शनि केतु के साथ हो तो राहु के साथ शनि का दृष्टि सम्बन्ध होता ही है।

 

इसलिए जातक शराब और धूम्रपान दोनों का आदि हो जाता है।

 

राहु वाले अधिकतर मुखव्यसनी ही देखे गए हैं।

लेकिन यदि शनि और मंगल का प्रभाव भी पड़े तो हैवी ब्रांड के नशे करने वाले होते हैं जो अपनी चीरफाड़ या इंजेक्शन के माध्यम से नशे करते हैं।

 

नशा करने वाले का शुक्र अच्छा हो तो हमेशा महंगे ब्राण्ड के शराब का यूज करेगा और शौकिया नशा करेगा।

 

चन्द्रमा खराब हो तो घटिया ब्राण्ड का नशा यूज करेगा और दुख भुलाने के लिए पियेगा।

 

ऐसा जातक शराब पीने का बाद अपनी दुखभरी कहानी सुनाने लगता है।

 

मंगल का प्रभाव हो तो जातक शराब पीकर दंगा करने लगता है।

 

अलग अलग ग्रह के साथ अलग अलग प्रभाव निकलेगा।

 

अव योग-

 

लग्नेश यदि त्रिक भावों में हो तो अव योग बनता है।

 

जातक के शरीर को कष्ट होता रहता है।

 

द्वादश भाव मे लग्नेश इतना अधिक बुरा नहीं देखा गया है लेकिन छठे और आठवें भाव मे अधिक बुरा फल देखा गया है।

 

षष्टम भाव में लग्नेश जातक को बार बार बीमार करता है या शत्रुओं द्वारा झगड़े में उसको कोई शारीरक हानि होती है।

 

अष्टम भाव में होने से दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है और शारीरक हानि होती है।

 

[3] पिशाच योग –

 

चन्द्रमा यदि राहु केतु के साथ हो और शनि का प्रभाव भी पड़े तो जातक प्रेत बाधाओं से ग्रसित होता है।

 

एक जातक की कुण्डली देखी थी जिसमें सप्तम भाव में मिथुन राशि का केतु था और पत्नी को प्रेत बाधा थी।

 

जरूरी नहीं है कि अपनी कुण्डली में प्रेत बाधा का योग हो तो जातक स्वयं ही प्रेत बाधा से ग्रसित होगा।

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