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जन्म पत्रिका में व्यभिचार संबंध का योग + काम वासना और ज्योतिष

जिस जातक की जन्म पत्रिका मे सप्तम भाव मे शुक्र स्थित होता है तो वह व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता है, यदि सप्तमस्थ शुक्र इस स्थान में अपनी उच्च राशि “मीन” मे हो तो यह योग और प्रबल हो जाता है जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती है। जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता है। यदि जन्म कुंड़ली के सप्तम भाव मे सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से vyabhichar (avoid word नाजायज) संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है। यदि जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि मे मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि मे स्थित होकर सप्तम भाव मे स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती है।

जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता है व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है। उक्त ग्रह दोष के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता है जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते है। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव मे हो, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता है। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते है।

इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते है। इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली मे इस तरह का योग बन रहा हो उन्हे एक दूसरे कि भावनाओ का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।

*जन्म कुंडली में शुक्र उच्च का होने पर व्यक्ति के कई प्रेम प्रसंगहो सकते हैं, जो कि विवाह के बाद भी जारी रहते हैं।

*सप्तम भाव में मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता हैं स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध भी बनाता है। संतान पक्ष के किये कष्टकारी होता हैं। मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति-पत्नी में दूरियां बढ़ती हैं।

*द्वादश भाव में मंगल शैय्या सुख, भोग, में बाधक होता हैं इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध में प्रेम एवं सामंजस्य का अभाव रहता हैं। यदि मंगल पर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हों, तो व्यक्ति में चारित्रिक दोष और गुप्त रोग उत्पन्न कर सकता हैं। व्यक्ति जीवनसाथी को घातक नुकसान भी कर सकता हैं।

*यदि जन्म कुंडली में सप्तम भाव में शुक्र स्थित व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता हैं जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती हैं। जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता हैं।

*जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है।

*जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि में मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि में स्थित होकर सप्तम भाव में स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती हैं।

*जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है।

*जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता हैं व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है।

उक्त ग्रह दोष के कारणा ऐसा जीवनसाथी मिलता हैं जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते हैं। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते हैं।

जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव में हों, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता हैं। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं। इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते हैं। इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली में में इस तरह का योग बनरहा हों उन्हें एक दूसरे कि भावनाओं का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।

 

काम वासना और ज्योतिष

 

मनुष्य में काम वासना एक जन्मजात प्रवृति और वह इससे आजीवन प्रभावित -संचालित होता है। किसी व्यक्ति में इस भावना का प्रतिशत कम हो सकता है किसी में ज्यादा हो सकता है । ज्योतिष के विश्लेषण के अनुसार यह पता लगाया जा सकता है की व्यक्ति में काम भावना किस रूप में विद्यमान है और वह उसका प्रयोग किन क्षत्रों में कितने अंशों में कर रहा है ।

 

  लग्न / लग्नेश

 

1👉  यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र /त्रिकोण में बैठ जाएँ या एक दूसरे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का निर्माण होता है । इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली , विद्या -प्रिय ,कर्म शील , दानी , यशस्वी , घर जमीन का अधिपति होता है वहीं अत्यंत कामी और कभी कभी पर स्त्री गमन करने वाला भी होता है ।

 

2👉 यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो ,तो ऐसे व्यक्ति की रूचि विपरीत सेक्स के प्रति अधिक होती है । उस व्यक्ति का पूरा चिंतन मनन ,विचार व्यवहार का केंद्र बिंदु उसका प्रिय ही होता है ।

 

3👉 यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो और सप्तमेश लग्न में हो , तो जातक स्त्री और पुरुष दोनों में रूचि रखता है , उसे समय पर जैसा साथी मिल जाए वह अपनी भूख मिटा लेता है । यदि केवल सप्तमेश लग्न में स्थित हो तो जातक में काम वासना अधिक होती है तथा उसमें रतिक्रिया करते समय पशु प्रवृति उत्पन्न हो जाती है और वह निषिद्ध स्थानों को अपनी जिह्वा से चाटने लगता है ।

 

4👉 यदि लग्नेश ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो जातक अप्राकृतिक सेक्स और मैस्टरबेशन आदि प्रवृतियों से ग्रसित रहता है और ये क्रियाएँ उसे आनंद और तृप्ति प्रदान करती हैं ।

 

5👉 लग्न में शुक्र की युति 2 /7 /6 के स्वामी के साथ हो तो जातक का चरित्र संदिग्ध ही रहता है ।

 

6👉 मीन लग्न में सूर्य और शुक्र की युति लग्न/चतुर्थ भाव में हो या सूर्य शुक्र की युति सप्तम भाव में हो और अष्टम में पुरुष राशि हो तो स्त्री , स्त्री राशि होने पर पुरुष अपनी तरक्की या अपना कठिन कार्य हल करने के लिए अपने साथी के अतिरिक्त अन्य से सम्बन्ध स्थापित करते हैं ।

 

सप्तम भाव और तुला राशि

 

1👉 सातवें भाव में मंगल , बुद्ध और शुक्र की युति हो इस युति पर कोई शुभ प्रभाव न हो और गुरु केंद्र में उपस्थित न हो तो जातक अपनी काम की पूर्ति अप्राकृतिक तरीकों से करता है ।

 

2👉 मंगल और शनि सप्तम स्थान पर स्थित हो तो जातक समलिंगी {होमसेक्सुअल } होता है , अकुलीन वर्ग की महिलाओं के संपर्क में रहता है । अष्टम /नवम /द्वादश भाव का मंगल भी अधिक काम वासना उत्पन्न करता है , ऐसा जातक गुरु पत्नी को भी नही छोड़ पाता है ।

 

3👉 तुला राशि में चन्द्रमा और शुक्र की युति जातक की काम वासना को कई गुणा बड़ा देती है । अगर इस युति पर राहु/मंगल की दृष्टि भी तो जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ।

 

4👉 तुला राशि में चार या अधिक ग्रहों की उपस्थिति भी पारिवारिक कलेश का कारण बनती है ।

 

5👉 दूषित शुक्र और बुद्ध की युति सप्तम भाव में हो तो जातक काम वासना की पूर्ति के लिए गुप्त तरीके खोजता है ।

 

    शुक्र

 

1👉 यदि शुक्र स्वक्षेत्री ,मूलत्रिकोण राशि या अपने उच्च राशि का हो कर लग्न से केंद्र में हो तो मालव्य योग बनता है । इस योग में व्यक्ति सुन्दर,गुणी , संपत्ति युक्त ,उत्साह शक्ति से पूर्ण , सलाह देने या मंत्रणा करने में निपुण होने के साथ साथ परस्त्रीगामी भी होता है । ऐसा व्यक्ति समाज में अत्यंत प्रतिष्ठा से रहता है तथा आपने ही स्तर की महिला/पुरुष से संपर्क रखते हुए भी अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देता है । समाज भी सब कुछ जानते हुए उसे आदर सम्मान देता रहता है ।

 

2👉 सप्तम भाव में शुक्र की उपस्थिति जातक को कामुक बना देती है ।

 

3👉 शुक्र के ऊपर मंगल /राहु का प्रभाव जातक को काफी लोगों से शरीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए उकसाता है ।

 

4👉 शुक्र तीसरे भाव में स्थित हो और मंगल से दूषित हो , छठे भाव में मंगल की राशि हो और चन्द्रमा बारहवें स्थान पर हो तो व्यभिचारी प्रवृतियां अधिक होती है ।

 

5👉 शुक्र के ऊपर शनि की दृष्टि/युति /प्रभाव जातक में अत्याधिक मैस्टरबेशन की प्रवृति उत्पन्न करते हैं

 

     गुरु

 

1👉 गुरु लग्न/चतुर्थ /सप्तम/दशम स्थान पर हो या पुरुष राशि में छठे भाव में हो या द्वादश भाव में हो , जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए सभी सीमाओं को तोड़ डालता है

 

2👉 छठे भाव में गुरु यदि पुरुष राशि में बैठा हो तो जातक काम प्रिय होता है

 

    शनि

1👉 यदि शनि स्वक्षेत्री ,मूलत्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि का होकर लग्न से केंद्रवर्ती हो तो शशः योग बनता है । ऐसा व्यक्ति राजा ,सचिव, जंगल पहाड़ पर घूमने वाला ,पराये धन का अपहरण करने वाला ,दूसरों की कमजोरियों को जानने वाला ,दूसरों की पत्नी से सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा करने वाला होता है ।कभी कभी अपने इस दुराचार के लिए उसकी प्रतिष्ठा कलंकित हो सकती है , वह दूसरों की नज़रों में गिर सकता है और समाज में अपमानित भी हो सकता है ।

 

2👉 शनि लग्न में हो तो जातक में वासना अधिक होती है,पंचम भाव में शनि अपनी से बड़ी उम्र की स्त्री से आकर्षण , सप्तम में होने से व्यभिचारी प्रवृति,चन्द्रमा के साथ होने पर वेश्यागामी, मंगल के साथ होने पर स्त्री में और शुक्र के साथ होने पर पुरुष में कामुकता अधिक होती है ।

 

3👉 दशम स्थान का शनि विरोधाभास उत्पन्न करता है , जातक कभी कभी ज्ञान वैराग्य की बात करता है तो कभी कभी कामशास्त्र का गंभीरता से विश्लेषण करता है , काम और सन्यास के बीच जातक झूलता रहता है ।

 

4👉 दूषित शनि यदि चतुर्थ भाव में उपस्थित हो तो जातक की वासना उसे इन्सेस्ट की और अग्रसर करती है ।

 

5👉 शनि की चन्द्रमा/शुक्र/मंगल के साथ युति जातक में काम वासना को काफी बड़ा देती है ।

 

    चंद्र

 

1👉 चन्द्रमा बारहवें भाव में मीन राशि में हो तो जातक अनेकों का उपभोग करता है ।

 

2👉 नवम भाव में दूषित चन्द्रमा की उपस्थिति गुरु/ शिक्षक /मार्गदर्शक के साथ व्यभिचार करने के उकसाते हैं ।

 

3👉 सप्तम भाव में क्षीण चन्द्रमा किसी पाप ग्रह के साथ बैठा हो तो जातक विवाहित स्त्री से आकर्षित होता है ।

 

4👉 नीच का चन्द्रमा सप्तम स्थान पर हो तो जातक आपने नौकर /नौकरानी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ।

 

   मंगल

 

1👉 मंगल की उपस्थिति 8 /9 /12 भाव में हो तो जातक कामुक होता है

 

2👉 मंगल सप्तम भाव में हो और उसपर कोई शुभ प्रभाव न हो तो जातक नबालिकों के साथ सम्बन्ध बनाता है ।

 

3👉 मंगल की राशि में शुक्र या शुक्र की राशि में मंगल की उपस्थित हो तो जातक में कामुकता अधिक होती है ।

 

4👉 जातक कामांध होकर पशु सामान व्यवहार करता है यदि मंगल और एक पाप ग्रह सप्तम में स्थित हो या सूर्य सप्तम में और मंगल चतुर्थ भाव हो या मंगल चतुर्थ भाव में और राहु सप्तम भाव में हो या शुक्र मंगल की राशि में स्थित होकर सप्तम को देखता हो ।

 

 

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